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उत्तराखंड के जंगल खतरे में हैं… लेकिन जो इन्हें बचाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, वे आज अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं! रामनगर में तराई पश्चिमी वन प्रभाग, रामनगर डिवीजन और जिम कॉर्बेट प्रशासन के कार्यालय एक ही परिसर में हैं, और यहीं पर वन कर्मचारी अपने अधिकारों के लिए जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर जंगलों के असली पहरेदार ड्यूटी छोड़कर प्रदर्शन पर हैं, तो जंगलों की सुरक्षा कौन करेगा? और अगर फायर सीजन में कोई बड़ा हादसा हो गया, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
उत्तराखंड में फायर सीजन शुरू हो चुका है… तापमान बढ़ रहा है… जंगलों में सूखी पत्तियां और लकड़ियां चिंगारी पकड़ने के लिए तैयार हैं… लेकिन सरकार अब भी खामोश है! हर साल उत्तराखंड के जंगलों में हजारों हेक्टेयर वन संपदा आग में स्वाहा हो जाती है, इसके साथ ही इन्सानो को भी अपनी ज़िंदगी गवानी पड़ती हैं और वन्यजीवों की भी जान चली जाती है और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। रामनगर में तराई पश्चिमी वन प्रभाग, रामनगर डिवीजन और जिम कॉर्बेट प्रशासन के कार्यालय एक ही परिसर में है और ऐसा नही है कि वन आरक्षी यही धरने पर बैठे हैं ये धरना प्रदर्शन पूरे उत्तराखंड में चल रहा है जिसमे लगभग 2 हजार 7 सो वन आरक्षी धरने पर बैठे हैं। इसलिए इस बार हालात और भी गंभीर हैं, क्योंकि जो कर्मचारी इन आग की लपटों से जंगलों को बचाते हैं, वे अपनी 5 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठ गए हैं।
अगर इस फायर सीजन में कोई बड़ा हादसा हुआ, तो उसकी ज़िम्मेदारी धामी सरकार की होगी या फिर उन वन कर्मचारियों की, जिन्हें उनकी मांगें पूरी न होने के कारण मजबूरन प्रदर्शन करना पड़ रहा है?
उत्तराखंड के जंगल सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यटन और अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व और आसपास के जंगलों में हर साल लाखों सैलानी जंगल सफारी के लिए आते हैं। लेकिन अगर जंगलों की सुरक्षा करने वाले ही अपनी ड्यूटी छोड़ने को मजबूर हो जाएं, तो इन पर्यटकों की सुरक्षा का क्या होगा?
अब सवाल धामी सरकार से है… आखिर क्यों वन कर्मचारियों की 5 सूत्रीय मांगों को अनदेखा किया जा रहा है?
✅ वन आरक्षी की शैक्षिक योग्यता इंटरमीडिएट से बढ़ाकर स्नातक की जाए और ग्रेड पे ₹2000 से ₹2800 किया जाए।
✅ वन आरक्षियों को अतिरिक्त एक महीने का वेतन दिया जाए।
✅ वन दरोगा पद पर पदोन्नति का समय 10 साल से घटाकर 6 साल किया जाए और 100% प्रमोशन दिया जाए।
✅ जोखिम भत्ता, आहार भत्ता और आवास भत्ता दिया जाए।
✅ वन आरक्षियों की वर्दी में बदलाव कर कंधे पर एक स्टार लगाया जाए, ताकि उन्हें सम्मान मिले।
उत्तराखंड सरकार का अब तक का रवैया यह दिखा रहा है कि उन्हें ना तो जंगलों की चिंता है, ना वन कर्मचारियों की मेहनत की कोई कद्र। अगर आग की घटनाएं बढ़ती हैं, पर्यटकों की जान खतरे में आती है, और वन संपदा बर्बाद होती है, तो क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसकी जिम्मेदारी लेंगे? फायर सीजन सिर पर है… हर साल लाखों पेड़ जलकर राख हो जाते हैं… हजारों पशु-पक्षी इस आग में अपनी जान गंवा देते हैं… और इस बार, अगर आग बुझाने वाले ही प्रदर्शन पर हैं, तो हालात कितने भयानक होंगे, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। अब सवाल यह है कि धामी सरकार कब तक इनकी मांगों को अनदेखा करती रहेगी? क्या सरकार को किसी बड़े हादसे का इंतजार है? या फिर वन कर्मचारियों को उनका हक देकर इस संकट को टाला जा सकता है?