Naresh Tomar
पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल काम में कमर जावेद बाजवा रिटायर हो रहे हैं उन्होंने रिटायरमेंट से पहले अपनी आखिरी स्पीच में भारत पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान राजनीतिक असफलता के कारण टूटा उस समय भी आज ऐसे ही जेसे हालात पाकिस्तान में बने हुए थे।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने बुधवार को कहा कि पाकिस्तान का टूटना और बांग्लादेश बन्ना सैन्य असफलता नहीं बल्कि राजनीतिक असफलता थी। जो आज भी पाकिस्तान में देखने को मिल रही है, जनरल बाजवा ने रिटायरमेंट से पहले अपने आखिरी सार्वजनिक संबोधन में सेना विरोधी बयानों की आलोचना की और अपने देश के नेताओं से पाकिस्तान को फिर टूटने से बचने को कहा।
1971 युद्ध में में करारी हार पा चुके पाकिस्तान की सेना जनरल ने अपनी स्पीच का इस्तेमाल पाक सेना की बड़ाई और भारत की आलोचना के लिए किया।जनरल बाजवा ने कहा मैं आज ऐसे मुद्दे पर बात करना चाहता हूं, जिस पर लोग बात करने से फ्रेज करते हैं। यह मुद्दा है 1971 की जंग का पाकिस्तान का बंटवारा के सेना के कारण नहीं हुआ बल्कि एक राजनीति नाकामी थी। लड़ने वाले फौजियों की संख्या 92 हजार नहीं 34 हजार थी, बाकी लोग अलग-अलग सरकारी डिपार्टमेंट में थे। 34 हजार सेना का मुकाबला, 2 लाख 50 हजार भारतीय सेना 1-50 हजार मुक्ति वाहनी के साथ युद्ध था। हमारी पाकिस्तान सेना बहुत बहादुर लेडी,पाकिस्तान की सेना के बहादुरों को आज तक शहादत का सम्मान नहीं मिला है।जनरल बाजवा के बयानों से ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे वह जाते जाते पाकिस्तान सेना को बहादुर दिखाना चाहते हो।1971 की जंग में पाकिस्तान की हार हुई और उनसे जुड़े ऐसे बयान आए जिससे लगता है जैसे भारत के सैनिकों की संख्या ज्यादा थी इसलिए पाकिस्तान सेना की हार हुई थी।
लेकिन वह अपनी स्पीच में इस बात का जिक्र करना भूल गए कि पाकिस्तान सेना हारी नहीं क्योंकि वह लड़ी ही नहीं थी, अगर 1971 की जंग की बात की जाए तो पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण किया था। उन्होंने भारत की सेना के साथ में लड़ने से पाकिस्तान सेना ने साफ मना कर दिया था, तो जनरल बाजवा की जो स्पीच दी गई है वह कितनी झूठी है यह पाकिस्तान के लोग में भी इस बात का जिक्र कर रहे हैं। बाजवा पाकिस्तान सेना के सबसे बड़े अधिकारी लेकिन वह अपनी सेना को बहादुर दिखाने के चक्कर में युद्ध की नीति से जुड़ा एक अहम नियम भूल गए, वह यह कि युद्ध संख्या से नहीं हिम्मत और रणनीति से जीता जाता है।
जिस 1970 के युद्ध के बाद जनरल बाजवा कर रहे हैं, उस समय भारत में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और शेम मानिक शा आर्मी चीफ थे। इंदिरा गांधी ने मानेक्शा से अप्रैल में युद्ध करने को कहा था, तब मानेक्शा ने साफ कह दिया था, अभी सेना तैयार नहीं है, कुछ महीने में बारिश आ जाएगी और पूरी भारतीय सेना बांग्लादेश के बाढ़ में फाँस जाएगी। जिससे हजारों सैनिक शहीद हो जायेंगे। पूरी तैयारी के साथ भारत ने 3 सितंबर को हमला किया और 16 सितंबर तक पाकिस्तान सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। उन्होंने भारतीय सेना के साथ लड़ने से साफ मना कर दिया था और इसका जिम्मेदार पाकिस्तान की राजनीतिक परिस्थिति को बताया था। जनरल बाजवा भी आज उसी बात का जिक्र कर रहे थे जहां भारत में अब पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर को लेने की बात की है वही बलूचिस्तान सहित कश्मीर के सभी हिस्सों को लेने के लिए भारतीय सेना के एक बड़े अधिकारी ने कहा है कि हम मोदी सरकार की सहमति का इंतजार कर रहे हैं।
जिस दिन सरकार ने सहमति दे दी उसी दिन पाकिस्तान काश्मीर भी भारत का हिस्सा होगा।
इसी बात का जिक्र आज जनरल बाजवा ने अपनी आखिरी स्पीच में कहा कि आज भी पाकिस्तान के राजनीतिक हालात बिल्कुल 1971 राजनीतिक हालात के समान ही है।अगर पाकिस्तान मे यही हालत रहे तो भारत ऑक्यूपाइड कश्मीर को अपना हिस्सा बना लेगा और पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता है।