16 जून, 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ बादल फटने की घटना ने कई परिवारों के चिराग बुझा दिए। यह त्रासदी सुनामी के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा थी। पांच हजार से ज्यादा लोगों ने इस त्रासदी में अपनी जान गंवा दी और हजारों तो ऐसे हैं जिनका आज पांच साल बाद भी कोई अता-पता नहीं है। पांच साल पहले केदारनाथ में जब कुदरत का कहर बरसा तो सब तहस-नहस हो गया था। जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा मौत का मंजर अपने साथ बहा कर ले जा रही थी। अलीगढ़ के थाना बन्ना देवी स्थित लोहिया नगर का मूल निवासी राजेश पुत्र हरिश्चंद्र भी उन अभागों में से एक था, जिसका आज तक पता नहीं चल सका है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राजेश अपनी पत्नी सीमा तथा बच्चों के साथ गाजियाबाद रहने लगा था। जहां से वह तीन बच्चों चंचल, दुर्गेश व शिवानी के साथ केदारनाथ दर्शन के लिए गया। राजेश का आपदा के बाद कोई पता नहीं चला, साथ ही पत्नी सीमा बच्चे दुर्गेश, शिवानी व चंचल भी बिछड़ गए। चंचल जो मानसिक दिव्यांग के साथ साथ आंखों से कम देख पाती थी तभी से जम्मू में दिव्यांग बालिकाओं के लिए चलने वाले शेल्टर होम में रह रही थी। बाल कल्याण समिति जम्मू की अध्यक्ष शालिनी शर्मा ने जब बालिका से बात की तो उसने अलीगढ़ में रहने वाले अपने परिजनों के विषय में बताया। इसके उपरांत शालिनी शर्मा ने डेढ़ माह पूर्व शहर विधायक संजीव राजा से संपर्क स्थापित कर बालिका के परिजनों के तलाश हेतु मदद मांगी। शहर विधायक ने तत्काल उड़ान सोसाइटी द्वारा संचालित अलीगढ़ चाइल्ड लाइन के निदेशक ज्ञानेंद्र मिश्रा से बालिका के परिजनों का पता लगा बालिका को परिजनों के सुपुर्द करने हेतु कार्यवाही के लिए कहा। जिसके बाद बालिका के बाबा हरिशचंद को बन्ना देवी पुलिस के माध्यम से खोजा गया। परिजनों की सहमति उपरांत बालिका को आज दादी शकुंतला के सुपुर्द बाल कल्याण समिति के सदस्यों मटरू मल, अजय सक्सेना, साधना गुप्ता, पद्मा रानी, काउंसलर सीमा रानी के द्वारा दिया गया। चाइल्ड लाइन की समन्वयक नैंसी वर्गीस, नदीम अहमद, निर्मल कुमारी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा।