भीमा कोरेगांव केस में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की संवैधानिक पीठ ने इस केस में सीधे दखल देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने गिरफ्चार सभी आरोपियों को हाउस अरेस्ट की मीयाद चार सप्ताह के लिए और बढ़ा ही हैं। कोर्च ने आज अपने फैसले में कहा कि आरोपी तय नहीं कर सकते, कौन-सी एजेंसी जांच करेगी और कैसे। आपको बता दे, भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने पांच नक्सली विचारकों वरवर राव, अर्जुन फरेरा, वरनोन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज तथा गौतम नवलखा को 29 अगस्त को विभिन्न शहरों से गिरफ्तार किया था। अदालती आदेश पर अभी वे सभी अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं। इन पर नक्सलियों से संपर्क रखने का आरोप लगाया गया है।
भीमा कोरेगांव केस में नक्सली विचारकों की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर तथा कुछ अन्य प्रमुख हस्तियों ने उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए तत्काल रिहाई और गिरफ्तारी की एसआइटी से जांच कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ती एएम खानविलकर और न्यायमूर्ती डीवाई चंद्रचू़ड की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 20 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इससे पहले 19 सितंबर को कोर्ट ने कहा था कि वह इस केस को ‘पैनी नजर’ से देखेगा ताकि अनुमानों की वेदी पर आजादी की बलि न चढ़े। महाराष्ट्र पुलिस ने इन सभी आरोपितों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने का दावा करते हुए दलील थी कि कोर्ट को आपराधिक मामले में किसी तीसरे पक्ष की याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने इस दलील पर नाराजगी जताई थी