दिल्ली के एक पत्रकार हैं, माफ कीजिए डिजाइनर पत्रकार। बीते रविवार रात करीब 9 बजे इन्होंने अपने घर जामिया नगर जाने के लिए एक ओला कैब बुक करवाई।
ओला कैब का ड्राइवर इन्हें जामिया नगर से पहले ही उतारने लगा। जब इन्होंने जामिया नगर में स्थित अपने घर तक चलने की जिद की तो ड्राइवर ने साफ मना कर दिया और वहीं उतार दिया। जब उन्होंने इसका कारण जानना चाहा तो ड्राइवर ने कहा “जामिया एक गन्दी लोकैलिटी है। वहां अजीब लोग रहते हैं।”
ड्राइवर जबरदस्ती डिजाइनर पत्रकार साहब को वहीं उतार कर चला गया। इसके बाद डिजाइनर पत्रकार साहब ने ओला कम्पनी में शिकायत दर्ज करवाई कि मुस्लिम बाहुल्य इलाके में रहने की वजह से उनका साथ यह सब हुआ। ओला ने डिजाइनर पत्रकार साहब से माफी मांगी कि हमारी कम्पनी किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार नहीं करती। ड्राइवर को बर्खास्त कर उसकी सेवायें समाप्त कर दी गयीं हैं।
डिजाइनर पत्रकार इतने पर भी नहीं रुके, इन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई , फिर अपने फेसबुक और ट्विटर एकाउंट पर अपनी आपबीती लिख डाली। जिस चैनल के लिए डिजाइनर पत्रकार पत्रकारिता करते है उस चैनल ने इस खबर को प्रमुखता से दिखाया कि एक मुस्लिम बाहुल्य इलाके में रहने के कारण एक मुस्लिम के साथ भेदभाव किया गया। खबर का भाव ऐसा बनाया कि जैसे मोदी सरकार के आने के बाद ऐसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है।
चैनल ने भी खूब तमाशा बनाया, डिजाइनर पत्रकार ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर के तथाकथित सेक्युलरलो, लिबरलों की बम्पर सहानुभूति बटोर ली लेकिन किसी ने भी कैब ड्राइवर के उन शब्दों पर ध्यान ही नहीं दिया जो उसने कहे थे।
“जामिया एक गन्दी लोकैलिटी है। वहां अजीब लोग रहते हैं।” आखिर उसने यह शब्द क्यों कहे ?
एक कस्टमर के साथ निसंदेह यह व्यवहार गलत था जिसकी उसे उचित सजा मिल चुकी है लेकिन ओला कैब के ड्राइवर के शब्दों का भी विश्लेषण किया जाना भी जरूरी था जिसे पूरी तरह से अनदेखा किया गया कि आखिर उसने जामिया को एक गन्दी लोकलिटी क्यों कहा। पूरे मामले को डिजाइनर पत्रकार ने हिन्दू-मुस्लिम रंग देकर मामला ही उलट दिया। चैनल ने मौका लपका, हिन्दू-मुस्लिम तड़के के साथ-साथ उस मामले में राजनीतिक तड़का लगाकर अपने चिर-परिचित अंदाज में केंद्र सरकार पर उंगली उठा दी।
न्यूयॉर्क दुनिया के सबसे आधुनिक शहरों में से है। अगर आप वहां के किसी टैक्सी ड्राइवर से रात के ढाई बजे भी टाइम्स स्क्वायर चलने को कहेंगे, वह खुशी-खुशी तैयार हो जायेगा। लेकिन उससे आप दोपहर 12 बजे मेनहट्टन के साउथ प्रेसिन्ट इलाके में चलने को कहिये, टैक्सी ड्राइवर साफ मना कर देगा। यही हाल लंदन के हार्ल्सडन और हेकनेए जैसे इलाकों का है। कोई शहर कितना भी आधुनिक हो जाये लेकिन उसमें कुछ ऐसे इलाके पनप जाते हैं जहां दिन दहाड़े जाने से भी इंसान डरता है, रात की बात ही छोड़ दो।
दिल्ली में जामिया क्या है ?
अगर आपको यह अच्छे से जानना है तो शाम ढलने के बाद किसी रिक्शेवाले या ऑटोवाले से जामिया नगर चलने के लिए पूछिये। आपको पता चल जाएगा कि इस इलाके की दिल्ली में कितनी दहशत है। कितने ही रिक्शावालों, ऑटोवालों और टैक्सी ड्राइवरों से मारपीट, लूट खसोट की गयी, उनके मोबाइल छीन लिए गए, उनकी टैक्सी हथिया ली गयी, दिन भर के कमाये पैसे लूट लिए गये। जिस इलाके में चोर, लुटेरे , उठाईगीरे, गिरहकट भरे पड़े हों वहां पांच-सात लाख की गाड़ी लेकर एक ओला कैब ड्राइवर कैसे जा सकता है। तो ऐसे इलाके में ओला कैब वाला ड्राइवर दिन ढलने के बाद जाने से कतरायेगा ही।
2008 का बाटला हाउस एनकाउंटर याद कर लीजिए। जहां इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों के साथ पुलिस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर महेश चंद्र शर्मा शहीद हो गए थे। वह बदनाम बाटला हाउस भी जामिया इलाके में ही है। एक आतंकवादी के साथ-साथ कई स्थानीय लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिनके बचाव में जिस विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने व्यापक रूप से विरोध प्रदर्शन किया था, वह जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय भी इसी इलाके में है।
इस इलाके को अपराधियों व आतंकवादियों की पनाहगाह और अवैध हथियारों का गोदाम कहा जाता है। यहां के कई घरों पर पाकिस्तानी झंडे फहरते देखे गए हैं। इसलिए तारेक फतह ने एक बार इस इलाके बारे में लिखा था कि,” दिल्ली में एक मिनी पाकिस्तान बन रहा है, जो खुद जामिया में है।”
यहां एक बात खास ध्यान देने वाली है कि अरशद साहब ने मामूली सी बात को बड़ी सफाई से हिन्दू-मुस्लिम का रंग दे दिया। खबरें कैसे घुमायी जाती हैं, पत्रकार असद अशरफ और उसके चैनल से सीखिए।
नरेश तोमर की कलम से