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जंगल की आग पर काबू पाने के लिए शीतलाखेत मॉडल, जनवरी में गढ़वाल के चार स्थानों पर लगी आग

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जनवरी के आखिरी छह दिन में ही चार जगह गढ़वाल के पौड़ी में चीड़ के वन, वरुणावत के जंगल, पीपलकोटी समेत उत्तरकाशी की वाड़ाहाट रेंज में आग लगने की घटनाएं हुईं। इससे आगामी फायर सीजन में क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
पिछले साल गढ़वाल और कुमाऊं के जंगलों में हुई भीषण तबाही को देखते हुए इस बार वनाग्नि रोकने के लिए शीतलाखेत मॉडल को अपनाने पर चर्चा चल रही है। हालांकि इस मॉडल की पहले भी सीएम तारीफ कर चुके हैं और इसे अपनाने के निर्देश दिए थे, लेकिन सरकारी कामकाज अपने तरीके से चलता रहा।
शीतलाखेत मॉडल के संयोजक गजेंद्र रावत ने बताया कि वर्ष-2003 की गर्मियों की बात है- अल्मोड़ा शहर की लाइफलाइन कही जाने वाली कोसी नदी में पानी का प्रवाह सामान्य से काफी कम हो गया। इससे गाड-गदेरे सूख गए।
इसके बाद उन्होंने कई लोगों के साथ मिलकर पहले पानी बचाओ, फिर जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान शुरू किया। उन्होंने कहा कि पहले शीतकाल लंबे समय तक चलता था, जिससे पेड़ों व घास में नमी रहती थी, जिससे अप्रैल-मई में ओण, आड़ा या केड़ा जलाया जाता था। लेकिन पिछले एक दशक से तापमान में बढ़ोतरी होने लगी है। आमतौर पर गर्मियों का मौसम शुरू होने पर ओण जलाए जाते हैं।
इसी मौसम में जंगलों में चीड़ के पत्ते यानी पिरूल गिरने लगते हैं और तेज हवाएं चलती हैं। इन हवाओं से आग की कोई चिंगारी उड़कर आसपास के जंगल तक पहुंच जाती है और वहां सूखा पिरूल तुरंत आग पकड़ लेता है। ऐसे में ओण जलाने की परंपरा को व्यवस्थित करने की योजना बनाई गई।
ऐसे बना शीतलाखेत मॉडल
गजेंद्र रावत ने अल्मोड़ा क्षेत्र में काम कर रहे जंगल के दोस्त, प्लस अप्रोच फाउंडेशन और ग्रामोद्योग विकास संस्थान जैसे संगठनों से संपर्क किया और जंगल में आग रोकने के लिए प्रयास करने का प्रस्ताव रखा। इसमें पहले शीतलाखेत के आसपास के 40 गांवों के लोगों से संपर्क कर उन्हें समझाया गया कि सिर्फ खेतों की मेड़ों और आसपास की बंजर जमीन में उगी झाड़ियों को सर्दियों के मौसम में ही काटना है और 31 मार्च से पहले जला देना है। इसके बाद एक अप्रैल को ओण दिवस मनाया जाए।

ओण दिवस मनाने की परंपरा वर्ष-2022 से शुरू की गई। ग्रामीणों की इस पहल से प्रभावित होकर वर्ष-2023 में अल्मोड़ा की तत्कालीन डीएम वंदना सिंह ने पूरे जिले में हर साल 1 अप्रैल को ओण दिवस मनाने की घोषणा की। इसके लिए तत्कालीन डीएफओ ने भी सहयोग किया, जिससे कई जिलों के लोग इस पहल में शामिल हुए। जनसहभागिता के लिए स्याही देवी विकास मंच ने महिला समूहों, सरपंचों और ग्राम प्रहरियों को शामिल किया है। साथ ही ड्रोन तकनीक से निगरानी की योजना बनी है।
यूकॉस्ट और पर्यावरणविदों ने भी सराहा
शीतलाखेत मॉडल के बारे में यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को बताया और इसे पूरे प्रदेश में लागू करने की जरूरत बताई। पर्यावरणविद अनिल जोशी ने भी इस मॉडल की आवश्यकता पर जोर दिया है। मॉडल से जुड़े लोगों का कहना है कि वन विभाग के प्रयास आमतौर पर आग लगने के बाद के हैं, आग लगने से पहले के नहीं।
गौरव की बात यह है कि राज्य में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले आठ व्यक्तियों को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। इनमें जंगल के दोस्त समिति के सलाहकार गजेंद्र पाठक भी शामिल रहे हैं।

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