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भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार महिला आरक्षण बिल के बारे में क्या सोच रही है, यह पता नहीं चल रहा है। बिना महिला आरक्षण बिल के ही महिलाएं भाजपा और नरेंद्र मोदी के पक्ष में मतदान कर रही हैं। केंद्र सरकार ने तीन तलाक को अपराध बनाने का कानून बनाया तो कहा गया कि मुस्लिम महिलाएं भाजपा का साथ देंगी। मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर देने की उज्ज्वला योजना शुरू हुई तो कहा गय कि महिलाओं की बड़ी समस्या दूर हो गई और वो भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगी। लेकिन इन सबके बीच महिला आरक्षण की बात एक बार भी नहीं हो रही है।
सवाल है कि उसके लिए किस मौके का इंतजार हो रहा है? क्या अगले लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार यह बिल ला सकती है? ध्यान रहे एक समय था, जब भाजपा इस बिल का बहुत समर्थन करती थी लेकिन तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए में शामिल कई दल इसके घनघोर विरोधी थे। यादव नेताओं की तिकड़ी यानी मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव ने इसका विरोध किया था। अब मुलायम सिंह इस दुनिया में नहीं हैं और शरद व लालू यादव दोनों संसद में नहीं हैं। ज्यादातर पार्टियों ने विरोध छोड़ कर इसका समर्थन शुरू कर दिया है फिर भी इसे नहीं पेश किया जा रहा है।
बिना किसी कानून के अपनी पार्टी में 30 से 40 फीसदी तक महिलाओं को टिकट देने वाली दो पार्टियों- तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल ने महिला आरक्षण विधेयक पेश करने की मांग की है। इन दोनों पार्टियों पिछले चुनाव में एक तिहाई से ज्यादा टिकट महिलाओं को दी थी और एक मिसाल कायम की थी। ये दोनों पार्टियां संसद के शीतकालीन सत्र में इस बात की मांग कर रही हैं कि बिल पेश किया जाए। लेकिन केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी किसी खास मौके के इंतजार मे चुप बैठे हैं।
संसद की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने भी इसका समर्थन किया है। बीजू जनता दल और तृणमूल कांग्रेस ने भी महिला आरक्षण बिल लाने की मांग की है। कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राजस्थान में कहा है कि यह बिल समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि अब भी वैध और जीवित है। असल में इस बिल को मनमोहन सिंह की सरकार के समय राज्यसभा में पास किया गया था। रमेश ने संवैधानिक प्रावधान का जिक्र करते हुए बताया कि चूंकि राज्यसभा कभी भंग नहीं होती है इसलिए वहां से पास होने वाला बिल हमेशा वैध बना रहता है। उनका कहना है कि करीब 11 साल पहले राज्यसभा से पास हुआ महिला आरक्षण बिल अब भी जीवित है और सरकार चाहे तो उसे लोकसभा से पास करा कर कानून बना सकती है। सो, गेंद अब केंद्र सरकार और भाजपा के पाले में है। उसे फैसला करना है कि कब महिला आरक्षण लागू होगा।