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एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अब हर महीने हजारों साइबर हमले हो रहे हैं। इसे देखते हुए प्राइवेट सेक्टर में साइबर बीमा एक बड़े धंधे के रूप में उभर रहा है। मगर असल सवाल यह है कि ऐसे हमलों को कैसे रोका जाए और हैकरों को कैसे पकड़ा जाए।
भारत के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में साइबर हमला होने के 11 दिन बाद तक हैक हुए डेटा को बहाल नहीं किया जा सका। ना ही भारतीय एजेंसियां पक्के तौर पर यह पता लगा पाईं कि ये हैकिंग किसने की। ऐसे कयासों का कोई मतलब नहीं है कि इसके पीछे चीनी हैकरों का हाथ हो सकता है। जरूरत ऐसे ठोस निष्कर्ष की है, जिसके आधार पर (अगर यह कयास सही है तो) चीन सरकार के दो टूक बातचीत की जा सके। बहरहाल, वैसे साक्ष्य तभी प्राप्त होगा, अगर देश के अंदर साइबर सुरक्षा की पुख्ता और चुस्त व्यवस्था होगी।
यहां यह याद करना प्रासंगिक है कि पिछले साल अमेरिका के टेक्सस राज्य में तेल और गैस आपूर्ति करने वाली सबसे बड़ी कंपनी के डेटाबेस पर साइबर हमला हुआ था। कई दिनों तक तेल और गैस की आपूर्ति प्रभावित रही। तब हैकरों को मोटी रकम फिरौती के रूप में देकर सिस्टम को दोबारा चालू किया गया। लेकिन महीने भर के अंदर अमेरिकी एजेंसियों ने हैकरों को धर-दबोचा।
उनसे वो रकम वापस ले ली गई, जो उन्होंने वसूली थी। बताया जाता है कि तब से हैकर अमेरिकी डेटा में हाथ डालने से बच रहे हैँ। बेशक ऐसी ही मिसाल भारत में भी कायम करने की जरूरत है।
लेकिन यहां ऐसा होता नहीं दिख रहा है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अब हर महीने हजारों साइबर हमले हो रहे हैं। इसे देखते हुए प्राइवेट सेक्टर में साइबर बीमा एक बड़े धंधे के रूप में उभर रहा है। मगर असल सवाल यह है कि ऐसे हमलों को कैसे रोका जाए और हैकरों को कैसे पकड़ा जाए। वर्तमान सत्ताधारी पार्टी पहले की सरकारों पर भारत को सॉफ्ट स्टेट बना देने का आरोप लगाती थी। लेकिन अब उसके शासन काल में भारत कितना ‘हार्ड स्टेट’ बना है, उसकी असल परीक्षा हाई टेक क्षेत्र में ही है। फिलहाल, इस इम्तिहान में यह राज्य पास होता नहीं दिख रहा है। साइबर सुरक्षा पर आसन्न खतरे से परिचित लोगों को एम्स के घटनाक्रम ने झकझोर दिया है। लेकिन इससे सरकारी तंत्र भी हिला है, इसके संकेत फिलहाल मौजूद नहीं हैँ।