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द्रोणागिरी गॉव…! जहाँ हनुमान जी के कारण आज भी बहिष्कृत हैं गॉव की महिलाएं..?

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द्रोणागिरी गांव से(मनोज इष्टवाल)

बात अजीब सी है लेकिन है एकदम सौ आने सच. वो हनुमान जी ही थे जिनके कारण हजारों बर्ष बाद भी यहाँ की महिलाएं अपने समाज व अपने देवता की उपेक्षा का दंश झेल रही

बस उस बुजुर्ग महिला की यह गलती थी कि उसे लक्ष्मण के प्राण संकट में होने की खबर से हनुमान जी पर दया आ गयी और उसने अपनी अंगुली उस ओर उठा दी जहाँ संजीवनी बूटी थी.धर्म संस्कृति रहस्य रोमांच और ट्रेकिंग की बात उत्तराखंड की इस देवभूमि में बेहद अनूठी है.

द्रोणागिरी गांव

हम वहां जा रहे हैं जहाँ त्रेता में भगवान् राम के दूत हनुमान के कदम पड़े थे. और वह उस अमूल्य वस्तु को चुराकर उत्तराखंड से श्रीलंका ले गए जिसे संजीवनी कहते हैं. यह चोरी हनुमान जी ने की और इसका दंड भुगतना पड़ा द्रोणागिरी गॉव की सभी महिलाओं को…! आज भी द्रोणागिरी की ये महिलाएं हनुमान जी के कारण बहिष्कृत हैं.

द्रोणागिरी गांव

द्रोणागिरी उत्तराखंड प्रदेश के चमोली जिले में भी है और अल्मोड़ा जिले में भी. इसलिए हम बात चमोली जिले की कर रहे हैं जो राष्ट्रीय राजमार्ग (ऋषिकेश-बदरीनाथ) के जोशीमठ से मलारी वाले रास्ते पर पड़ता है. द्रोणागिरी गॉव तक पहुँचने के लिए हमें राष्ट्रीय राजमार्ग छोड़कर जोशीमठ से मलारी का अंतर-जनपदीय सड़क मार्ग पकड़ना पड़ता है जिसमें जोशीमठ से जुम्मा तक लगभग 45 किमी. का सफ़र करने के बाद हमें लगभग 10 किमी. पैदल ट्रेक करके द्रोणागिरी गॉव पहुंचना होता है. जिसके लिए यह जरुरी है कि आप हरिद्वार, देहरादून, ऋषिकेश, पौड़ी, श्रीनगर, या अल्मोड़ा से सुबह यात्रा कर रात्री विश्राम जोशीमठ करें व वहां से सुबह सबेरे मलारी जुम्मा के लिए निकल पड़ें. मलारी सडक मार्ग के पास का भोटिया जनजाति का लगभग 300 परिवारों का गॉव है जिसमें लगभग 1000 परिवार निवास करते हैं. द्रोणागिरी गॉव तक पहुँचने के लिए भले ही आपको मात्र 10 किमी. का पैदल सफ़र करना पड़ता है लेकिन दम फुला देने वाली इस चढ़ाई में आपको कहीं कहीं ऑक्सिजन की कमी भी महसूस होती है.

लगभग 3610 मी. (11,855 फिट) की उंचाई में बसा यह गॉव कभी वृहद् आबादी का हुआ करता था लेकिन प्रदेश सरकार की उपेक्षा के कारण अब यहाँ मात्र 30-35 परिवार ही दिखने को मिलते हैं वो भी 40 बर्ष की उम्र से ऊपर के चेहरे ! क्योंकि बाकी सब आकर निम्न स्थलों के गॉव में जा बसे हैं. प्रकृति का सबसे निराला खेल तो यहाँ यह है कि लगभग 15000 फिट की उंचाई पर यहाँ हिमालयी भूभाग में देवदार का घना जंगल है और वहां आपको पक्षियों की चहचाहट सुनाई देगी जो वास्तव में अचम्भित करने वाली बात है क्योंकि इतनी उंचाई पर पक्षियों का होना अपने आप में बेहद आश्चर्यजनक है.

द्रोणागिरी गांव

हिमालयी भू-भाग में जितनी भी ट्रैकिंग की कहीं भी इतनी उंचाई पर चिड़ियों का चह्चहना नहीं सुना. उनका कलरव आपको आत्ममुग्ध कर देता है. यहाँ की खेती पर भी बन विभाग की कुत्सित नीति का ग्रहण लगा और जो भी खेत उन्हें बंजर दिखा उसी पर उन्होंने देवदार कैल के वृक्ष रोपित करने शुरू कर दिए. कुछ लोगों का मानना है कि वे भी गॉव कब का छोड़ देते लेकिन नीचे जाकर खायेंगे क्या. गरीबी यहाँ का सबसे बड़ा अभिशाप है.

सिर्फ वन्य औषधियों के आधार पर जीवन बसर करने वाले ये ग्रामीण आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. सरकार के पास इनके लिए योजना के तौर पर तथाकथित वन माफिया हैं जो यहाँ हिम भालू और कस्तूरी का शिकार करने के लिए मौजूद रहते हैं. यहाँ के ग्रामीण सिर्फ हिम पिघलने का इन्तजार करते हैं ताकि घाटी पर रात को चमचमाने वाली दिव्य औषधियों के उन्हें दर्शन हों और वे दूसरे दिन उठकर उन औषधियों की तलाश में द्रोणागिरी पर्वत की बर्फीली वादियों के नीचे बसे लगभग 500 ग्लेशियरों के 5.5 किमी. दायरे में फैले उस क्षेत्र का भ्रमण कर मुख्यतः कीड़ा जड़ी ढूंढ पाएं जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रति किलो थोक बिक्री 10 लाख से लेकर 15 लाख है जिसे खरीदने लोग द्रोणागिरी जैसे गॉव तक पहुँच जाते हैं.

द्रोणागिरी गांव

इन्हीं ग्लेशियरों से धौली गंगा का उद्गम है, यहीं बागिनी ग्लेशियर, गिर्थी ग्लेशियर, चंगबांग ग्लेशियर, नीति ग्लेशियर इत्यादि निकलते है. द्रोणागिरी पर्वत पार तिब्बत है अत: इस गॉव को भारत का अंतिम गॉव भी इस छोर से कहा जाता है. रुइन्ग गॉव के पास बागिनी नाला में बने पुल की स्थिति वर्तमान में बेहद ख़राब है जिसे सिर्फ सीखचों के सहारे खड़ा करने की कोशिश की गयी है.वहीँ लगभग 13000 फिट की उंचाई पर स्थित भोजपत्र के जंगल में आग देखकर प्राण मुंह पर आ जाते हैं. पूछने पर पता चला कि वन माफिया जरुर कस्तूरी या भालू के शिकार पर निकला है वे चाहते हैं कि आग के कारण ये जानवर बाहर निकले तो इनका आराम से शिकार किया जाए ताकि वह भालू की खाल व तीति, कस्तूरी की खाल व कस्तूरी को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अच्छे दामों पर बेच सके.

इस बार आग देखकर वन विभाग सक्रिय नजर आया व आग बुझाने महकमा आखिर नींद से जागकर पहुँच ही गया जिसकी उम्मीद ग्रामीणों को भी नहीं थी.द्रोणागिरी गॉव में जाकर आप महसूस करेंगे कि जिससे भी आप यहाँ मिल रहें हैं वह बुजुर्ग है. न यहाँ जवान लड़का दिखेगा न जवान लड़की या बच्चा..! हाँ बहुएं जरुर एक आध दिख जायेंगी जो वन्य औषधि की तलाश में यहाँ होंगी वरना सभी गॉव छोड़कर निचले स्थलों के गॉव जा बसे हैं ताकि शिक्षा भी ले सकें और वक्त के साथ कदमताल भी कर सके !

द्रोणागिरी गांव

यहाँ की रामलीला अपने आप में बेहद लोकप्रिय इसलिए है क्योंकि यहाँ हनुमान जी का भी वैसा ही बहिष्कार है जैसा यहाँ की महिलाओं का मंदिर प्रवेश में बहिष्कार माना जाता है. यहाँ मात्र तीन दिन की राम लीला के वे अंश प्रस्तुत होते हैं जिसमें हनुमान जी का कहीं अभिनय न निभाना पड़े जिसमें एक दिन शुरुआती रामलीला का दूसरा दिन सीता स्वयम्बर और अंतिम दिवस राजतिलक का होता है. राजतिलक में भी हनुमान के किसी पात्र को नहीं दिखाया जाता.

आखिर हनुमान से द्रोणागिरी के गॉववासियों का ऐसा बैर क्यों है?

इस पर यहाँ के लोगों का कहना है कि यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है. मेघनाथ के बाण से घायल लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए सुसैन वैध के कहने पर जब हनुमान उड़कर हिमालय के भूभाग में पहुंचे तो द्रोणागिरी पर्वत पर उन्हें दिव्य औषधि चमकती नजर आई जो उनके वहां पहुँचते ही लोप हो गयी ऐसे में

हनुमान जी ने साधू के रूप में द्रोणागिरी के लोगों से अनुरोध किया कि वे संजीवनी के लिए आये हैं

ताकि लक्ष्मण के प्राण बच सकें वे उन्हें बताएं कि वह कहाँ मिलेगी जब किसी ने उन्हें नहीं बताया तब उन्होंने एक बूढी महिला से विनम्र भाव से अनुरोध किया. महिला को दया आई और उन्होंने अंगुली द्रोणागिरी पर्वत की ओर उठा दी जिसे यहाँ के लोग पर्वत देव के रूप में पूजते हैं. हनुमान द्रोणागिरी पर्वत पहुंचे जब उन्होंने वहां दिव्य औषधियों को प्रकाशमय देखा तो वे भ्रमित हो गये कि आखिर किस को लेकर जाएँ जैसे ही उन्होंने एक औषधि को लेना चाहा सब औषधियां लोप हो गयी ऐसे में हनुमान को एक युक्ति सूझी उन्होंने पर्वत का वह चमकने वाला दांया भाग पूरा ही उखाड़ लिया और उसे लेकर लंका जा पहुंचे. आज भी श्रीलंका में स्थित द्रोणागिरी पर्वत वही पर्वत है जिसे हनुमान उखाड़ ले गए थे.

द्रोणागिरी गॉव के लोग तब उस बुढ़िया पर इतने नाराज हुए कि उन्होंने उस बुढिया का गॉव निकाला कर दिया और पंचायत बुलाकर यह फैसला सुना दिया कि आज से पर्वत देव की पूजा में किसी भी औरत को मंदिर के अन्दर जाने की अनुमति नहीं हैj. तब से द्रोणागिरी की महिलाएं पर्वत देव की पूजा से बहिष्कृत हैं और हनुमान जी पूरे द्रोणागिरी क्षेत्र से ! पर्वत देवता की पूजा करने द्रोणागिरी के लोग हर बर्ष एक तय मुहूर्त पर अपने गॉव जरुर आते हैं. हर बर्ष यह पूजा जून माह में होती है.यहाँ पूजा में जब भी पर्वत देव की जागर लगती है और जिस किसी पर भी पर्वत देव का पश्वा उतरता है उसकी दांयी भुजा तब तक मृत सामान रहती है जब तक पश्वा शांत नहीं हो जाया वह ऐसे झूलती नजर आती है मानो उसे कंधे से उखाड़कर अलग कर दिया गया हो. पश्वा के उतरते ही लोग मंदिर आँगन में खडी महिलाओं को पूजा से दूर जाने को कहते हैं. जबकि पश्वा हनुमान की करनी का बोध आज भी ग्रामीणों को सुनाता है .

ग्रामीण आज भी यहाँ हनुमान का नाम भूल से भी नहीं लेना चाहते वहीँ महिलाएं भी हनुमान के इस कृत्य से अपने को त्रासित मानती हैं. बेहद मनमोहक द्रोणागिरी घाटी में कई रहस्य और रोमांच आज भी प्रकृति की गोद में कलरव करते नजर आते हैं .

द्रोणागिरी गांव

सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह भी है कि इतनी उंचाई वाले स्थान में गौरैया (घेंडूडी) व घुगुती जैसे पक्षी विचरण करते हुए आपको दिख जायेंगे. अगर इस क्षेत्र पर माफियाओं और उन कुत्सित राजनीतिज्ञों की नजर न लगे तो आज भी इसका स्पर्श आपके स्पंदन के लिए बान्हे फैलाए बाट जोह रहा है उस विकास की जिसकी दिव्य किरण प्रकाश पुंज बिखेरकर यहाँ के जनमानस की गरीबी को आर्थिकी में बदलकर ऐसे मार्ग को अग्रसित कर सकती है जिसे तरक्की कहा जाता है.फोटो- उदित घिल्डियाल

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