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जमात और मरकज़ आखिर है क्या?
जमात का अर्थ हुआ ‘कक्षा’ जैसे कि तुम कौनसी जमात में पढ़ते हो अर्थार्थ कौनसी ‘कक्षा’ में पढ़ते हो। अब इस जमात के नाम पर पूरे भारत से लाखों कट्टरपंथी मुस्लमान घरों से निकलते है और एक निश्चित स्थान पर पहुंचते है जिसे ‘मरकज़’ कहते है। यह मरकज़ अलग-अलग जिलों-तहसीलों और यहाँ तक कि ग्राम स्तर पर आयोजित होती है जहां जमात में आये लोगों को ‘इस्लामी ज्ञान’ बांटा जाता है जैसे कि नमाज़ पढ़ना, ज़कात देना और बाकी इस्लामी फ़र्ज़। जमात पर अधिकांश वयस्क ही जाते है क्योंकि कट्टरपंथी मुसलमानों के मासूम बच्चों को तो मदरसों में ही घेर लिया जाता है।
दिल्ली के निज़ाममुद्दीन में मरकज़ का इंटरनेशनल सेंटर है जहां विदेशी जमाती भी निरंतर जुटते आये है। इसी निज़ामुद्दीन की मरकज़ से कुछ ही दूरी पर चचा ग़ालिब की मज़ार भी है जिसे इस्लाम मे काफ़िर का दर्जा मुकर्रर है और मरकज़ में जुटे यह कथाकथित जमाती (विद्यार्थी) चचा ग़ालिब की मज़ार पर थूकना भी गैर इस्लामी समझते है।
जमात आती कहाँ से है और क्या इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा है?
जवाब है नही। सरकार को नही पता होता कि किस मरकज़ में कौन कहाँ से जुटता है। फ़र्ज़ करो जब आप केदारनाथ या बद्रीनाथ जाते है तो हर श्रद्धालु का रजिस्ट्रेशन ऋषिकेश में होता है परंतु जमात पर गए किसी भी व्यक्ति की कोई सूचना हमारे खुफिया विभाग या सरकार को नही होती।और ना ही कोई डाटा जमात जा रहे लोगो के दुवारा सराकर को मोहिया कराया जाता। कई मामले तो ऐसे भी सामने आए है जिसमे अपराधों में संलिप्त अपराधी जमाती बन भाग गए और पुलिस दुवारा उनको जमात में जुर्म से दूसरी जगह से गिरफ्तार किया गया हो।
जब हर गाँव, मोहल्ले और शहरों में मस्जिद-मदरसे खुले है और इस्लाम का ज्ञान बांचने को मुल्ला-मौलवी बैठे है. फिर इस जमात और मरकज़ की नौटनकी की आवश्यकता ही क्यों??
भाई यदि इस्लाम पढ़ना ही है तो कुरान है जो अब हर भाषा मे उपलब्ध है, मेरे पास भी अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करण उपलब्ध है, परंतु फिर भी जमात और मरकज़ क्यो? जवाब है ‘एकीकरण’ अर्थार्थ भारत के विभन्न प्रान्तों से आये मुसलमान जमात के नाम पर जुटे और जो एक अरब देश के ‘सुन्नी इस्लामी प्रचार के बहकवे’ पर काम करे। क्योकि भारत के अधिकांश मदरसे और मस्जिदे खाड़ी देशों के चंदे से ही जीवित है।
अब जब यह कथाकथित जमाती जब मरकज़ में बैठते है तो इन्हें इस्लाम धर्म प्रचार के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। चाहे वो कैसे भी हो पर एजेंडा मात्र एक है – वैश्विक इस्लामीकरण वो भी हर कीमत पर। नए मुस्लिम लोगो का दिमाक में डालने का काम किया जाता है. मरकज़ से लौटते ही हर जमाती अपने कट्टर सुन्नी उद्देश्य में जुट जाता है।
मरकज़ में विदेशी क्यों?? अकसर इन मर्कज़ो मे विदेशी मोमिन भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है जो विभिन्न प्रकार से विदेशी फंडिंग जुटाते है और नए रंगरूटों को वैश्विक इस्लामीकरण की प्रेरणा देते है।सभी विदेशी अरब के देशो से इस्मालीकरण करने के लिए पैसे जुटाने का काम करते है।
हालात देख लग रहा है कि निज़ाममुद्दीन की मरकज़ में कही कोरोना वायरस के तब्लीगी समाज लोगो के बीच जानबुझ कर तो कोरोना को फैला रहे थे। यह जांच और अध्यन का विषय अवश्य है।
निज़ाममुद्दीन की मरकज़ तो मात्र एक ट्रेलर है यदि भारत मे जमातों और मर्कज़ो पर कठोर प्रतिबंध नही लगाए गए तो भविष्य में हालात भयावह होंगे। कुछ आतकवादी तब्लिकि जमात के मानने वाले मिले हे .बल्कि ताब्लॉकि जमात के लोग यह मैंने को तैयार नहीं है
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