Naresh Tomar: देश के को पूरी तरह लाक डाउन कर दिया है। देश में कोराना के 1 हजार 24 मामले सामने आए हैं और कोरोना की वजह से 25 लोग मौत के मुँह में समा गए. वही 84 लोग ठीक होकर अपने घर भी चले गए. अभी भी 900 के लगभग मामले ऐसे हैं जिनकी जांच की जा रही है अभी तक उनकी रिपोर्ट नहीं आई।
अब सवाल यह उठता है कि कोरोना जैसी महामारी जिस तरह फैल रही है क्या हमारे ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसे हैं कि वह कोरोना जैसी महामारी को रोक सके. गांव तक स्वास्थ्य सुविधा इतनी बेहतर है कि हम ग्रामीण क्षेत्र में इसको रोक दे. इसको लेकर कुछ जागरूक गांव ऐसे थे जिन्होंने पहले ही बाहरी व्यक्तियों को अपने गांव में आने से रोक दिया था. कुछ गांव प्रधान और गांव के जागरूक लोग ऐसे भी थे जिनके द्वारा गांव में कोरोना वायरस को रोकने के लिए अपने गांव को सैनिटाइज किया। लकिन अभी भी ग्रामीण लोग सरकार के पहल की तैयारी का इंतजार करते दिख रहे है।
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के आंकड़े के हिसाब से देखो तो देश में कोरोना वायरस के मामले में बढ़ोतरी जारी रही। फिलहाल तो सवस्थ सुविधा के अनुसार अगर देखा जाए राज्य की सरकारों ने अपनी तैयारी की है. देश में करीब 26 हजार सरकारी हॉस्पिटल है इनमें से 21हजार ग्रामीण इलाकों में और 5 हजार हॉस्पिटल सरकारी इलाकों में है. लेकिन ग्रामीण इलाकों में ज्यादा हॉस्पिटल होने के कारण अगर वहां की सुविधा दी जाए तो ग्रामीण इलाके में फैलने से रोका जा सकता है. भारत को गांव का देश कहा जाता है उस लिहाज से सरकारी हॉस्पिटलों की संख्या भी गांव में ज्यादा है लेकिन अगर पर प्रति व्यक्ति बेड की बात की जाए तो 17सौ मरीज पर मात्र एक बेड बैठता है ऐसे में सरकार को अपनी तैयारी ग्रामीण क्षेत्र में और दूरस्थ करनी पड़ेगी।
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के स्रोतों की बात करें तो हर राज्य की आबादी के हिसाब से बिहार की हालत सबसे खराब नजर आती है 2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार के ग्रामीण इलाकों में करीब 10 करोड लोग रहते हैं. इस तरह से बिहार हर 1000 लोगों पर सबसे कम बेड वाला राज्य है। तमिलनाडु राज्य के ग्रामीण इलाकों में कुल 40169 बेड है और कुल 6 सरकारी अस्पताल है इन मामलों के हिसाब से तमिलनाडु में हर बेड पर 800 मरीज आते हैं
बिहार जैसे में केवल 5 टेक्स्ट लैबोरेट्रीज है जहां कोविड-19 का टेस्ट हो सकता है इन टेस्ट सेंटर में से तीन पटना में और दो दरभंगा में है। आईसीएमआर के मुताबिक पटना में 2 टेक्स्ट
लैबोरेट्रीज मशीन और और पीसीआर मशीनों के आने का इंतजार कर रही है। अगर जिला कासगंज की बात करें तो वहां के किसी मरीज को केवल कोरोना का टेस्ट कराने के लिए सबसे नजदीक केंद्र दरभंगा जाना पड़ेगा। जो कि 250 किलोमीटर दूर है. अगर उत्तरी जिला पश्चिमी चंपारण की बात करें तो टेस्ट बनाने के लिए किसी भी शख्स को 230 किलोमीटर दूर दरभंगा जाना पड़ेगा। जो टेक्स्ट लैबोरेट्रीज मशीन आएगी उनको प्रदेश सरकार लोगो के सुविधा के अनुशार नजदीक ही स्थापित करेगी। इंडिया काउंसलिंग मेडिकल रिसर्च के मुताबिक देश में आईसीएमआर की मंजूरी वाली केवल 116 सरकारी लैबोरेट्रीज को मिली है। कोविड-19 के लिए 88 ऑपरेशन लैब है जबकि 27 चालू होने की प्रक्रिया में है.
महाराष्ट्र के आंकड़ों पर गौर करें जहां कोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले पाए गए महाराष्ट्र में 8 सरकारी टेस्टिंग लैब में से चार मुंबई में तीन पुणे में एक नागपुर में आईसीएमआर ने महाराष्ट्र में चार निजी लैब को भी दिया है यह चार मुंबई में है सीमित संख्या में होने कारण ग्रामीण इलाकों के लोगों को अपना टेस्ट करना बेहद मुश्किल हो जाएगा जो नई आएगी उनको महराष्ट्र सरकार सुविधा अनुसार लगाएगी।
रूलर हेल्थ के मुताबिक हर 26हजार लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है. वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के नियमों के मुताबिक डॉक्टरों के हर अनुपात पर 1000 मरीज पर एक डॉक्टर होना चाहिए। राजकीय मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल काउंसलिंग ऑफ इंडिया के यहां रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 1.1 करोड़ है। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत के ग्रामीण इलाकों में तो हर मरीज को बेड कम ही और इतने भी डॉक्टर नहीं हैं जो कि हर मरीज को अटेंड कर सकें।
लेकिन जिस तरह से प्रधानमंत्री के आव्हान के बाद में लोगों द्वारा अपनी सुरक्षा खुद करने के लिए गांव स्तर पर जागरूक लोगों द्वारा खुद ही गांव को सैनिटाइजर किया जा रहा है.
ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग खुद को अपने घर में अपने आप को इस्युलेट कर रहे हैं। उसको देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि यह इस कोरोना महामारी से ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी अच्छी तरह से पार पा जाएंगे। दूसरा सबसे बड़ा सवाल जो मेट्रो सिटी से प्रवासी मजदूर अपने गांव को गए हैं। उनको लेकर सरकार द्वारा भी सख्त आदेश दिए हैं कि उनके नाम पते घर का पता नोट किया जाए और उनको अपने घर में आइसोलेट करने की सख्त हिदायत दी है। कुछ सरकार ने तो ऐसे लोगों को जो प्रवासी मजदूर जो बहार काम के लिए गए थे. उनको गांव के बाहर रोककर ही आइसोलेट करने का काम किया है. इससे भी ग्रामीण क्षेत्र में कोरोना किसी महामारी से पार पाया जा सकता है.
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