यह दो चित्र देख आज आंखों में पानी उतर गया।
6 दिन बाद एक बाप अपने दो मासूम बच्चो से मिलने घर पहुंचा तो बस जाली के दरवाजे से ही अपने जिगर के टुकड़ों को देख सका। हाँ! यह खाकीधारी है पर उससे पहले इंसान भी। यह लोकेंद्र बहुगुणा जी है, हाल चौकी प्रभारी लक्ष्मण चौक, कोतवाली देहरादून।
आज 6 दिन बाद पहली बार लोकेंद्र भाई अपने 4 और 7 साल के बच्चो से मिलने अन्तः चौकी से घर गए, चौकी में और घर मे महज़ 8 किलोमीटर का अंतर है, और तन पर खाकी हो तो कौन रोक सकता है पर इस अफसर ने परिवार से ऊपर कर्तव्य को चुना । घर पहुंचे तो बच्चे अपने बाप को एक सप्ताह बाद देख दौड़ पड़े। स्वाभाविक ही था, पर यह अफसर घर के बाहर ही रहा और बच्चो को 10 फिट दूर दरवाज़े से ही देखता रहा। एक सप्ताह में हज़ारों लोगों के संपर्क में आये होंगे तो अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अपने ही घर मे गैर बन गए और बाहर आंगन में बैठ पत्नी-बच्चो से बतियाते रहे। पत्नी ने खाना भी बाहर ही रख दिया जिसे कुछ मिनट में निबटा पुनः यह अधिकारी हमारी रक्षा को सड़कों पर उतर आया। बस पत्नी-बच्चो को 10 फिट दूर से देख आया।
यह वास्तविक ज़िंदगी के हीरो है, काल्पनिक नही।
भारत की जनता अभी भी कोरोना को जिस प्रकार मज़ाक में ले रही है यह उद्धरण उनके लिए है। कितना मुश्किल होगा इस बाप के लिए अपने 4 और 7 साल के बच्चो से ना मिल पाना, पत्नी से बात ना कर पाना और बैरंग वापस ड्यूटी पर लौट आना।
लोकेंद्र भाई ने यह चित्र सावर्जनिक करने से मुझे मना किया है, पर भाई आपके माध्यम से लाखों मूर्ख शायद जाग जाए और सड़कों पर ना उतरे। क्षमा प्रार्थी हूँ पर यह चित्र साझा कर रहा हूँ।
और यह कहानी किसी अकेले लोकेंद्र की नही अपितु हर खाकीधारी की है।
नमन तुम्हारे श्री चरणों मे भारत के पुलिसकर्मियों। तुम हो तो हम है।
SALUTE