क्रिसमस का नाम सुनते ही बच्चों के मन में सफेद और लंबी दाढ़ी वाले लाल रंग के कपड़े और सिर पर फुनगी वाली टोपी पहने पीठ पर खिलौनों का झोला लादे बूढ़े बाबा ‘सेंटा क्लॉज’ की तस्वीर उभरने लगती है।
सांता क्लॉज के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार संत निकोलस को मायरा के एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जानकारी मिली, जो बहुत धनवान था लेकिन कुछ समय पहले व्यापार में भारी घाटा हो जाने से वह कंगाल हो चुका था। उस व्यक्ति की चार बेटियां थी लेकिन उनके विवाह के लिए उसके पास कुछ न बचा था। यहां तक कि उसके परिवार के लिए तो खाने के भी लाले पड़े थे। तथा बाकी बेटियों का विवाह करेगा। अगले दिन अपनी एक बेटी को बेचने का विचार करके वह रात को सो गया लेकिन उसी रात संत निकोलस उसके घर पहुंचे और चुपके से खिड़की में से सोने से सिक्कों से भरा एक बैग घर में डालकर चले गए।
अपनी ढ़ेर सारी दौलत में से बच्चों के लिए वह ढ़ेर सारे खिलौने खरीदते और खिड़कियों से उनके घरों में फैंक देते। संत निकोलस की याद में कुछ जगहों पर हर वर्ष 6 दिसम्बर को ‘संत निकोलस दिवस’ भी मनाया जाने लगा। इसके पीछे यही धारणा थी कि वह इसी दिन गरीब लड़कियों की शादी के लिए धन व तोहफे दिया करते थे लेकिन वह बच्चों को 25 दिसम्बर को ही तोहफे बांटते थे.
क्रिसमस (25 दिसम्बर) के दिन तो बच्चों को सेंटा क्लॉज का खासतौर से इंतजार रहता है क्योंकि इस दिन वह बच्चों के लिए ढ़ेर सारे उपहार और तरह-तरह के खिलौने जो लेकर आता है। ईसाई समुदाय के बच्चे तो सेंटा क्लॉज को एक देवदूत मानते रहे हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि सांता क्लॉज उनके लिए उपहार लेकर सीधा स्वर्ग से धरती पर आता है और टॉफियां, चॉकलेट, फल, खिलौने व अन्य उपहार बांटकर वापस स्वर्ग में चला जाता है। बच्चे प्यार से सेंटा क्लॉज को ‘क्रिसमस फादर’ भी कहते हैं।