राफेल मामले में कुल मिलाकर 3 ही आरोप लगाए गए थे-
आरोप नंबर 1 :
राफेल खरीद में तय प्रक्रिया की अनदेखी की गई। खरीद के पहले CCS (cabinet committee for security) से अनुमति नही ली गयी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय-रफाल खरीद में तय प्रक्रिया का पूर्ण रूप से पालन किया गया। खरीद प्रक्रिया में किसी भी तरह की कोई भी गड़बड़ी नही पाई गई।
आरोप नंबर 2 : राफेल खरीद में अम्बानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया गया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: खरीद प्रक्रिया में किसी को आर्थिक फायदा नही पहुंचाया गया। ओफ़्सेट कॉन्ट्रैक्ट का निर्णय सरकार द्वारा नही लिया गया।
आरोप नंबर 3: 526 करोड़ का जहाज 1670 करोड़ में खरीदा गया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: हमने जहाज की कीमत को देखा है और हम संतुष्ट है कि इस जहाज को खरीदने में देश को फायदा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट की विशेष टिप्पणी :
संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत कीमतों को तय करना हमारे संवैधानिक दायरे में नही है। सरकार ने कीमत कैग को बताया है। कैग अपनी रिपोर्ट संसद के (PAC) के सामने प्रस्तुत कर चुकी है ( यहाँ पर एक misinterpretation है, सरकार ने अपने अपने हलफनामे में गलती से “रिपोर्ट pac के सामने प्रस्तुत करेगी” के जगह “रिपोर्ट pac के सामने प्रस्तुत कर चुकी है” लिख दिया था जिसे अब दूसरा हलफनामा देकर सही करने को कहा गया है। हालांकि यह संसोधन 19 पेज के निर्णय में केवल एक para “para no. 25” के लिए है और इसका संबंध ऊपर दिए गए तीनो निर्णयों में से किसी के साथ संबंधित नही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा रफाल विमान देश की सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है कोई हमारे दुश्मन डेढ़ चौथी एवं पांचवी पीढ़ी के विमानों से पहले ही लैस हो चुकी है।
कांग्रेस इस मामले में केवल झूठ की राजनीति कर रही है। इसी तरह झूठ फैलाकर कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बना चुकी है और अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद भी किसी भी तरह इस झूठ को अगले चुनाव तक बनाये रखना चाहती है। हम एक बार धोखा कहकर 3 राज्यों में सरकार खो चुके है , अब वक्त है चेतने का ताकि हम इनके बहकावे में आकर खुद का ही नुकसान ना कर दें।