भारत में करीब एक-तिहाई शादीशुदा महिलाएं पतियों के हाथों हिंसा की शिकार हैं और कई महिलाओं को पति के हाथों पिटाई से कोई गुरेज भी नहीं है। एक अध्ययन ने अपने विश्लेषण में यह बात कहते हुए लैंगिक आधार पर हिंसा को देश की सबसे बड़ी चिंता में से एक बताया है। वडोदरा के गैर सरकारी संगठन सहज ने इक्वल मीजर्स 2030 के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है। इक्वल मीजर्स 2030 नौ सिविल सोसायटी और निजी क्षेत्र के संगठनों की ब्रिटेन के साथ वैश्विक साझेदारी है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएचएफएस) 4के आंकड़ों का हवाला देते हुए सहज ने एक रिपोर्ट में कहा कि 15 से 49 साल के आयु वर्ग की महिलाओं में से करीब 27 प्रतिशत ने 15 साल की उम्र से ही हिंसा बर्दाश्त की है। इसमें कहा गया है कि एक ओर तो भारत में आर्थिक विकास की दर अच्छी है वहीं दूसरी ओर वह जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे लोगों के लिए समान विकास हासिल करने में बहुत पीछे है। सहज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में विवाहित महिलाओं में से करीब एक तिहाई महिलाएं पति के हाथों हिंसा का शिकार हैं और कई महिलाएं पति के हाथों पिटाई को स्वीकार कर चुकी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बेटी बचाओए बेटी पढ़ाओ जैसी अभिनव पहल के बावजूद पितृसत्तात्मक रवैया महिलाओं के सामाजिक दर्जे को लगातार कमतर कर रहा है। इसका नतीजा लड़कियों के कमजोर स्वास्थ्य, उनकी मृत्यु के मामलों से लेकर जन्म के समय यौन अनुपात बिगडऩे के रूप में सामने आता है।