इस्लाम धर्म में हर साल दो बड़े त्योहार मनाए जाते है। एक ईद-उल-फितर तो दूसरा ईद-उल-अजहा (बकरीद) । ईद-उल-अजहा के मौके पर मुस्लिम धर्म में नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी भी दी जाती है। आपको बता दें, कि इस्लाम में कुर्बानी का बहुत महत्व है। कुरान में कई जगह कुर्बानी जिक्र किया गया है, जिसे अल्लाह ने मुसलमानों पर वाजिब कर रखा है। 3 दिन तक ईद-उल-अजहा का जश्न धूम से मनाया जाता है। ईद के मौके पर बाजारों में खास रौनक देखने को मिलती है।
क्या है कुर्बानी का पूरा राज
कुरान में जिक्र है, कि अल्लाह ने करीब 3 दिनों तक हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया था। हजरत इब्राहिम ने ये किस्सा अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताया, कि अल्लाह ने उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया है और उनके लिए सबसे प्यारे और अजीज उनके बेटे ही है।
हजरत इब्राहिम की ये बात सुनकर उनके हजरत ईस्माइल ने उन्हें अल्लाह के हुक्म का पालन करने को कहा और अपने वालिद के हाथों कुर्बान होने के लिए राजी हो गए। उस समय हजरत ईस्माइल की उम्र करीब 13-14 साल की ही थी। हजरत इब्राहिम के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना एक सबसे बड़ा इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ अल्लाह का हुक्म था तो दूसरी तरफ बेटे की मुहब्बत। लेकिन हजरत इब्राहिम और उनके बेटे हजरत ईस्माइल ने अल्लाह के हुक्म को चुना।
बेटे को कुर्बान करना हजरत इब्राहिम के लिए आसान नही था। इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और बेटे की कुर्बानी के लिए छुरा चलाने को तैयार हो गए। लेकिन जैसे ही हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे पर छुरा चलाया अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक जानवर भेज दिया और हजरत ईस्माइल की जगह जानवर कुर्बान हो गया। तभी से हर हैसियतमंद मुस्लमान पर कुर्बानी वाजिब हो गई। माना जाता है, कि
अल्लाह ने जो पैगाम हजरत इब्राहिम को दिया वो सिर्फ उनकी आजमाइश कर रहे थे, ताकि ये संदेश दिया जा सके कि अल्लाह के फरमान के लिए मुसलमान अपना सब कुछ कुर्बान कर सकते हैं।
क्यो दी जाती है बकरे की कुर्बानी?
कुर्बानी के लिए होने वाले जानवरों पर अलग-अलग बात हैं। अगर कोई शख्स भैंस या ऊंट की कुर्बानी कराता है तो वह कुर्बानी सात लोगों के बराबर मानी जाती है, वहीं अगर बकरे की कुर्बानी दी जाती है, तो वो सिर्फ एक शख्स के बराबर मानी जाती है।
इस्लाम में कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से करने का हुक्म दिया गया है, जिसमें एक हिस्सा गरीबों के लिए होता है। दूसरा दोस्त और रिश्तेदारों में तकसीम (बाटां) जाता है और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए होता है।
कैसे जानवर की कुर्बानी दी जाती है
इस्लाम में ऐसे जानवरों की कुर्बानी ही जायज मानी जाती है। जो जानवर सेहतमंद होते हैं। अगर जानवर को किसी भी तरह की कोई बीमारी या तकलीफ हो तो अल्लाह ऐसे जानवर की कुर्बानी से राजी नही होते है।