पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लोकसभा के पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी जिनका हाल ही में निधन हो चुका है। इन दोनों राजनीति के दिग्गजों की दोस्ती काफी हैरान करने वाली थी। मनभेद की जगह मतभेद की राजनीति करने वाले दोनों राजनेताओं ने इसका अहसास कई मौकों पर कराया।
आपको बता दें की 2006 में एक समय ऐसा भी आया जब वाजपेयी ने चटर्जी का हाथ थामकर उन्हें स्पीकर पद से इस्तीफा नहीं देने के लिए मनाया। वहीं, 2008 में वापजेयी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए चटर्जी प्रोटोकॉल की परवाह नहीं करते हुए कुर्सी से खड़े हो गए थे। आपको बता जें की दोनों राजनेता 10 बार सांसद रहे और दोनों को ही 1984 में हार का सामना भी करना पड़ा।
2006 के शीतकालीन सत्र के दौरान अनाज के बदले तेल घोटाला मामले में हंगामे के दौरान चटर्जी ने कुछ सरकारी कामकाज निपटा लिए। इससे खफा राजग ने न सिर्फ उनका बहिष्कार किया, बल्कि उन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए पत्र भी लिखा। उस समय वाजपेयी राजग के अध्यक्ष थे। इसलिए पत्र में सबसे पहला हस्ताक्षर उन्हीं का था। पत्र में वाजपेयी का हस्ताक्षर देखते ही सोमनाथ भावुक हो गए। उन्होंने तत्काल इस्तीफा देने का फैसला किया।
इसकी सूचना मिलते ही वाजपेयी दौड़कर सोमनाथ के पास पहुंचे और उन्हें यह कहकर इस्तीफा नहीं देने के लिए मना लिया कि उन्होंने स्वेच्छा से नहीं बल्कि पार्टी लाइन के तहत पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। सोमनाथ ने कहा कि अगर वाजपेयी को उनकी ईमानदारी पर शक है तो वह एक पल के लिए भी पद पर नहीं रहना चाहते। तब वाजपेयी ने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर उन्हें चटर्जी की ईमानदारी पर कोई शक नहीं है। इसका खुलासा स्पीकर पद का कार्यकाल पूरा होने से ठीक पहले चटर्जी ने खुद ही किया था।