डायनासोर का नाम आते ही हमें हॅालीवुड की फिल्मों जुरासिक पार्क याद आ जाती है। हम कई हजार साल पीछे चले जाते है और बड़े बड़े डायनासोर की कल्पना करने लगते हैं। साथ हा हम विदेशी सरजमीं के बारे में सोचने लगते है लेकिन मध्यप्रदेश के मुरैना चंबल में भी डायनासोर होते होगें ये किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन ये सच हैं मुरैना चंबल में भी डायनासोर का अस्तित्व था। मुरैना से 35 किलोमीटर दूर बिंडवा चंबल गांव चंबल नदी के किनारे बसा है, चंबल किनारे मिट्टी का बिशाल टीला सालों से नदी में आने बाली बाढ के बाद विशाल हडिडयां उगलता है ‘दाने की रार’ कहे जाने वाले इस टीले से करीब दो दशकों से डायनासोर के अस्थि पिंजर निकल रहे हैं। पुरातत्व विभाग को चंबल के पास टीले से डायनासोर का जबडा पसली की हड्डियां घुटने की कटोरी और दांत मिले है।
इन हड्डियों की जांच कराने के बाद यह पुष्टी हुई कि यह लम्बे समय से मिट्टी के टीले में दबी हुई थीं यह अस्थि पिंजर पुरातत्व विभाग के पास सुरक्षित है। विंडवा चंबल गांव के लोगों की माने तो ‘दाने की रार’ से अभी भी विशालाकार हड्डियों का निकलना जारी हैॆ। पूर्व में भी ‘दाने की रार’ कहे जाने वाले इस टीले से डायनासोर के अवशेष मिल चुके हैं। गांव वालों की सूचना पर पुरातत्व विभाग ने इन डायनासोर के अवशेषों को मुरैना संग्राहलय में रखवा दिया हैं। जानकारी के अनुसार जैसे ही इस तरह की हड्डियां टीले से निकलती है तुरंत ही राजस्थान के कुछ गांव के लोग इन्हें यहां से ले जाते हैं। स्थानीय प्रशासन को पता भी नहीं चल पाता ‘दाने की रार’ ठीक सामने चंबल के दूसरी तरफ राजस्थान के मोरोली गांव है। इस गांव में डायनासोर का अस्थि पिंजर(ढांचा)रखा है। यह अस्थि पिंजर मध्यप्रदेश की सीमा में स्थित दाने की रार से ही निकला था इन विशाल हड्डियों को मोरोली गांव के हनुमान मंदिर में रखा गया है।
हिंद न्यूज टीवी के लिए मुरैना से गिरिराज शर्मा