
बागपत। देश भर में 14 सीटों पर हुए उपचनावों के औज नतीजे घोषित हो रहे हैं। कुल सीटों में से महज दो सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हो रही है, जबकि बाकी 12 सीटों पर दूसरे दलों के प्रत्य़ाशियों को विजय मिली है।
उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिसमें से एक लोकसभा की सीट थी और एक विधानसभा की सीट थी। लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय लोकदल की प्रत्य़ाशी तबस्सुम हसन जीत गई हैं। तबस्सुम की अजेय जीत की ओर बढ़ने के बाद ही रालोद नेता जयंत चौधरी कैराना पहुंचे। उन्होंने गठबंधन की सभी पार्टियों के समर्थन पर उन पार्टियों के नेताओं का शुक्रिया किया। उन्होंने मायावती, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी का शुक्रिया किया है। जयंत ने कहा है कि ‘जिन्ना हार गया और गन्ना जीत गया है।’
आपको बता दें, कैराना सीट जाट और मुस्लिम बाहुल्य सीट है। इस चुनाव के दौरान भाजपा ने जिन्ना का मामला उभारा था, ताकि ध्रुवीकरण करके हिंदू वोट को अपने पक्ष में किया जा सके। लेकिन इस मुद्दे पर गन्ना किसानों का मुद्दा भारी पड़ गया और राष्ट्रीय लोकदल की प्रत्य़ाशी तबस्सुम हसन को जीत मिलनी तय मानी जा रही है। वहीं, भाजपा प्रत्य़ाशी ने बिना परिणाम घोषित हुए ही अपनी हार मान ली है।
कैराना की सीट भाजपा सांसद की मृत्यु हो जाने से खाली हुई थी। जिसपर भारतीय जनता पार्टी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को प्रत्य़ाशी बनाया था।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बने अभी महज 14-15 महीने ही बीते हैं, लेकिन उसके बाद से जितने भी उपचुनाव करवाये जा रहे हैं ज्यादातर सीटों पर भाजपा प्रत्य़ाशियों को हार का सामना करना पड़ रहा है। आमतौर पर यह माना जाता है कि अगर सरकार के कार्यकाल के आधे समय के पहले कोई उपचुनाव होता है तो ज्यादातार मामलों में सत्ताधारी दल को ही जीत मिलती है, लेकिन यहां पर उसका उल्टा हो रहा है। जिससे यह साफतौर पर पता चल रहा है कि भाजपा नेतृत्व के प्रति लोगों में नाराजगी है और सरकार डिलीवर कर पाने में अक्षम है।
अभी हाल ही में दो लोकसभा उपचुनाव हुए थे, जिसमें से एक सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की और दूसरी सीट उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की थी। इन दोनों ही सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इसमें से गोरखपुर की सीट तो ऐसी थी जिसपर पिछले 28 साल से भाजपा या उसके सहयोगी के पास थी।