चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है। उन्हें किसानों से सबसे ज्यादा लगाव था। किसानों और गांवों की उन्नति के लिए चौधरी साहब ने बहुत काम किया। उनहोंने अपना पूरा जीवन किसानों की सेवा में लगा दिया। चौधरी चरण सिंह का जिस परिवेश में जन्म हुआ तो वहां उन्होंने देखा कि यहां पर भयानक गरीबी है और व्यवस्था शोषणवादी है। किसान दिन रात खेत में खटता है और किसानों के खून पसीने से तैय़ार फसल का मजा विचौलिये ले रहे हैं। इस व्यवस्था को चौधरी साहब ने बदलने का काम किया।
आइये जानते हैं चौधरी साहब के बारे में कुछ कही-अनकही बातें–
1- चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बन चुके थे। अभी भी उनका पुराना नाई ही उनका घरेलू हजाम था। नाई की बेटी की शादी तय हो गयी तो उन्होंने चौधरी साहब को बताया। चरण सिंह जी ने बधाई दी और कोई मदद की जरूरत बताने को कहा। नाई ने कुछ हजार माँग लिए मगर चौधरी साहब के पास प्रधानमंत्री के रूप में मानदेय मिलने पर भी नाई की जरूरत के हिसाब से पैसे नहीं थे। चौधरी साहब ने कहा देख भाई पैसे अभी हैं नहीं मगर चिंता मत कर पूरी शिद्दत से शादी कर मैं खुद देख लूंगा।
नाई ने बड़ी मुश्किल से शादी का इंतजाम किया और शादी का खर्च जोड़ा तो पसीने छूट गए। शादी से दो दिन पहले चौधरी साहब से फिर बोला कि चौधरी साहब खर्चा ज्यादा होगा कैसे लोगों का कर्ज उतारूंगा ?
चौधरी साहब बोले परसों “जीमण वार वाले दिन तक सब ठीक हो जाएगा। ज्यादा नहीं सोचते”।
10 बजे खाना जीमण वार चालू हुआ।
मगर ये क्या ?
देश का प्रधानमंत्री खुद अपने नाई की बेटी का कन्या दान लिख रहा था। 10 बजे से 3 बजे तक चरण सिंह जी ने कन्यादान लिखा।
देखते ही देखते कन्यादान लाख रुपये तक पहुंच गया। सामाजिक सहयोग से गरीब कन्या की ससम्मान विदाई
हुई।
2- ऋषिभक्त चौधरी चरण सिंह जी को जब पता चला कि उनके गुरू का मंदिर किसी निजी व्यक्ति की जमीने हैं तो उन्होंने कहा कि इसको आर्य समाज को दिलाइए।
जनता सरकार में चरण सिंह जी गृह मन्त्री थे। गुजरात में चुनाव हो रहे थे। चरण सिंह जी चुनाव प्रचार कार्यक्रम में गुजरात के राजकोट से मोरबी जा रहे थे। साथ में गुजरात के बडे नेता और पूर्व मुख्यमन्त्री केशुभाई थे। रोजकोट से मोरबी जाते हुये रास्ते में टंकारा का बोर्ड देखा। केशुभाई से पुछ लिया ये ऋषि दयानन्द के जन्म स्थान वाला टंकारा ही है क्या, उत्तर हाँ में मिलने पर चरण सिंह जी ने आदेश दिया टंकारा गांव में गाडीा ले चलो। केशुभाई समझाते रहे कि मोरबी में सभा होनी है, विलम्ब हो जायेगा। चरण सिंह जी का एक ही उत्तर था, मेरे गुरु की जन्मभूमि के दर्शन के विना आगे नही जाउंगा।
वे टंकारा में महर्षि दयानन्द सरस्वती स्मारक ट्रस्ट के परिसर में पधारे। ऋषि जन्मस्थली और बोध स्थली के दर्शन किये। जब पता चला की ऋषि का जन्मगृह किसी की नीजि सम्पत्ति है, तो केशुभाई पर नाराज हो गये और कहा कि जल्द से जल्द यह स्थान आर्यसमाज को मिले ऐसे प्रयत्न करो।
टंकारा गुरुकुल के तत्कालीन आचार्य सत्यदेव विद्यालंकार जी से प्रार्थना की – कुछ उपदेश करो। करबद्ध होकर उपदेश सुना और बडी रकम दान में भी दी।