बेंगलुरु। कर्नाटक में ढाई दिन के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को भाषण के दौरान ही अपने इस्तीफे का ऐलान करना पड़ गया। शायद उन्हें इस बात का अंदाजा पहले ही हो गया था कि वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर पायेंगे, क्योंकि कांग्रेस-जेडीएस और निर्दलीय विॆधायक अपने रुख पर कायम रहे। उन्होंने किसी भी तरह के ऑफर को ठुकरा दिया। चाहे वह पैसे का ऑफर रहा हो या फिर पद का।
राज्यपाल ने जब येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाकर 15 दिनों का समय बहुमत परीक्षण के लिए वक्त दिया था, तो उसी समय यह तय हो गया था कि राज्य में विधायकों की बोली लगेगी और उन्हें लालच देकर तोड़ा जाएगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक पल में ही उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया। जब सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि बहुमत परीक्षण 19 मई को शाम साढ़े चार बजे संपन्न हो। ऐसे में भाजपा के मंसूबे पर पानी फिर गया और कर्नाटक में लोकतंत्र जीत गया।
इसके पहले समूचे देश से यह प्रतिक्रियाएं आ रही थी कि देश में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया था। भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी और केंद्र सरकार में शामिल शिवसेना ने तो यहां तक कह दिया था कि देश में लोकतंत्र बचा ही नहीं।
लेकिन देश में एक ऐसा माहौल जब हो कि सभी लोग बिकने को तैयार हों। ऐसे में कांग्रेस-जेडीएस के विधायक अपने रुख पर कायम रहे और जमीर नहीं बेचकर लोकतंत्र को बचा लिया तो यह बहुत बड़ी बात है। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि अभी भी इमानदारी बची हुई है।
आपको बता दें, राज्य में भाजपा के पास कुल 104 विधायक हैं। उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 7 विधायकों की दरकार थी। लेकिन गठबंधन का एक भी विधायक बिकने के लिए तैयार नहीं हुआ। जिससे हम यह कह सकते हैं कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार भले ही चली गई हो लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के उस मुहिम को समर्थन मिल गया कि चाहे कोई कुछ भी करे। हम भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे।