मुजफ्फरनगर में एक बिल्डिंग में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का पैसा लगे होने की खबर से विवाद खड़ा हो गया हैं | वहीं, विवादित जमीन को सरकारी जमीन बताते हुए शिकायतकर्ता ने मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की हैं |दरअसल, मुजफ्फरनगर के थाना सिविल लाइन क्षेत्र में कई सालों से बन रही एक बिल्डिंग विवादों में आ गयी हैं | जिस पर शिकायतकर्ता साहिद हुसैन ने बताया कि यह राज्य संपत्ति कचहरी के लिए रखी गयी थी |अंग्रेजों ने इस जिले के निर्माण के समय जिला प्रशासन के भवन बनाने में यह जमीन बच गई थी जो कि आज भी जिला जज के निवास के पीछे हैं | जिसे कुछ भूमाफियाओं ने फर्जी तरीके से कब्ज़ा करने की कोशिश की |वर्तमान में इस जमीन वक्फ बोर्ड के नाम पर दिखाई गयी हैं | जिसमें एक फकीर के 5 करोड रुपए खर्च होना बताया है जबकि जिला अधिकारी की जांच में मिली जानकारी के अनुसार इसमें 15 करोड रुपए खर्च होने बताया गया हैं | वहीँ शिकायतकर्ता के अनुसार इसमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद का पैसा हैं | क्योंकि दाऊद और ISI एजेंसी का यहां पर एक प्रारूप है जो सरकारी और प्राइम लोकेशन की जमीन पर मुस्लिम हित साधने के नाम पर बेशकीमती जमीनों पर कब्ज़ा करके इस्लामिक संस्थान खड़े करते हैं जिसमें मुसलमानों की गरीबी दूर करने और आतंकवाद को बढावा देने के लिए केंद्र खड़े किए जा सके। जिसके विरुद्ध शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट और अलग-अलग जगह शिकायत कर रहे हैंऔर अब वो पीएम नरेन्द्र मोदी और सूबे के मुखिया से भी इसकी शिकायत करेंगें | उन्होंने पहले भी जिला जज और अलग-अलग अधिकारियों को शिकायत की थी जिसके बाद इसका निर्माण कार्य रुक गया था | उन्होंने एक फर्जी जांच समिति बनाकर के उसके आधार पर आधार वर्ष 1951 में 1359 फसली, बंजर राज्य संपत्ति कचहरी चढ़ा हुआ है इस तथ्य को छिपा करके रिपोर्ट बनाकर के यह कह दिया कि यह संपत्ति वक़्फ़ की है।
शिकायतकर्ता चाहते हैं कि यह राज्य संपत्ति घोषित हो और जिला अधिकारी और जिला जज इस पर अपना कब्जा करें जिससे कि हम इस राष्ट्रीय संपत्ति को अवैध कब्जाधारियों से मुक्त करा सकें और विदेशी कंपनियों के लिए काम करने वाले भूमंफिया इन पर फकीर बनकर कब्ज़ा न कर सके | इस मामले में जांच कमैटी के अध्यक्ष अपर जिलाधिकारी प्रशासन हरिश्चंद्र ने बताया कि इस जमीन के निर्माण कार्य के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हैं | ये जमीन वक्फ बोर्ड के पास हैं जो कि लैंड हैं | उसका मामला 1938 से 1942 में हाई कोर्ट में गया और 1956 में इंतजामिया कमेटी ने यह जमीन परचेज की | उन्होंने नियमानुसार शुल्क देकर नक्शा पास कराया जो कि राजस्व विभाग की रिपोर्ट लगने के बाद नक्शा पास हुआ | उसी दौरान बीच में कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि यह जमीन प्राइवेट है हमने बहरहाल इसकी जांच की है हमें उसमें कोई ऐसा तथ्य नहीं लगा कि यह प्राइवेट लैंड हैं | अगर यह कचहरी की जमीन होती तो कचहरी खुद ही क्लेम करती | कचहरी ने 50 साल होने पर क्लेम क्यों नही किया|
हिन्द न्यूज़ टीवी के लिए मुज़फ्फरनगर से विशाल प्रजापति