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काशी का महाश्मशान मणिकर्णिका घाट 5 से 6 महीनों में होगा हाईटेक

काशी का महाश्मशान मणिकर्णिका घाट 5 से 6 महीनों में होगा हाईटेक

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देश में श्मशान घाट हर शहर में मिलेंगे, लेकिन महाश्मशान काशी में ही है, जिसे मणिकर्णिका घाट कहते हैं । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर शव जलाने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिल जाता है, और शमशान पर दाह संस्कार के लिए लाए जाने वाली हर लाश को माता पार्वती भोजन आदि कराने के बाद खुद शिव लोक भेजती हैं । यही वजह है कि, इस महाश्मशान पर पूर्वांचल से लेकर बिहार और मध्य प्रदेश तक से प्रतिदिन सैकड़ों शव लाए जाते हैं। जिसकी वजह से इस पौराणिक जगह बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने का काम  2014 में अपनी सरकार के बनने के बाद ही  प्रधानमंत्री मोदी ने शुरू करवा दिया था, जो आज  बदलाव के रूप में दिखने भी लगा है । वजह इस श्मशान पर पहले सुविधाओं के नाम पर सिर्फ छलावा था, घाट की छत पर शव जलाए जलाने और धुआं निकलने से शवों के जलने की दुर्गंध के साथ खतरनातक जहरीला धुआं आस-पास घरों तक पहुंच है, इसके चलते इस इलाके के लोगों का यहां रहना कठिन हो रहा है, वहीं बाढ़ के चलते घाट की गलियों में भी शव का अंतिम संस्कार होता है । यही वजह है कि काशी के महाश्मशान पर इतनी दुश्वारियों को देखने सुनने के बाद उसे दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने 10 करोड़ रुपए से ऊपर की परियोजना को हरी झंडी दी, जिसके बाद गुजरात की तर्ज पर काशी के इस महाश्मशान को रिनोवेट कराने का काम एक संस्था प्लानर इंडिया ने शुरू किया, इस वक़्त मणिकर्णिका घाट पर शव को जलाने के लिए चिमनी लगाई जा चुकी है, यह हाईटेक चिमनी कुछ इस तरह से काम करेगी कि, चिंताओं से निकलने वाला धुआं इधर-उधर ना फैलकर सीधे आकाश में चला जाएगा । जिससे पॉल्यूशन भी कम होगा, और आसपास रहने वाले लोगों को धुंआ या फिर शव जलने की दुर्गंध को नहीं सहना पड़ेगा ।

इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में प्लानर इंडिया के लोकल कोऑर्डिनेटर गुलशन कपूर ने बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका को बिल्कुल हाईटेक करना चाह रहे हैं, जिसकी वजह से यहां पर काम बड़ी तेजी से चल रहा है, और उम्मीद है कि, आने वाले 5 से 6 महीनों में यह पूरा प्रोजेक्ट कंप्लीट हो जाएगा । इस प्रोजेक्ट के तहत पहले मणिकर्णिका घाट पर उन पौराणिक सीढ़ियों को बाहर निकालने का काम किया गया, जो कई सौ साल पहले जातिगत आधार पर शवों के दाहसंस्कार के लिए बनाई गई थी । आज यह सीढ़ियां अपने असली रुप में दिख रही है, पहले इस घाट पर शवों के दाह संस्कार के लिए कोई प्लेटफार्म ना होने की वजह लकड़ी की खपत भी ज्यादा होती थी, और शव का दाह संस्कार करने में परेशानी भी होती थी, लेकिन आज यहां पर एक 10 से ज्यादा प्लेटफॉर्म बनाकर तैयार किए गए हैं । जिनसे लकड़ियों की खपत भी कम हुई है, और शव पहले की अपेक्षा जल्दी जलने लगी।

महाश्मशान मणिकर्णिका पर अभी और प्लेटफार्म बनाए जाने हैं, और हर के ऊपर एक चिमनी लगाए जाने का काम होना है, कुल पांच चिमनी लगाई जाएगी । अभी एक ही चिमनी लगी है, बाकी चिमनी दो माह के अंदर लग भी जाएगी, बाढ़ में पानी के अधिकतम बिन्दु को ध्यान में रख कर ही चिमनी बनाई जा रही है । ताकि कितना भी पानी आ जाए, लेकिन शव के अंतिम संस्कार में किसी प्रकार की दिक्कत न हो, चिमनी के जरिए शव जलने से निकलने वाला धुंआ आसमान में चला जाएगा, और लोगों को आंच और धुएं के दुर्गंध से मुक्ति मिलेगी, इतना ही नहीं जमीन से कुछ फिट उपर बने प्लेटफार्म की वजह से लकड़ी की खपत पहले से कहीं कम हो गई है । जहां पहले शव जलाने के लिए 7 से नौ कुंतल लकड़ी का यूज़ किया जाता था, वहीं अब 3 से 4 कुंतल लकड़ी में ही शव का दाह संस्कार हो जा रहा है, जब चिमनी लग जाएगी, तो इस प्रोसेस के तहत शव रखने के बाद प्लेटफार्म के नीचे से आग लगाई जाएगी । आग लगने के बाद चिमनी पर बना एक ढक्कन नीचे आएगा और जलते हुए शव को पूरी तरह ढक दिया जायेगा। चिमनी के सहारे धुआं बाहर निकल जाएगा ।

हिन्द न्यूज़ टीवी के लिए वाराणसी से काशीनाथ शुक्ला

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