आसमोहम्मद कैफ़
मुज़फ्फरनगर । यहाँ के चर्चित मोहल्ले खालापार में आजकल सन्नाटा है ,अवैध कटान को लेकर पुलिस से हुई झड़प के बाद दो दर्जन से ज्यादा लोग जेल में है , पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाती घूमती रहती है , सुजुड़ु गाँव की और जाने वाली सड़क पर यहाँ एक दूसरी जगह है रहमतनगर , रहमतनगर के कब्रिस्तान के बाहर गंदगी और बदबू आपके दिमाग में सडांध भर देगी , कटान के बाद अवशेष यहीं फेंक दिए जाते है , कटान करने वालो के दबंग होने के कारण स्थानीय लोग इसका विरोध नही कर पाते बस घर छोड़कर चले जाते है , यहाँ कुछ घर खाली पड़े है जो गाँव से ऱोजी रोटी की तलाश में शहर आकर बसे लोगो को सस्ते किराये पर मिल जाते हैं , ऐसा ही एक परिवार कांधला से आकर यहाँ 15 साल पहले बस गया , परिवार में 8 लड़कियां और एक लड़का है ,इस परिवार के मुखिया सलीम अहमद का तीन दिन पहले इंतेक़ाल हुआ ,पूरा परिवार तब सलीम अहमद के भाई तनवीर के यहाँ था ,इंतेकाल के बाद बच्चे चाचा के यहाँ ही रुक गए और खाली पड़े घर में चोर घुस गए , लड़कियों की शादी के लिए जो सामान इकठा किया था वो सब चोरी हो गया , तमाम दिक्कतों से जूझ रहे परिवार में मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा , बाप का साया सर से उठ गया और जो कमाया था वो चोरी हो गया , माँ संजीदा इद्दत में है , Capitalstories.com हमने इन लड़कियों से बात की और इनका दुःख साझा किया , यह बहने हिना 21 साल हुमा 20 साल उज़्मा 18 साल शबाना 16 साल बुशरा 14 साल जिया 10 साल
जैनब 8 साल , नबिया 5 साल ,अदीबा 3 साल की है , इनमे से कोई भी कभी स्कूल नही गयी , ऐसा नहीं है कि इन्होंने कभी चाहा नही , जैसे यह पूछने पर आप कभी स्कूल क्यों नहीं गयी ,मंझली शबाना आक्रोशित हो जाती है ,हमारे पापा को पसंद नही था कि लड़कियां स्कूल जाये ,हमने हमेशा चाहा ,ज्यादा जिद करने पर पिटाई भी हो जाती थी , अम्मी चाहती थी मगर कभी ऐसा हुआ नही , शबाना की सबसे बड़ी बहन हिना की कुछ महीने पहले शादी हुई है वहाँ भी ढेरो परेशानी है , शबाना को बिफरते देखकर हिना बताती है कि ऐसा नही है हमारे पापा हमें पढ़ाना नही चाहते थे मगर हमारे पास तो रोटी खाने के भी पैसे नही थे , इतने बड़ा परिवार जिसमे दो बीमार ,घर चलाते या पढाई में पैसा खर्च करते ,स्कूल में पैसे देते तो खाते क्या ,बस नही पढ़े , दरअसल सलीम अहमद की 3 दिन पहले ही मौत दिल का दौरे पड़ने से हुई है वो पहले से दिल मरीज थे , एक दूसरी बेटी उज़्मा को भी दिल की बीमारी है ,8 साल की एक और बेटी नबिया की रीढ़ में खतरनाक उभार है , हुमा बताती है कि हमारे घर में ही एक छोटी सी कच्ची भट्टी लगी है जिसमे हम ‘पप्पे ‘(चाय के साथ खाएं जाने वाले बिस्कुट ) बनाते है , 500 रुपए ऱोज कमा लेते थे , अगर मजदूर रख लेते तो कुछ नहीं बचता ,हम बहने ही घर पर काम करती थी , पापा तो बीमार रहते थे , हम स्कूल चले जाते तो घर का काम कौन करता !
हाँ मलाल बहुत है काश हम पढ़ पाते तो अपने दम पर खड़े हो जाते ,अब क्या कर सकते है ,बाप का साया भी सर से उठ गया , हालात देखिये की जब इन लड़कियों के अब्बा सलीम अहमद का इंतेक़ाल हुआ तो वो अपने भाई के यहाँ थे , रविवार को यह पूरा परिवार भी वहीँ था कब्रिस्तान में दफनाकर जब वापस आये तो रात में सब चाचा के घर रुक गए वहीँ इनकी अम्मी इद्दत में बैठ गई ,मौका देखकर गरीब की बेटी की शादी का सामान जो इकठ्ठा किया था वो सब चोर ले गए ,मोहल्ले के लोग दुःख तो जता रहे थे मगर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने की जरुरत थी , बात सिर्फ मदद स्वाभिमान की है ,ये लड़कियां पढ़ जाती तो आज एहसास ए कमतरी में मुब्तिला ना होती ,
‘खाला ‘ राशिदा कहती है क़ुरान तो पढ़ा है , ज्यादा पढ़ लेती तो रिश्ते कहाँ कर लेते ,आसपास की औरत भी कहती है हाँ लड़कियों का घर से बाहर जाना और पढ़ना ठीक नही , इस पर बुशरा बोल पड़ती है अब हम क्या करेंगे ,कैसे रोटी खाएंगे ,क्या करेंगे ,क्या अब हम मजदूरी करेंगे ,या मांग कर खाएंगे यह बीमार बहने है इनका क्या होगा हमे पढ़ाया क्यों नही सवाल अंदर तक उधेड़ देते है उन्हें भी हमें भी …