अजय दीक्षित
पिछले दिनों लोकसभा में डॉ. जितेन्द्र ने परीक्षाओं में पेपर लीक पर एक सख्त कानून बनाने का विधेयक पेश किया था । वह विधेयक अब दोनों सदनों से पास होकर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया है । मंत्री जी ने राजस्थान, बंगाल और अन्य विपक्षी दलों की सरकारों के दौरान पेपर लीक के उदाहरण तो गिनवाये, परन्तु मध्य प्रदेश का नाम नहीं लिया जहां प्रतियोगी परीक्षाओं में हुए धांधली का मामला कई साल से चल रहा है । महाराष्ट्र समेत अनेक भाजपा शासित राज्यों में भी प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं । इससे उन युवाओं के केरियर पर प्रभाव पड़ता है जो इसमें सम्मिलित होने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं । यह नहीं है कि यदि भाजपा की सरकार होगी तो लोग ईमानदार हो जायेंगे और यदि तथाकथित विपक्ष की सरकारें होंगी तो लडक़े बेईमान हो जायेंगे । भारतीय स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि हम कठिन परिश्रम से बचना चाहते हैं ।
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले कार्यकाल के प्रधानमंत्रियों के काल में हुए भ्रष्टाचार की चर्चा की वह तो सही है । यह भी सत्य है की ताजा उदाहरणों में मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में तो घोर भ्रष्टाचार हुआ है । कॉमनवेल्थ गेम्स, खदानों का आवंटन और अन्य क्षेत्रों में तत्कालीन मंत्रियों ने जमकर घपलेबाजी की थी । परन्तु यह भी सत्य है कि भाजपा में आने के बाद उनके पाप उजागर नहीं होते, नहीं तो अजित पंवार, असम के मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र के कई मंत्री जो बाद में भाजपा में शामिल हुए हैं, उनके खिलाफ ई.डी., सी.बी.आई. की कार्रवाई के बाद ऐसी कार्रवाई को रोक दिया गया जब वे भाजपा में शामिल हुए थे । यह भी सत्य है कि हमारे शास्त्र में वर्णित है कि भारत के लोग एक धीमे चलने वाले संसार में रहते हैं । वैसे भी किसी को धक्का देकर आगे बढऩा पाश्वाल सभ्यता है, हमारे यहां कहा जाता है– ‘पहले आप’ विदेश में कहा जाता है ‘आफ्टर यू’ यदि “मैं” का महत्त्व है, जबकि भारतीय दृष्टिकोण में ‘आप’ यानि दूसरे का महत्त्व है ।
परन्तु असली सत्य यह है कि नौकरियां कम हैं और आवेदक ज्यादा । यदि नौकरियां भरपूर होंगी, तो फिर कोई क्यों लाखों रुपये रिश्वत देकर अपने लिए नौकरी सुरक्षित करेगा ! गुजरात में तो सन् 2019 में पेपर लीक के कारण जो परीक्षा रद्द की गई थी वह दोबारा सन् 2022 में हुई । उसे परीक्षा में 4000 क्लर्कों के पद के लिए छ: लाख बच्चों ने फॉर्म भरा था । असल में परीक्षा से सम्बन्धित अधिकारियों का ऊंचे अधिकारियों तक सम्पर्क होता है । आरोप तो यह भी लगाया जाता है कि पेपर लीक से सम्बन्धित पैसा ऊपर तक पहुंचता है । आजकल कहा जा रहा है कि ऐसा पैसा कुछ उदाहरण में यदि स्वयं इस्तेमाल नहीं होता तो पार्टी फण्ड के लिए लिया जाता है । आमतौर पर पेपर खुलने पर वह व्हाट्सएप पर मिल जाता है ।
कुल प्रश्न हमारी अपनी अस्मिता और ईमानदारी से जुड़ा है । लोग सरकारी नौकरी चाहते हैं । उसमें आय निश्चित है, बाद में पेंशन है, छुट्टियां हैं और सबसे बढक़र काहिली है, । काम मत करो फिर भी वेतन मिलता रहेगा । अंग्रेज भी अजब समय कार्यालयों का निश्चित कर गये हैं । वहां दफ्तर 10 बजे खुलते हैं । स्वयं इंग्लैण्ड में जहां सख्त सर्दी है और बर्फ पड़ती है, वहां सभी दफ्तर, डाकघर, बैंक आदि सुबह आठ बजे खुल जाते हैं । भारत में अंग्रेज देर रात तक जश्न मनाते थे । इसी से देर में सोकर उठते थे । इसी कारण 10 बजे का दफ्तर का समय निश्चित किया गया । वैसे भी कौन सरकारी कर्मचारी या अफसर 10 बजे आता है । दोपहर 12 बजे तक मेजें खाली पड़ी रहती थीं । असल कारण है बेरोजगारी और गरीबी । यदि सभी के लिए रोजगार या नौकरी सुलभ होंगी तो क्यों कोई बेईमानी करके लाखों रुपया खर्च करके नौकरी पाना चाहेगा ।
फिर यदि पेपर ऐसे बने की नकल की संभावना ही न हो तो पेपर लीक का मामला स्वत: ही शांत हो जायेगा । यह एक नई प्रथा शुरू हुई है– मल्टीपल ज्वाईस क्वैशजन । आपको चार विकल्प दिये जाते हैं । एक पर निशान लगाओ । साइंस का एक सिद्धांत है — प्रोबेबिलिटी । आप विषय न भी जानते हो, और रैबडम निशान लगाते जायें तो भी सम्भावना है कि आप एक तिहाई प्रश्नों पर सही निशान लगा लेंगे ।
कुल मामला हमारी ईमानदारी पर निर्भर करता है । अब सुदामा कहां मिलते हैं । हमें देश से काहिली और गरीबी दोनों मिटानी होगी ।