Rahul Kumar (hindnewst)
श्री जयराम रमेश ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि नमस्कार दोस्तों! जैसा कि आप जानते हैं, कल शाम को कांग्रेस संसदीय दल की जो रणनीति का एक स्ट्रेटजिक ग्रुप है, उसकी बैठक हुई, बैठक की अध्यक्षता हमारे संसदीय दल की नेता श्रीमती सोनिया गांधी जी ने की, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे जी भी मौजूद थे और उसमें लंबी बातचीत हुई कि ये जो 5 दिन का विशेष सत्र आने वाला है, 18 तारीख से, उसके लिए हमारी क्या रणनीति होनी चाहिए।
उसके बाद में कल रात को 8 बजे मल्लिकार्जुन खरगे जी ने एक बैठक बुलाई अपने घर में, सारे जो फ्लोर लीडर्स हैं ‘इंडिया’ पार्टी के लोकसभा में और राज्यसभा में, सारे फ्लोर लीडरों की बैठक हुई और उस बैठक में भी चर्चा हुई कि ये विशेष सत्र में ‘इंडिया’ पार्टी के ओर से क्या रणनीति होनी चाहिए और ये तय हुआ कि हम ये सत्र का बहिष्कार नहीं करेंगे। ये मौका है हमारे लिए जनता के मुद्दों को उठाने के लिए और हम पूरा प्रयास करेंगे कि अलग-अलग पार्टियां अपने मुद्दे उठाएंगी, हालांकि समय सीमित है, 5 दिन के लिए और ये भी तय किया गया कि सोनिया गांधी जी प्रधानमंत्री को एक खत लिखेंगी और जो बातचीत हुई है ‘इंडिया’ पार्टी की बैठक में, कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में, उस बातचीत से जो आम सहमति बनी है, वो प्रधानमंत्री के समक्ष रखेंगे।
तो आज सुबह सोनिया गांधी जी ने प्रधानमंत्री को एक खत भेजा है, उसकी कॉपी आपको मिल जाएगी अगले 4-5 मिनटों में। मैं मोटे तौर से उस खत में क्या है, उसकी जानकारी दूंगा।
पहली बात जो सोनिया जी ने कही है उस खत में कि ये बैठक बुलाई गई है बिना बातचीत के, कोई मशविरा नहीं हुआ है, कोई वार्तालाप नहीं था अलग-अलग राजनीतिक दलों के साथ, मनमानी, अपने ही बल में इकतरफा निर्णय लिया गया कि 5 दिन का सत्र होगा 18 तारीख से।
दूसरी बात – जब कभी विशेष सत्र होता है, कार्यसूची पहले तय की जाती है और कार्यसूची, जो एजेंडा है, जो कार्यसूची है, वो सभी पार्टियों से बातचीत करके एक बार… जैसा कि मैंने कहा कि सर्वसम्मति तो असंभव है, पर एक आम सहमति बनाने का प्रयास होता है सरकार की ओर से। पर ये पहली बार हो रहा है कि विशेष सत्र बुलाया गया है और एजेंडा, कार्यसूची की जानकारी हमारे पास नहीं है, ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
तीसरी बात – जो उन्होंने खत में लिखी है कि जो बुलेटिन में छपा है, जो सांसदों ने अपने बुलेटिन, लोकसभा बुलेटिन में और राज्यसभा बुलेटिन में पढ़ा है, मैंने भी पढ़ा है कि 18 तारीख सरकारी बिजनेस, 19 तारीख सरकारी बिजनेस, 20 तारीख सरकारी बिजनेस, 21 तारीख सरकारी बिजनेस, 22 तारीख सरकारी बिजनेस, यानी कि पाचों के पांच दिन गवर्नमेंट बिजनेस के लिए एलोकेट किए गए हैं।
तो ये नामुमकिन है, ये दुर्भाग्यपूर्ण है, पर हो गया है। हमारी ओर से हम पूरा प्रयास करेंगे… सभी पार्टियां, कांग्रेस पार्टी, ‘इंडिया’ पार्टी के जो मुद्दे हैं, जो हम उठाना चाहते थे पिछले सत्र में, हम उठा नहीं पाए सरकार की मनमानी के कारण, सरकार की जो मंशा थी, सरकार नहीं चाहती थी कि सत्र चले, इसीलिए हमारी मांगों का उन्होंने नजरअंदाज किया, पर इस बार सोनिया जी ने प्रधानमंत्री को कहा है कि हमारी ओर से 9 महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो हम उठाना चाहते हैं लोकसभा में, राज्यसभा में… किस नियम के अनुसार उठाए जाएंगे उस पर बातचीत हो सकती है। हम उस पर कोई ये नहीं कह रहे हैं कि इसी रूल के तहत होना चाहिए, हम कह रहे हैं कि प्राथमिकता बहस पर हो, प्राथमिकता है चर्चा होनी चाहिए, किस रूल के तहत, किस नियम के तहत, वो हम बातचीत कर सकते हैं।
सरकार और ‘इंडिया’ पार्टियों के बीच में और अलग-अलग पार्टी के बीच में बातचीत हो सकती है। तो जो 9 मुद्दों का जिक्र किया गया है सोनिया गांधी जी की चिट्ठी में… मैं आपको मोटे तौर से गिना दूंगा और ये आपको खत मिल जाएगा, इस पर आपको और जानकारी मिल जाएगी।
पहला मुद्दा – जो मौजूदा आर्थिक स्थिति है, जो कमरतोड़ महंगाई है, बढ़ती हुई बेरोजगारी है, आर्थिक विषमताएं हैं और जो खासतौर से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की परेशानी को लेकर जो हम मुद्दा उठाने चाहते थे पिछले सत्रों में, हम उठा नहीं पाए हैं। हम चाहते हैं कि इस पर 2 घंटे, 3 घंटे, 4 घंटे की बहस हो, जिस दिन होगी वो तय हो सकता है, पर जो मौजूदा आर्थिक स्थिति है, खासतौर से आवश्यक वस्तुओं की जो कीमतें बढ़ रही हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है और रोजगार मेले लगाए जा रहे हैं, विषमताएं बढ़ रही हैं और एमएसएमई, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग परेशानी में हैं, हर एक राज्य में उसको लेकर एक बहस होने की जरूरत है।
दूसरा मुद्दा – जो सोनिया जी ने जिक्र किया है। किसान संगठनों के साथ सरकार की बातचीत हुई थी, आन्दोलन था, आपको याद है तीन काले कानून लाए गए थे, उस पर आन्दोलन हुआ, बाद में सरकार को मजबूरी से उन कानूनों को वापस लेना पड़ा… पर कुछ समझौता हुआ था, कुछ वादे किए गए थे एमएसपी को लेकर, खासतौर से कानूनी गारण्टी एमएसपी को देने की बातचीत हुई थी और किसान संगठनों की अलग-अलग मांगे भी थीं, उस पर क्या कार्रवाई हुई है? उसकी मौजूदा स्थिति क्या है? एमएसपी को लेकर लीगल गारण्टी के मुद्दे पर सरकार की मंशा क्या है, इस पर चर्चा हो, सोनिया जी ने जिक्र किया है।
तीसरी मांग – जो हमारी है, जो अडानी बिजनेस ग्रुप है उसे लेकर जो खुलासे हुए हैं हमारी मीडिया में, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में और रोज कुछ न कुछ छपता रहता है। इस पर जांच हो रही है, एक विशेष समिति का गठन किया गया सुप्रीम कोर्ट के द्वारा, सेबी की जांच हो रही है, पर ये बिल्कुल साफ हो गया है कि बिना जेपीसी के इसका पूरा खुलासा नहीं हो सकता, जो तथ्य हैं, जो रिश्ते हैं अडानी के और मोदी सरकार के बीच में और जो एकमात्र लाभार्थी हैं मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के, जो अडानी बिजनेस ग्रुप है, उसके जो खुलासे हुए हैं, उस पर जेपीसी का गठन होना बहुत जरूरी है। ये मांग हम पिछले 6 महीने से कर रहे हैं, 7 महीने से कर रहे हैं, पर ये मांग हम फिर से दोहरा रहे हैं और सोनिया जी ने इससे प्रधानमंत्री को अवगत कराया है।
चौथा मुद्दा – कास्ट सेंसस को लेकर है, जातीय जनगणना को लेकर। जैसा कि आप जानते हैं जब मैं ग्रामीण विकास मंत्री था, 2011 में, हमने प्रयास किया था कि जातीय जनगणना हो, सोशियो-इकोनॉमिक कास्ट सेंसस, हमने पूरा भी किया, पर उसमें और काम करने की जरूरत थी, हमारी सरकार चली गई 2104 में, उसके बाद में उस जातीय जनगणना के बारे में हमने कुछ सुना नहीं…. न केवल जातीय जनगणना नहीं हुई है, पर जो 2021 में जनगणना होने वाली थी, जो हर 10 साल में जनगणना होती है, वो भी अब तक नहीं हुई है और उस जनगणना न होने के कारण हमारे देश में करीब 14 करोड़ लोग हैं, जो खाद्य सुरक्षा कानून के लाभार्थी नहीं बन पाए, तो जनगणना होना जरूरी है और विशेष तौर से जातीय जनगणना होना जरूरी है, क्योंकि जो सरकारी कार्यक्रम हैं, हमारे सामाजिक न्याय के कार्यक्रम हैं, सामाजिक सशक्तिकरण के कार्यक्रम हैं, नीतियां हैं, उसको और मजबूती देने के लिए ये जातीय जनगणना होना अनिवार्य है।
पांचवा मुद्दा – संघीय ढांचे पर जो आक्रमण हो रहा है, अलग-अलग राज्यों में आप देख रहे हैं, तमिलनाडु में देखा है आपने, केरल में देखा है, कर्नाटका में हमारा अन्ना भाग्या गारण्टी को रोका गया था, अलग-अलग राज्यों में राज्यपाल की भूमिका… रोज हमें उसके बारे में पढ़ने को मिलता है, पर ये साफ हो गया है कि ये संघीय ढांचे पर जानबूझकर एक प्लान्ड रणनीति के कारण हैं कि राज्यों को और खासतौर से जो राज्य बीजेपी शासित राज्य नहीं हैं उनके सामने मुसीबतें खड़ा करना, उनको परेशानी में डालना, उनके जो संवैधानिक हक हैं, जो संवैधानिक अधिकार हैं, उनको न देना, ये सब मोदी सरकार की रणनीति है और ये हम उठाना चाहते हैं, इस पर बहस होने की जरूरत है और सोनिया जी ने प्रधानमंत्री को कहा है कि ये जो सेंटर-स्टेट रिलेशन को लेकर कई राज्यों में जो चिंता जताई गई है, कई मुख्यमंत्रियों ने भी कहा है इस पर चर्चा जरूर कराएं।
छठा मुद्दा – जो प्राकृतिक आपदाएं हैं। खासतौर से हमने देखा है कुछ राज्यों में अत्यधिक बाढ़… हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अत्यधिक बाढ़ के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, नुकसान पहुंचा है और एक राज्य में अत्यधिक बाढ़ हो रही है, दूसरे राज्यों में, महाराष्ट्र जैसे राज्य में अत्यधिक सूखा हो रहा है। तो ये अत्यधिक बाढ़ और अत्यधिक सूखा ये प्राकृतिक आपदाएं हैं, पर अब तक इसको प्राकृतिक आपदा घोषित नहीं किया गया है, ये चिंता का विषय है और प्राकृतिक आपदा में जिला सरकार, पंचायत, नगर पालिका, राज्य सरकारों की भूमिका तो है, पर सबसे अहम भूमिका केन्द्र सरकार की होती है, राहत केन्द्र सरकार से आती है, कैलेमिटी रिलीफ केन्द्र सरकार के माध्यम से दिया जाता है।
तो कई राज्यों ने ये बात उठाई है और न केवल विपक्ष के राज्य हैं, सभी राज्यों में जो प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित हैं या तो अत्यधिक बाढ़ या अत्यधिक सूखा, तो इस पर हम समझते हैं कि वक्त आ गया है कि इसकी संसद में चर्चा हो और सोनिया जी ने इसका भी जिक्र किया है।
सातवां मुद्दा – चीन को लेकर है। आप जानते हैं 19 जून, 2020 को प्रधानमंत्री ने स्वंय चीन को एक क्लीनचिट दे दी थी और उसके बावजूद आज हमारी जमीन पर चीन बैठा हुआ है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में हमारी सीमाओं पर गंभीर समस्याएं पैदा हुई हैं, चुनौतियां हैं हमारे लिए, विदेश नीति के लिए, पर इस पर 3 साल से बहस नहीं हो पाई है, एक शब्द नहीं बोला गया, हालांकि जो शब्द बोले गए हैं 19 जून, 2020 को वो एक क्लीनचिट दिया गया है प्रधानमंत्री से और इसकी कीमत हमें भारी तरीके से चुकानी पड़ी थी, पर इस पर बहस होनी चाहिए और अगली रणनीति का एक सामूहिक संकल्प हम दिखाएं इसको लेकर, सिर्फ आलोचना के लिए नहीं, पर हम चाहते हैं एक सामूहिक संकल्प संसद की ओर से दुनिया के सामने रखा जाए कि ये हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है और इसका मुकाबला हम एकजुट होकर करेंगे।
आठवा मुद्दा – जो सांप्रदायिक तनाव पैदा किए जा रहे हैं, मिसाल के तौर से हरियाणा जैसे राज्यों में… ये चुनावी रणनीति तो है ही, पर सांप्रदायिक तनाव के कई राज्यों में प्रयास किए जा रहे हैं। कभी-कभी जो संस्थाएं हैं बोला जाता है ये फ्रिंज एलीमेंट हैं, पर कभी-कभी नॉन फ्रिंज एलीमेंट भी इसमें शामिल हैं। तो सोनिया जी ने कहा है कि जो सांप्रदायिक तनाव है अलग-अलग राज्यों में एक भय का वातावरण बनाया गया है, एक माहौल बन गया है भय का, लोग चिंतित हैं, सब लोग चिंतित हैं, लोगों को निशाना बनाया गया है, इस पर चर्चा हो और आखिरी मुद्दा जो उन्होंने जिक्र किया है मणिपुर को लेकर।
4 महीने हो गए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, संवैधानिक संस्थाएं सब खत्म हो चुकी हैं। आज भी लोग पीड़ित हैं, लाखों लोग विस्थापित हैं और आज ही हमें पढ़ने को मिला है कि अगले 5 दिन के लिए, जब हम जी20 मना रहे हैं दिल्ली में, 5 दिन के लिए इम्फाल घाटी में कर्फ्यू लगाया गया है, तो अगर स्थिति नॉर्मल है तो 5 दिन के लिए पूरा कर्फ्यू क्यों लगाया गया है।
तो ये 9 मुद्दे हैं सोनिया जी के खत में और उन्होंने कहा है कि एक रचनात्मक सहयोग की भावना से, उन्होंने ये शब्द इस्तेमाल भी किया है… इस रचनात्मक सहयोग की भावना से आप ये तय कीजिए, समय दीजिए और बताइए कि इन मुद्दों पर एक मौका मिलेगा सभी पार्टियों को अपनी बात रखने का, न सिर्फ हमारी पार्टी, बल्कि सभी पार्टियां, बीजेपी की पार्टी भी चाहेगी कि इन मुद्दों पर वो भाग लें, पर इस पर चर्चा होना जरूरी है।
इसके अलावा कुछ राज्यों में भी ऐसे मुद्दे हैं, महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। तमिलनाडु को लेकर नीट का मुद्दा है, महाराष्ट्र को लेकर मराठा आरक्षण का मुद्दा है, ये भी वहां की पार्टी के जो सांसद हैं, वो इस सत्र में उठाना चाहेंगे और वो मौका उनको भी मिलना चाहिए। तो आपको खत मिल जाएगा।
हम उम्मीद करते हैं कि… हालांकि अगले 4-5 दिन सरकार व्यस्त रहेगी, पर 18 तारीख तक हमें समय है। सिर्फ सरकारी एजेंडे के आधार पर ये विशेष सत्र नहीं होना चाहिए। सिर्फ गर्वनमेंट बिजनेस, गर्वनमेंट बिजनेस, गर्वनमेंट बिजनेस, गर्वनमेंट बिजनेस, गर्वनमेंट बिजनेस, 5 बार लिखा है बुलेटिन में, हम इसको स्वीकार नहीं करते, ये नामुमकिन है, ये परंपरा के खिलाफ है। जो आपका एजेंडा है बैठक बुलाइए, हमसे बातचीत कीजिए, आप विधेयक पास कराना चाहते हैं, हमें बताइए, पहले से बातचीत कीजिए, पर सबसे महत्वपूर्ण बात रोज जो 6 घंटे या 5 घंटे हमें मिलेंगे, उसमें से डेढ़ या दो घंटे या ढाई घंटे इन मुद्दों पर चर्चा हो, किसी भी नियम के आधार पर चर्चा हो। हम चाहते हैं कि ये 5 दिन का सत्र चले, हम इसमें भाग लेंगे, हमारी मांग आपके समक्ष रखेंगे, चेयरमेन साहब के समक्ष और स्पीकर साहब के समक्ष, पर हम जानते हैं कि निर्णय तो सरकार ही लेगी कि क्या ये मुद्दे लिए जा सकते हैं या नहीं, पर हम चाहते हैं कि इन 9 मुद्दों पर जरूर चर्चा हो और भरपूर हम इस पर भाग लेंगे, ऐसा नहीं कि हम सिर्फ हमारी बात रखकर निकल जाएंगे, ऐसा नहीं है। बात सुनेंगे, हम बात भी बोलेंगे।
अंत में मैं यही कहूंगा कि ये एक तंत्र का जो तोप चलाया जा रहा है, बिना कोई जानकारी के, बिना कोई मशवरे के, बिना कोई वार्तालाप के, बिना कोई बातचीत के, सदन को बुलाना, सदन का जो एजेंडा है, जो कार्यसूची है उसको एक राज़ रखना, ये एक तंत्र का तोप है। प्रधानमंत्री अपने आपको, हमारे देश को मदर ऑफ डेमोक्रसी कहते हैं, पर अब मदर ऑफ डेमोक्रसी में अगर लोकतंत्र की शहनाई नहीं बजती है, पर सिर्फ एक तंत्र का तोप चलाया जाता है ये कोई लोकतंत्र नहीं।