रवि शंकर
वर्तमान समय में देश-दुनिया में मोटे अनाजों को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकारी विज्ञापनों से लेकर संसद के मेन्यू तक हर जगह इनका जिक्र किया जा रहा है।
लोगों से अपने आहार में मोटे अनाजों को शामिल करने की अपील की जा रही है। मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मिलेट अर्थात मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। बताते चलें कि इसका प्रस्ताव भारत ने ही रखा था और 72 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। मोटे अनाजों के बारे में कहा जाता है कि इनकी फसलें प्रतिकूल मौसम को झेल सकती हैं। इन्हें ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। भारत के बारे में मशहूर है कि यहां हजारों साल से ये अनाज हमारे भोजन का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं। हमारी पीढ़ी, जो पांच-छह दशक पहले बड़ी हो रही थी, में से बहुतों ने बचपन में गेहूं, ज्वार, बाजरा, जौ, मक्का आदि की चूल्हे पर सिंकी स्वादिष्ट रोटियां खूब खाई हैं।
बाजरे की खिचड़ी, रोटी और घी मिलाकर बनाए लड्डू, समा के चावल भी भोजन का हिस्सा रहे हैं। तब तो गेहूं की रोटी में भी चने का आटा मिलाकर खाया जाता था, जिसे मिस्सा आटा कहते थे। अकेले गेहूं की रोटी खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता था। सर्दियों में शायद ही कोई दिन होता था, जब मक्का या बाजरा की रोटी न बने, लेकिन गेहूं, चावल की पैदावार में क्रांति और इन्हें खाने वालों की आर्थिक हैसियत को ऊंची बताने के कारण मोटे अनाज हमारी थालियों से लगभग गायब हो गए। अरसे बाद जब ये सुपरफूड के रूप में विदेशों से लौटे और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने वाले धनाढ्य वर्ग की थाली की शोभा बढ़ाने लगे, तो फिर इनके प्रति दिलचस्पी बढ़ी। यह अच्छा ही हुआ। फिलहाल सरकार भी इनके उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। खान-पान में इन अनाजों को शामिल करने की बात लगातार की जा रही है। मालूम हो, लम्बे समय से मोटे अनाजों की खेती को मुख्य धारा में लाने के लिए कोशिश की जा रही है।
सवाल अहम यह है कि भारत सहित दुनिया के देश मोटे अनाज की खेती पर जोर क्यों दे रही है? जवाब स्पष्ट है, तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या चिंता की बात है, ऐसे में फसलों के उत्पादन में कमी आएगी और खाद्य पदार्थों की मांग में बढ़ोतरी जिसके कारण सभी के लिए खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करना बड़ी चुनौती हो सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में सूखा और अकाल पडऩे जैसी घटनाएं सामान्य हो जाएंगी। मोटे अनाजों की खेती करके अकाल और सूखे की स्थिति से आसानी से निपटा जा सकता है। भारत दुनिया के उन सबसे बड़े देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा मोटे अनाज की पैदावार होती है। भारत दुनिया के कई देशों को मोटे अनाज का निर्यात करता है। इनमें संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया, ओमान, मिस्र, ट्यूनीशिया, यमन, ब्रिटेन तथा अमेरिका शामिल हैं। मोटे अनाजों में भारत सबसे ज्यादा बाजरा, रागी, कनेरी, ज्वार और कुट्टू को एक्सपोर्ट करता है। वैश्विक उत्पादन में लगभग 41 प्रतिशत की अनुमानित हिस्सेदारी के साथ भारत दुनिया में बाजरा के अग्रणी उत्पादकों में शुमार है।
इसके बावजूद मोटे अनाजों से बने उत्पाद- बेबीफूड, बेकरी, ब्रेकफास्ट, रेडी टू ईट फूड, रेडी टू कुक, रेडी टू सर्व, वेवरीज और पशु आहार बेचकर चीन दुनिया में मोटी कमाई कर रहा है। यह तब है जब वह दुनिया का मात्र 9 फीसदी ही मोटा अनाज पैदा करता है। खैर, केंद्र सरकार ने बाजरा सहित संभावित उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने तथा पोषक अनाजों की आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं को दूर करने के लिए पोषक अनाज निर्यात संवर्धन फोरम का गठन किया है। मोटे अनाज की कैटेगरी में ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज आते हैं। इन अनाजों के सेवन से मोटापा, दिल की बीमारियां, टाइप-2 डायबिटीज और कैंसर का खतरा घटाता है। इनमें कई गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। यही वजह है कि मोटे अनाज को सुपर फूड भी कहा जाता है। मोटे अनाज में सिर्फ फाइबर ही नहीं, बल्कि विटामिन-बी, फोलेट, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, आयरन और कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं।
मोटे अनाज जहां सेहत के लिए रामबाण हैं तो दूसरी तरफ खेती करने वाले किसानों के लिए भी फायदेमंद हैं। मोटे अनाजों की खेती करके जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट, भू-जल हृास, स्वास्थ्य और खाद्यान्न संकट जैसी समस्याओं को काबू में किया जा सकता है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि भारत 2023 में जी-20 की अध्यक्षता करते हुए अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के उद्देश्यों और लक्ष्यों के मद्देनजर देश और दुनिया में मोटे अनाजों के लिए जागरूकता पैदा करने में सफल होगा और इससे मोटे अनाज का वैश्विक उत्पादन बढ़ेगा, मोटे अनाज का वैश्विक उपभोग बढ़ेगा। साथ ही, कुशल प्रसंस्करण एवं फसल चक्र का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा। भारत द्वारा वर्ष 2023 में मोटा अनाज वर्ष के तहत मोटे अनाजों के प्रति जागरूकता की प्रभावी रणनीति से एक बार फिर मोटे अनाज को देश के हर व्यक्ति की थाली में अधिक जगह मिलने लगेगी।