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यात्रा से एकजुटता नहीं बन रही

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कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा तात्कालिक चुनावी लाभ देने वाली नहीं साबित हो रही है। कांग्रेस के नेता भी इसे मान रहे हैं। लेकिन उनका कहना है कि इससे पार्टी एकजुट हो रही है और राज्यों में पार्टी का सोया हुआ काडर जग कर एक्टिव हो रहा है। राज्यों में पार्टी का संगठन फिर खड़ा हो रहा है। यात्रा की तैयारियों के बहाने ही संगठन काम कर रहा है। लेकिन हकीकत कुछ और है। वास्तविकता यह है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में हो रही इस यात्रा से कांग्रेस पार्टी एकजुट नहीं हो रही है। राहुल के सामने भले एकजुटता दिख रही है लेकिन यात्रा आगे बढ़ते ही पार्टी के नेताओं में घमासान शुरू हो जा रहा है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा दक्षिण भारत के जिन पांच राज्यों से गुजरी है उनमें से दो राज्यों- केरल और कर्नाटक में पार्टी के अंदर घमासान छिड़ा है। अभी मध्य प्रदेश से निकल कर उनकी यात्रा राजस्थान जाने वाली है और उससे पहले ही राजस्थान में पार्टी की खेमेबाजी सामने आ गई है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट हालांकि यात्रा की तैयारियों में लगे हैं और इसके लिए हुई मीटिंग में भी शामिल हुए लेकिन उनके असर वाले इलाके में गूजर नेता यात्रा का बहिष्कार करने और राहुल गांधी को राजस्थान में नहीं घुसने देने की बात कर रहे हैं। पायलट समर्थक विधायकों व मंत्रियों ने राजस्थान का फैसला जल्दी करने को कहा है तो इस बात को लेकर भी बहस छिड़ी है कि राजस्थान में ज्यादा समय तक यात्रा पायलट के असर वाले इलाकों से गुजरेगी।

राहुल ने अपनी यात्रा के दौरान कर्नाटक में प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के बीच बरसों से चल रही खींचतान को खत्म करके एकजुटता बनवाने की बड़ी कोशिश की। पर राहुल की यात्रा आगे बढ़ी और कर्नाटक में घमासान शुरू हो गया। राहुल के समर्थन और मल्लिकार्जुन खडग़े के अध्यक्ष बनने से उत्साहित सिद्धरमैया ने उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी। उन्होंने अगले साल के विधानसभा चुनाव के लिए छह उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए और लोगों से उनको वोट देने की अपील कर डाली। प्रदेश अध्यक्ष शिवकुमार इससे इतना भडक़े कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि सिद्धरमैया कौन होते हैं उम्मीदवार की घोषणा करने वाले।

केरल में इसी तरह का विवाद छिड़ा है। प्रदेश अध्यक्ष के सुधाकरण ने आरएसएस और नेहरू को लेकर जो बयान दिया उसका विवाद चल ही रहा था कि शशि थरूर की सक्रियता ने पार्टी को नई मुश्किल में डाल दिया। हालांकि थरूर ने कहा है कि उनसे किसी को डरने की जरूरत नहीं है और वे कोई गुटबाजी नहीं कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस की सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं से उनकी मुलाकात ने राजनीतिक घटनाक्रम को तेज कर दिया है। प्रदेश में नेताओं के कई गुट पहले से हैं और अब एक नया गुट बन रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में थरूर का समर्थन करने और उनको वोट देने वाले नेता उनके संपर्क में हैं।

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