कोरोना के फैलते खतरे को रोकने के लिए जहां एक और सभी देशों की सरकारें सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दे रही है,वहीं दूसरी तरफ लॉक डाउन के चलते लोगो खुद को ही अपने घर में सीमित कर लिया है. इसी बीच लोगों के घरों में रहने के चलते घरेलू हिंसा में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है . जर्मन, यूरोप, अमेरिका ,बर्लिन, ऑस्ट्रेलिया ,चाइना ,साउथ कोरिया जहां पर सरकारों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दी दी और पूरे देश को लॉक डाउन कर दिया। वहां पर घरेलू हिंसा की सबसे ज्यादा बढ़ोतरी सामने आ रही है.
जर्मन फेडरल एसोसिएशन ने अपने सर्वे में यह पाया कि कई लोगों के लिए उनका घर ही पहले से सुरक्षित नहीं था.वह बस अपना कुछ समय ही घर पर आराम करने आते थे। पहले से घर से जयदा जुड़ाव नहीं रहा है। सीमित समय तक हे घर आने के कारण भी इन देशो में घरेलु हिंसा के मामले सामने आ रहे है। कोरोना की वजह से सोशल आइसोलेशन के चलते ऐसे लोगों के लिए घर में तनाव पैदा हो गया है. इससे महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू और यौन हिंसा में इजाफा देखा जा रहा है.
ऐसे में खतरा करोन पर आकर सीमित नहीं हो जाता जहां पर कोरोना पहले से ही एक समस्या है अब लोगो को घरों में सीमित होकर रहने के चलते पैदा हुई, नौकरी की चिंता, सुरक्षा, स्वास्थ्य ,को लेकर भी वह अन्य भय के कारण भी सामने आ रहे हैं. सबसे ज्यादा परेशानी घरेलू हिंसा में जो आ रही है वह वित्तीय परेशानी लोगों की जीविका में एक बड़ा बाधक बन रही है. इन देश में लोगों के घरेलु जीवन पर सबसे बुरा असर पड़ा है। वहां की औरतें या पुरुष कानून की शरण में जाने लगे हैं. और उनके बच्चे अपने माता-पिता की कहानी सुनाते सुनाते रोने लगे. घर में रहने से पति पत्नी के बीच हिंसा भी शुरू हो गई है.
लेकिन गंभीर बात यह है कि इन देशों में लगातार कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में इन देशों की सरकारों के सामने संकट आ खड़ा हुआ है. कि ऐसे व्यक्तियों कि किस तरह सहायता की जाए। सरकारों की मजबूरी है कि वह ऐसे व्यक्तियों को लॉक डाउन के तहत अपने घर में रहने के लिए कहे. लेकिन इन देशो की जनता लगतार अब पुलिस स्टेशनों पर अपनी घरेलू हिंसा की फरियाद लेकर लगातार पहुंच रहे हैं.
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