एक पेड़ की उम्र कितनी हो सकती हैं? 30 साल, 50 साल या 100 साल लेकिन हिन्द न्यूज टीवी पर आज हम छः हजार साल पुराने बरगद के बारे में बताने जा रहा हैं।
जब भी किसी तीर्थं स्थल की बात होती हैं तो हरिद्वार का नाम सबसे पहले आता हैं लेकिन उत्तर भारत में छः हजार साल पुराने इतिहास वाले शुक्रताल को तीर्थं स्थलों में विशेष रूप से देखा जाता हैं। जहां पर कहा जाता हैं कि हस्तिनापुर के पाण्डव वंशज,उस समय के भारत सम्राट राजा परीक्षित को श्राप से मुक्त कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस अक्षय वट वृक्ष के नीचे श्री मद भागवत कथा सुनाई थी।
राजा परीक्षित को श्री मद भागवत कथा गंगा किनारें स्थित आश्रम में अक्षय वट वृक्ष के नीचे बैठकर 88 हजार ऋषी मुनियों के साथ श्री शुकदेव मुनि ने 7 दिनों तक सुनाई थी। जिसके बाद वह मोक्ष को प्राप्त हुए थें।
सिंह ऋषी से मिला था श्राप
राजा परीक्षित उस समय के भारत सम्राट थें।एक दिन वह जंगल मे शिकार करने गए जैसे-जैसे समय बीता शाम हो चली। परीक्षित को प्यास लगने लगी। इस दौरान राजा को श्रमिक ऋषी का आश्रम दिखा, राजा अंदर चले गए।
अंदर जाने के बाद परीक्षित ने देखा कि श्रमिक ऋषी ध्यान में बैठे थे। राजा ने ऋषी से पानी मांगा लेकिन ध्यान में मग्न होनें के कारण राजा की बात सुन नही पाये। जिसके कारण राजा को क्रोध आया और उन्होंने कहा कि मैं इस देश का सम्राट हूं, लेकिन यह ऋषी मुझे अनसुना कर मेरा अपमान कर रहा हैं। उसके बाद राजा परीक्षित ने ऋषी के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया और वहां से लौट गए। कुछ समय उपरांत वहां श्रमिक ऋषी के पुत्र सिंह ऋषी पहूंचे। उन्होंने देखा की पिता के गले मे मरा हुआ सांप पड़ा हैं। जिसके बाद उन्होंने गंगा जल को हाथ में लेकर श्राप दिया कि जिस भी व्यक्ति ने मेरे पिता के साथ यह व्यहवार किया हैं सात दिन के अंदर उसकी सांप के काटने से मृत्यु हो जाएंगी।
यह बात राजा परीक्षित को पता चली तो वह उस स्थान पर दोबारा पहूंचे, लेकिन वहां उन्होंने देखा कि श्री शुकदेव मुनि 88 हजार ऋषियों के साथ उपस्थित थें। राजा ने पूछा कि यदि कोई व्यक्ति 7 दिन में मरने वाला हैं तो उसको क्या करना चाहिए। शुकदेव मुनि ने कहा कि श्री मद भागवत सुनना चाहिए ताकि मोक्ष की प्राप्ति मिले। उसके बाद लगातार 7 दिन तक अक्षय वट वृक्ष के नीचे राजा परीक्षित को श्री मद भागवत का पाठ सुनाया गया और वह मोक्ष को प्राप्त हुए।
पतझड़ में भी नही टूटते हैं पत्ते
मुज़फ्फरनगर से 30 किलोमीटर दूर स्थित शुक्रताल में छः हजार साल पुराने इस अक्षय वट वृक्ष की ख़ास बात यह हैं कि कितना भी सूखा पड़े, पतझड़ ही क्यों न हो, न ही तो इसके पत्ते झड़ते हैं, और न ही इसमें बड़ी बड़ी जटा निकलती हैं। यह हर महीने हर मौसम में हरा भरा रहता हैं।
पूर्ण होती है सभी मनोकामनाएं
ऐसा कहा जाता हैं कि इस अक्षय वट वृक्ष के नीचे बैठकर यदि कोई पूजा पाठ या ह्रदय से ध्यान में बैठता हैं तो उसकी मनोकामना पूरी होती हैं। आश्रम के वर्तमान पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद के एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि देश के कोने-कोने से अनेक श्रद्धालु तीर्थं नगरी में आते हैं। एक सप्ताह तक रहकर श्री मद भागवत कथा व सत्यनारायण कथा का आयोजन अक्षय वट वृक्ष के नीचे करते हैं। साथ भी बड़ी बड़ी शाखाओं पर धागा बांधकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
वर्तमान में हैं अच्छी देख रेख की आवश्यकता
यह अक्षय वट वृक्ष आज भी अपनी विशाल बाहें फ़ैलाकर अड़िग खड़ा हैं जोकि अपनी मनोहारी हरीभरी छटा को बिखेर रहा हैं। स्थानीय लोगों की माने तो भक्ति सागर से ओतप्रोत यह वट वृक्ष इतना पौराणिक होने के बावजूद भी सरकार की देख रेख के अभाव में चल रहा हैं।
सुंदर मंदिरों का गढ़ हैं शुक्रताल
गंगा नदी के तट पर स्थित प्राचीन पवित्र तीर्थंस्थल शुक्रताल में कईँ प्राचीन मंदिर हैं। साथ ही भगवान गणेश की 35 फीट, हनुमान की 72 फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई हैं। संस्कृत शिक्षा के लिए यहां संस्कृत महाविद्यालय भी हैं जहां दूर दूर से आकर विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं। शुक्रताल का पहला नाम सुखताल था। बाद में इसका नाम शुक्रताल पड़ा।
हिन्द न्यूज टीवी के लिए मुज़फ्फरनगर से चौधरी नितिन रोहल की रिपोर्ट