भारत में अर्थव्यवस्था को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले कुछ मानकों पर भारत की स्थिति सुधर रही है। हालांकि इसे भारतीय अर्थव्यवस्था का टर्नअराउंड नहीं कहा जा सकता है लेकिन जिन बातों को लेकर सरकार आलोचना के घेरे में थी, उनमें से ज्यादातर में सुधार दिख रह है। सबसे बड़ा सुधार महंगाई के मोर्चे पर हुआ है। फल, सब्जियों और खाने पीने की चीजों के दाम कम होने से खुदरा और थोक महंगाई दर दोनों में कमी आई है। थोक महंगाई करीब एक साल के सबसे निचले स्तर पर है तो खुदरा महंगाई भी इस वित्त वर्ष में पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से तय छह फीसदी की अधिकतम सीमा के नीचे पहुंची है। थोक और खुदरा महंगाई दोनों छह फीसदी से नीचे आ गए हैं।
सरकार की दूसरी आलोचना विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने को लेकर हो रही थी। इस साल के शुरू में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 633 अरब डॉलर था, जिससे घट कर 531 अरब डॉलर तक आ गया था। यानी एक सौ अरब डॉलर से ज्यादा की कमी आई थी। पर अब धीरे धीरे इसमें बढ़ोतरी हो रही है। पिछले लगातार पांच हफ्ते से इसमें बढ़ोतरी हुई है और पिछले हफ्ते यह बढ़ कर 561 अरब डॉलर पहुंच गया। रिजर्व बैंक रुपए की कीमत नियंत्रित करने के लिए अपने रिजर्व से डॉलर निकाल रही थी। अब यह ट्रेंड उलट गया और फिर भी रुपए की कीमत लगभग स्थिर है। यह आलोचना का तीसरा बिंदु था। हालांकि अब भी एक डॉलर की कीमत 82 रुपए से ऊपर है लेकिन नवंबर में जब इसकी कीमत 83 से ऊपर गई थी तो इसके 85 से ऊपर जाने की बात हो रही थी, जो अब थम गई है। विदेशी संस्थागत निवेशकों के शेयर बाजार से निकलने का ट्रेंड भी अब थम गया है और उन्होंने फिर निवेश शुरू किया है। अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती के अनुमान के बाद यह ट्रेंड बदलता दिख रहा है।