अवधेश कुमार
चीन पर पारंपरिक राजनीति फिर देश को निराश कर रही है। विपक्ष का काम सरकार से जवाब लेना है। क्या यह हर विषय और मुद्दे पर लागू हो सकता है?
चीनी सेना ने तवांग सेक्टर में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर घुसपैठ की असभ्य कोशिश की। यह सच है। यह भी सच है कि हमारे जवानों ने उनको पीठ मोडऩे के लिए विवश कर दिया। इसमें ऐसा क्या है जिस पर राजनीति में इतना बड़ा बवंडर खड़ा होना चाहिए? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में जो बयान दिया वह मान्य होना चाहिए। बावजूद विपक्ष मान नहीं रहा है तो इसे कैसी राजनीति कहा जाए?
राज्य सभा और लोक सभा, दोनों में ज्यादातर विपक्षी दल हंगामा और बहिर्गमन कर रहे हैं। नेताओं के बयान ऐसे हैं मानो भारतीय सेना ने चीन के समक्ष समर्पण कर दिया हो। हालांकि वे कहते हैं कि हम सब सेना के साथ हैं। अगर सेना के साथ हैं तो आपको उनकी बहादुरी, उनकी राष्ट्रभक्ति पर भी विश्वास होना चाहिए। कुछ नेता अलग-अलग नियमों के तहत चर्चा कराने पर अड़ गए। किंतु देश का ध्यान रखते हुए इस पर कब चर्चा हो, कैसे चर्चा हो और कितनी चर्चा हो इसके प्रति सदा सतर्क रहना आवश्यक है। क्या हमारे देश के वरिष्ठ नेताओं को इसका भान नहीं है कि चीन से जुड़ी रक्षा नीति का खुलासा नहीं होना चाहिए?
अगर विपक्ष सरकार को मजबूर कर दे कि आप बताइए, चीन से आप कैसे निपट रहे हैं, और आगे कैसे निपट आएंगे तो होगा क्या? क्या दुनिया के किसी परिपक्व देश में सबसे बड़े दुश्मन के विरुद्ध इस तरह की राजनीति संभव है? बहुत कुछ कहा नहीं जाता लेकिन संकेत मिलता रहता है। क्या सरकार की ओर से इसका संकेत नहीं मिला है? इसका उत्तर है कि सरकार बिना घोषणा के बहुत कुछ संकेत दे रही है। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर में भारतीय वायु सेना ने अभ्यास शुरू कर अपनी शक्ति का प्रदशर्न किया। दो दिवसीय युद्धाभ्यास में राफेल समेत अग्रिम पंक्ति के सभी लड़ाकू विमान शामिल हुए। हालांकि सेना ने कहा कि यह तवांग क्षेत्र में हाल के घटनाक्रम से जुड़ा नहीं है।
बावजूद तनाव के बीच अभ्यास हुआ है तो इसका संदेश तो है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में वायु सेना के सभी अग्रिम अड्डे और एडवांस लैंडिंग ग्राउंड भी अभ्यास में शामिल किए गए। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के पास राफेल के साथ-साथ सुखोई समेत कई तरह के युद्धक विमानों ने अपनी शक्ति का प्रदशर्न किया। चीनूक और अपाचे हेलीकॉप्टर के साथ यूएवी ने भी क्षमता प्रदर्शित की। यह अभ्यास पूर्वी कमान के तहत हुआ जो असम, अरु णाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित उत्तर पूर्व के सभी राज्यों के हवाई अड्डे में किया गया। पश्चिम बंगाल के हाशिमारा और कलाइकुंडा, असम के तेजपुर और झाबुआ और अरु णाचल प्रदेश की एडवांस लैंडिंग स्ट्रिप से विमानों को उड़ान भरते देखा गया। सेना और वायु सेना ने अरु णाचल और सिक्किम में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले 2 सालों से उच्चस्तरीय संचालनात्मक तैयारियां बरकरार रखा है। पिछले सप्ताह भी अरु णाचल के तवांग सेक्टर में भारतीय वायु सेना ने एलएसी पर लड़ाकू विमान उड़ाए। यह सब क्या रंगमंच या फिल्म का प्रदशर्न है?
एक परिपक्व देश को इन सारे संकेतों को समझते हुए चीन जैसे दुश्मन देश के मामलों की संवेदनशीलता पर हंगामा और ज्यादा चर्चा नहीं करनी चाहिए थी। यह भी देखिए कि चीन की ओर से कैसी प्रतिक्रिया आई है। चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि हमारे सैनिक तय नियम व मानकों के तहत निर्धारित सीमा पर गश्त लगा रहे थे और भारतीय सैनिकों ने घुसपैठ की कोशिश भी जिन्हें विफल कर दिया गया। जरा सोचिए , भारत में इस बात को लेकर हंगामा है कि चीनी सैनिकों ने हमारे यहां घुसपैठ की कोशिश कैसे कर दी? सच यह है कि चीनी सेना समय-समय पर ऐसी हरकतें करती रहती हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि घटना 9 दिसम्बर को रात में हुई और सरकार ने इसे छिपाए रखा। घटना अवश्य रात में हुई लेकिन उसके बाद दो दिनों बाद फ्लैग मीटिंग हुई और उसमें बातचीत पूरी होने के बाद यह बाहर आया। दूसरे, यह चीन के रवैये को देखते हुए इतनी बड़ी घटना न थी और न ही अनअपेक्षित था। उनकी सेनाएं घुसने की कोशिश करती हैं, हमारी सेना रोकती हैं, जरूरत पडऩे पर उनको पीटती भी हैं। इसी हंगामे के बीच अक्टूबर, 2021 का एक वीडियो जारी हुआ है जिसमें हमारी सेना चीन के सैनिकों को लाठियों से पीटकर भगा रही है। वास्तव में 15 जून, 2020 को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने जिस बर्बरता और उद्दंडता के साथ हमला किया उसके बाद पूरी सीमा क्षेत्र में उसी ढंग की तैयारी भारतीय सेना ने की। वह नुकीले कील लगे हुए डंडे, रड , ईट, पत्थर आदि लेकर हमला करने आए थे।
तो उनका जवाब कैसे दिया जाए इसके लिए पूरी तैयारी है और चीन की सेना की हरकतों को जवाब मिल रहा है। कोई भी ऐसी सरकार नहीं होगी जो कहेगी कि चीन के सैनिक हमारी ओर घुसपैठ करते हैं तो आप उनका मुंहतोड़ जवाब नहीं दीजिए। तो फिर हंगामे का मकसद क्या हो सकता है? चीन का विवाद केवल भारत के साथ ही नहीं है। रूस को छोडक़र सारे पड़ोसियों के साथ उसके सीमा विवाद हैं। दक्षिण चीन सागर से उसका कोई लेना-देना नहीं लेकिन वहां बड़े क्षेत्र में नौसेना-वायु सेना आदि के साथ वह अड़ा हुआ है। जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम, ब्रूनेई आदि सभी के साथ उसका तनाव चल रहा है।
दुनिया के प्रमुख देशों के लिए भी यह बड़ा प्रश्न है कि चीन की सैन्य और भौगोलिक महत्त्वाकांक्षाओं, विस्तारवादी नीतियों को कैसे नियंत्रित किया जाए? भारत जैसे देश के करीब 43 हजार किलोमीटर क्षेत्र चीन के कब्जे में है। इन मामले में ज्यादा संतुलन के साथ सामने आना चाहिए। दुर्भाग्य से इसके उलट हो रहा है। वैसे भी जब तनाव का दौर हो तो देश के अंदर शांति और एकता दिखनी चाहिए। कल्पना करिए, कल चीन कुछ सैनिकों को किसी क्षेत्र में जबरन घुसाने की कोशिश कर अपने अनुसार वीडियो बनाकर रिलीज कर दे तो भारत के राजनेता आपस में लडऩा शुरू कर देंगे। फिर तो चीन को हमें लड़ाने के लिए बहुत ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। हर कुछ अंतराल पर वह ऐसी हरकत करे और भारत में लोगों को आपस में लड़ता हुआ देखे। अच्छा हो हमारे देश के नेताओं को सुद्धि आए और वे राजनीतिक बयानबाजी और गतिविधियों से अपने को दूर रखें।