You are here
Home > राज्य > दो रोटी के लिए सबके आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर दस साल का बच्चा निकला करोड़ों की जायदाद का मालिक, पढ़िए पूरी खबर

दो रोटी के लिए सबके आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर दस साल का बच्चा निकला करोड़ों की जायदाद का मालिक, पढ़िए पूरी खबर

Share This:

देहरादून। शाहजेब ने नन्हीं उमर में हंसती खिलखिलाती दुनिया को उजड़ते देखा। सहारनपुर के नागल स्थित डीपीएस स्कूल में किताबों के बीच भविष्य का सपना देख रहे शाहजेब की जिंदगी अब्बू की मौत के बाद से दुश्वारियों में बदलती चली गई। अब खुशियां लौटी लेकिन इन पलों को जीने के लिए अम्मी, अब्बू और दादू का खिलखिलाता चेहरा नहीं है। कोरोना से मां की मौत के बाद दो वक्त की रोटी के लिए सबके आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर दस साल का बच्चा करोड़ों की जायदाद का मालिक निकला। दरअसल, उसके दादा ने मरने से पहले अपनी आधी जायदाद उसके नाम कर दी थी। वसीयत लिखे जाने के बाद से परिजन उसे ढूंढ रहे थे। कलियर में सड़कों पर घूमते वक्त गांव के युवक मोबिन ने उसे पहचाना। परिजनों को सूचना दी, जिसके बाद बृहस्पतिवार को वह बच्चे को अपने साथ घर ले गए। बच्चे के नाम गांव में पुश्तैनी मकान और पांच बीघा जमीन है।

यूपी के जिला सहारनपुर के गांव पंडोली में रहने वाली इमराना पति मोहम्मद नावेद के निधन के बाद 2019 में अपने ससुराल वालों से नाराज होकर अपने मायके यमुनानगर चली गई थी। वह अपने साथ करीब छह साल के बेटे शाहजेब को भी ले गई थी। शाहजेब के सबसे छोटे दादा सहारनपुर निवासी शाह आलम ने बताया कि शाहजेब का परिवार पंडोली गांव में ही रहता था। पिता मोहम्मद नावेद खेती-बाड़ी संभालते थे। मां इमराना बच्चे का ख्याल रखती थी। नागल में शाहजेब डीपीएस स्कूल में पढ़ाई कर रहा था। इस बीच शाहजेब के पिता मोहम्मद नावेद का इंतकाल(निधन) हो गया। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। शाहआलम ने बताया कि इसके बाद इमराना भी वहां न रही और गांव छोड़कर मायके लौट गई। उस वक्त शाहजेब को साथ ले गई, जिसकी उम्र करीब छह साल रही होगी। शाहजेब चला तो गया लेकिन उसे भी न मालूम था कि जहां वह जा रहा है, वहां अंधेरी गलियों के अलावा कुछ नहीं। इधर, दादा मोहम्मद याकूब बेटे के गुजरने, बहू व पोते के चले जाने से गहरे सदमे में आ गए और उनका भी इंतकाल हो गया।

उधर, इमराना शाहजेब को लेकर कलियर में रहने लगी। कोरोना काल में वह संक्रमण का शिकार बन गई। इसके बाद शाहजेब लावारिस हो गया। जियारत पर कलियर आए मोबिन ने उसे देखा और नाम-पता पूछा। तस्कदीक होने पर परिजनों को बताया तो वे कलियर से उसे घर ले गए। शाहजेब की अम्मी कोरोना महामारी में खुदा को प्यारी हो गई। इससे नन्हें शाहजेब के लिए जिंदगी की दुश्वारियां और बढ़ गईं। उसके पास न रहने को घर था और न खाने को दो वक्त की रोटी का कोई इंतजाम। हालात ने उसे होटलों में झूठे बर्तन धोने और सड़कों पर भीख मांगने वाला बना दिया। शाहजेब के सबसे छोटे दादा शाहआलम ने कहा कि वह उसे पढ़ाएंगे। अभी वह परिवार और बच्चों के साथ माहौल में रमने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने बताया कि चूंकि जो दौर शाहजेब ने देखा, उससे बाहर निकलने में उसे थोड़ा वक्त लगेगा। इसके बाद वह उसका दाखिला कराएंगे।

Leave a Reply

Top