अजय दीक्षित
पहली दिसम्बर को गुजरात में पहले चरण का मतदान हुआ । उस दिन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 70 किलोमीटर का एक रोड शो किया और पांच-छ: जगह चुनावी भाषण दिया । उसी दिन उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के ‘रावण’ वाले प्रश्न का जवाब दिया । अब यह सभाएं टी.वी. पर लाइव दिखाई जा रही थी तो चुनाव आचार संहिता का क्या मतलब । देश की अन्य संस्थाओं की तरह चुनाव आयोग भी बंद पिंजरे का तोता है या कहें कौवा है । यह सरासर गलत है कि उस दिन किसी भी पार्टी को चुनाव प्रचार की इजाज़त मिले । पर भारत में कथनी और करनी में भेद है ।
अब पता नहीं भाजपा और कांग्रेस राम और उनकी कथा को कितना समझती है ? भाजपा तो खुश है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके कार्यकाल में राम मन्दिर का फैसला सुनाया जिसे भाजपा अपनी जीत बताकर कहती है कि वह राम मन्दिर बनायेगी ? अब उन्हें कौन समझाये कि राम तो सर्वव्यापी, सर्वत्र और सभी जगह हैं । इण्डोनेशिया जैसे मुस्लिम देश में भी पूज्य हैं । भारत के सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और मुसलमान लडक़े-लड़कियां राम कथा से परिचित हैं । उन्हें एक छोटे से जनपद अयोध्या का नरेश बतलाकर क्यों कर छोटा किया जा रहा है ? राम सर्वकालिक सर्वत्र और सर्वस्व हैं । वे देश काल की सीमा से बंधे नहीं हैं । वे इण्डोनेशिया के मुस्लिम बहुल इलाकों में भी हैं जहां रामलीला खेली जाती है ।
पता नहीं कैसे खडक़े साहब ने रावण के एक सौ सिर बता दिये और पता नहीं कैसे मोदी जी अपने को राम भक्त कह कर जवाब देते हैं ?
तुलसीदास की रामचरित मानस में बतलाया गया है कि राम-रावण युद्ध तो मात्र माया का खेल था । रामचरित मानस के आरण्य काण्ड में उल्लेख है कि जब शूर्पणखा रो- रोकर दशग्रीव को अपनी दशा बतला रही थी तो रावण ने सीता को हरने का नाटक रचा । रावण कहता है कि अब पृथ्वी में भगवान ने अवतार ले लिया है । मैं तो जाकर हठ पूर्वक उनसे बैर करूंगा ताकि उनके हाथों मारा जाकर प्रभु के वाण से भवसागर तर जाऊं ।
लक्ष्मण को कंदमूल लेने जाने पर राम सीता से कहते हैं कि मैं अब कुछ लीला करने वाला हूं । तुम अग्नि में निवास करो । रावण में नकली सीता का हरण किया था और उन्हें अपने महल में न रखकर एक सुरक्षित कुटिया में रखा । राम के समझाने पर सीता प्रभु के चरणों को अपने हृदय में रखकर अग्नि में समा गई । अत: रावण ने जब सीता को हरा था वह तो छाया मात्र थी । ऐसी छाया को भी रावण ने प्रणाम किया था । अरण्य काण्ड में 27/8 में वर्णन है कि रावण ने सीता जी के चरणों की वंदना में सुख माना ।
राम अपरिमित बल वाले, अनादि, अजन्मा, निराकार, अगोचर, इन्द्रियतीत, विज्ञान की घनमूर्ति और पृथ्वी पर अवतार हैं । एक पौराणिक प्रसंग में विश्वामित्र हनुमान से कहते हैं कि रावण ने नाटक रचा था, मुक्ति पाने के लिए । वह तो शिव जी का परम भक्त था और शिव जी ने उसे बहुत से वरदान दिए थे ।
इस कथा में साधारण मनुष्य के लिए भी संदेश है कि विपत्ति काल में विद्वानों की बुद्धि भी भ्रमित हो जाती है । रामकथा को न तो खडक़े साहब समझ पाये और माफ करें न ही हमारे अपने श्रद्धेय और प्रिय नरेन्द्र भाई जी । वैसे भी हमारे प्रधानमंत्री को अब देश के साथ-साथ विदेशों में भी बड़ी जिम्मेदारी है और 1 दिसम्बर 2022 से जी -20 के अध्यक्ष हैं । विश्व मंच पर मोदी जी की प्रसिद्धि है ।