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गलत रास्ता, गलत नतीजा

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ब्रेग्जिट के हक में वोट करने वाले हर पांच में से एक व्यक्ति को अब लगता है कि उसका फैसला गलत था। तो अब उसका गलत नतीजा सामने आ रहा है। दरअसल, उन्माद हमेशा ही हानिकारक होता है। मगर इसका जब अहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

ब्रिटेन गहरे आर्थिक संकट में है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ब्रिटेन के सुपर बाजारों से सामान नदारद हैं। धनी देशों की संस्था ओईसीडी ने कहा है कि दुनिया के सात सबसे अमीर देशों में ब्रिटेन अकेला है, जिसकी अर्थव्यवस्था साल 2023 में और सिकुड़ जाएगी। देश की कंजरवेटिव सरकार इस समस्या को पूरी तरह रूस-यूक्रेन युद्ध का परिणाम बता रही है। जबकि विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि अर्थव्यवस्था के कुछ खास क्षेत्रों- जैसे खाद्य वस्तुओं की कमी का सीधा संबंध ब्रेग्जिट से है। मगर चाहे पक्ष हो या विपक्ष इस बहस को हवा देने का जोखिम कोई उठाने को तैयार नहीं है। वित्त मंत्री ने नवंबर में अपने संसदीय भाषण में तमाम आर्थिक दिक्कतों और लोगों के दैनिक जीवन पर उनके असर का जिक्र करते हुए सिर्फ एक बार ब्रेग्जिट का नाम लिया। इसका नाम लेने से लेबर पार्टी के नेताओं की जुबान भी थरथराती है। दरअसल ब्रिटेन में पैदा हुए आर्थिक संकट को ब्रेग्जिट से ना जोडऩे की रणनीतिक मजबूरी के पीछे पार्टियों की अपनी मजबूरी है। अगर ये बहस दोबारा छिड़ती है तो सत्ता और विपक्ष दोनों के भीतर गुटबाजी और उथल-पुथल मचने की पूरी आशंका है।

बहरहाल, आम लोगों के पास ऐसी मजबूरियां नहीं हैं, इसलिए वे इस बारे में बेहतर आत्म-निरीक्षण कर रहे हैँ। सर्वे एजेंसी- यूगॉव के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रेग्जिट के हक में वोट करने वाले हर पांच में से एक व्यक्ति को अब लगता है कि उसका फैसला गलत था। तो अब उसका गलत नतीजा सामने आ रहा है। करीब दो साल पहले यूरोपीय संघ से विदाई के समय ही आशंका जाहिर की गई थी कि ब्रिटेन खाद्य संकट के दौर में प्रवेश कर रहा है। लेकिन उग्र राष्ट्रवादी भावनाएं उफान पर थीं। ऐसे उन्माद हमेशा ही अपने लिए हानिकारक होते हैं। ये दीगर बात है कि उनका परिणाम आने में देर लगता है और तब तक असल में बहुत देर हो चुकी होती है।

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