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देहरादून । उत्तराखंड सरकार ने राजकीय सेवाओं में महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के लिए विधानसभा में मंगलवार को विधेयक पेश कर दिया। संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा सदन पटल पर पेश विधेयक को पारित कराने के लिए बुधवार को चर्चा की जाएगी।
विधेयक के मुताबिक, क्षैतिज आरक्षण का लाभ उस महिला अभ्यर्थी को मिलेगा, जिसका मूल अधिवास उत्तराखंड में है, लेकिन उसने अन्य कहीं कोई स्थायी अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया है। यह लाभ उन महिलाओं को भी मिलेगा जिनके पास राज्य में स्थायी अधिवास प्रमाण पत्र है, बेशक उनका मूल अधिवास उत्तराखंड में नहीं है। क्षैतिज आरक्षण देने के लिए विधेयक के पीछे सरकार ने चार प्रमुख आधार (सामाजिक न्याय, अवसर की समानता, जीवन स्तर में सुधार और लोक नियोजन में लैंगिक समानता) बताए हैं। कहा है कि राज्य की विषम भौगोलिक संरचना के कारण राज्य के दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले लोग कठिन जीवन यापन करते हैं।
खासतौर पर राज्य की महिलाएं विषम परिस्थितियों में जीवन निर्वाह करती है। इसलिए उनका जीवन स्तर अन्य राज्यों की महिलाओं से निम्न है। राज्य की महिलाएं अपेक्षित सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर को नहीं पा सकी हैं। राज्य की लोक सेवाओं में भी उनका प्रतिनिधित्व काफी कम है। उच्च न्यायालय नैनीताल ने एक याचिका पर महिलाओं को सरकारी सेवा में दिए जा रहे 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण वाले दो अलग-अलग शासनादेशों को निरस्त कर दिया था। प्रदेश सरकार ने न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। राज्य की एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इस बीच सरकार ने महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को बनाए रखने के लिए अधिनियम बनाने का निर्णय लिया। कैबिनेट ने मुख्यमंत्री को इसके लिए अधिकृत किया। सीएम के निर्देश पर कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने महिला क्षैतिज आरक्षण विधेयक का प्रस्ताव तैयार किया। मंगलवार को विधेयक सदन पटल पर पेश कर दिया गया।