डॉ. सुरजीत सिंह गांधी
दुनिया तेजी से डिजिटल होती जा रही है। हर प्रकार का कार्य, डेटा एवं पैसे का आदान-प्रदान मोबाइल, कंप्यूटर एवं इंटरनेट के जरिए हो रहा है।
इंटरनेट के प्रसार के साथ-साथ आए दिन ऑनलाइन ठगी, हैकिंग, वायरस अटैक, डेटा चोरी आदि की खबरें भी पढऩे-सुनने को मिलती रहती हैं। ऑनलाइन फ्रॉड करने वाले भावनात्मक तरीकों का इस्तेमाल कर लोगों से कार्ड, पिन आदि की जानकारी लेकर लोगों के खातों से पैसे निकाल लेते हैं। आरबीआई के अनेक जागरूकता कार्यक्रमों, आईपीसी की अनेक धाराओं एवं आईटी कानूनों के बाद भी साइबर ठग प्रति दिन ऐसे नये तरीकों का प्रयोग करते हैं कि शिक्षित व्यक्ति भी इन्हें समझने में चूक जाता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2021 में भारत ने साइबर अपराध के कुल 52,974 मामले दर्ज हुए हैं जिनमें से 60 प्रतिशत से अधिक मामले धोखाधड़ी, 8.6 प्रतिशत मामले यौन शोषण और 5.4 प्रतिशत मामले जबरन वसूली के हैं। 2020 में 50,035, 2019 में 44,735 और 2018 में 27,248 मामले दर्ज हुए थे। आंकड़े बोलते हैं कि पिछले 3 वर्षो में 47 प्रतिशत उपभोक्ता फ्रॉड, 45 प्रतिशत साइबर क्राइम और 34 प्रतिशत केवाईसी से संबंधित फ्रॉड हुए हैं। एक सर्वे के अनुसार कोविड के बाद 50 प्रतिशत से अधिक कंपनियां नये-नये तरीकों से वित्तीय फ्रॉड का शिकार हुई थीं। पुलिस, ई-वॉलेट कंपनियों, मोबाइल कंपनियों, बैंक, आईटी सेल आदि होने के बावजूद साइबर ठगी का शिकार व्यक्ति बैंक, कस्टमर केयर, साइबर क्राइम, पुलिस आदि के चक्कर ही लगाता रह जाता है। विचारणीय प्रश्न है कि साइबर ठगी को रोकने लिए क्या कानून पर्याप्त हैं? बैंकिंग व्यवस्था इसे रोकने में आखिर, असफल क्यों है? दूसरी ओर, सरकार कैशलैश व्यवस्था को बढ़ावा दे रही है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्ता है। साइबर अपराध केवल तकनीकी समस्या नहीं है, बल्कि बैंकिंग फ्रॉड के 95 प्रतिशत केस जागरूकता के अभाव में स्वयं की गलतियों से ही होते हैं। ओटीपी, केवाईसी, ओएलएक्स आदि ऐसे अनेक तरीके हैं, जिनका प्रयोग हैकर्स द्वारा किया जाता है।
ऑनलाइन ठगी जैसे अपराधों से बचने के लिए जागरूकता एकमात्र उपाय है। मैसज को बिना पढ़े जल्दबाजी में आने वाले लिंक को खोलने एवं सत्यता की परख के बिना गूगल से नम्बर लेने से भी लोग साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं। जरूरी है कि अपने मोबाइल का एक्सेस किसी को नहीं देना चाहिए। इससे आपके मोबाइल का कंट्रोल दूसरे के हाथ में आ जाता है। प्ले स्टोर में एप्लीकेशन डाउनलोड करते समय उसकी वैधता भी चैक करनी चाहिए। लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए कि साइबर ठगी से बचने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं।
जैसे-मजबूत पार्सवड लगाना, पार्सवड को नियमित रूप से बदलते रहना, ऑनलाइन में अपनी पहचान को न बताना, पंजीकृत वेबसाइटों की पहचान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सुरक्षा सॉफ्टवेयर लगाना, साइबर अपराधों को बढ़ावा देने वाली विभिन्न वेबसाइटों की पहचान आदि। सरकार के साथ-साथ वित्तीय संस्थाओं की भी जिम्मेदारी है कि लोगों को टैक्नोलॉजी उपयोग के प्रति अधिक जागरूक कर इंटरनेट की दुनिया को और अधिक सुरक्षित बनाने की दिशा में कार्य करें। इन स्थितियों में हैकर्स के लिए डेटा को हैक करना मुश्किल होगा। इसका समाधान भी तकनीक एवं प्रौद्योगिकी द्वारा ही निकालने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति साइबर ठगी का शिकार होता है, तो उसकी सुरक्षा के लिए मजबूत साइबर तंत्र भी विकसित किए जाने की आवश्यकता है। साइबर ठगी का शिकार व्यक्ति जैसे ही अपनी शिकायत बैंक, पुलिस, साइबर क्राइम की वेबसाइट या कस्टमर केयर पर करता है, तो उस पर तुरंत ही गंभीरता से कार्रवाई होनी चाहिए। साइबर टीम उस संबंधित बैंक के अकाउंट पर होल्ड लगा कर उस खाताधारक से पैसे की ही वसूली न करे, बल्कि उस पर कानूनी कार्रवाई भी करनी चाहिए।
साइबर सुरक्षा को महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि बैंक, ई-वॉलेट कंपनियों, मोबाइल कंपनियों, पुलिस आदि की सामूहिक टीम का गठन होना चाहिए जो शिकायत पर सामूहिक रूप से कार्य करे। इन सभी विभागों के बीच तालमेल के लिए साइबर विशेषज्ञों की टीम के गठन की दिशा में कार्य होना चाहिए। पुलिस विभाग में साइबर अपराधों के लिए बनाए गए अलग सेल में आईटी क्षेत्र के प्रशिक्षित व्यक्तियों की नियुक्ति को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इस सेल के अधिकारों एवं दायित्वों में वृद्धि भी की जानी चाहिए। त्वरित कार्रवाई के लिए पीडि़त व्यक्ति की ऑनलाइन सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा होनी चाहिए। साइबर ठगी को रोकने की दिशा में सरकार ने प्रयास तो बहुत किए हैं, परंतु उनमें आपसी तालमेल न होने एवं गंभीरता से प्रयास न किए जाने की कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है।