दीनबंधु चौधरी छोटूराम जैसा किसान हितैषी आज तक नहीं हुआ। चौधरी साहब ने अपना जीवन किसानों के हित के लिए जिया। किसान चाहे किसी भी मजहब या जाति का रहा हो, उनके लिए वह अपना था। उन्होंने अपने प्रेरणास्रोत ऋषि दयानंद के वाक्य ‘किसान राजाओं का राजा होता है।’ को चरितार्थ कर के दिखाया व अंग्रेजो की गलत नीतियों के कारण खस्ताहाल हुए पंजाब के किसान को के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। चौधरी छोटूराम राजनीति में मजहब घुसाने के सख्त खिलाफ थे। वे राजनीति को आर्थिक आधार पर करने की वकालत करते थे। वे मजहब के आधार पर राजनीति करने वाले दलों के कट्टर विरोधी थे, जिस कारण कुछ सांप्रदायिक लोगों ने उन्हें धर्म विरोधी कहना शुरू कर दिया था ताकि कुछ धार्मिक सहानुभूति बटोर कर चौधरी साहब को राजनीति में हराया जा सके। पर जनता जानती थी कि चौधरी साहब सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के प्रबल शुभचिंतक हैं। अतः उनकी न चलने दी।
वैदिक सिद्धान्तों के अनुयायीः-
आज भी कुछ लोग इस बात पर यकीन रखते हैं कि छोटू राम जी धर्म आदि से दूर ही रहते थे, जबकि सत्य तो यह है कि वे केवल राजनीति में धर्म घुसाने के विरोधी थे। व्यक्तिगत जीवन में वे बड़े धार्मिक थे-आचरण में भी व संगठनात्मक रूप से भी। वैदिक सिद्धांतों में उनका पूरा विश्वास था। मांस-मदिरा, फिजूल-खर्च (सिनेमा-सांग आदि पर) व नशों के सख्त विरोद्दी थे। गौ दुग्ध को प्राथमिकता देते थे व यज्ञ आदि के भी समर्थक थे। आर्यसमाज के सिद्धांत, इकबाल का साहित्य व योगीराज श्रीकृष्ण की शिक्षाएं उनके लिए प्रेरणा स्रोत थे। 1 मार्च 1942 को रोहतक के जाट स्कूल में भाषण में उन्होंने स्वयं कहा था कि- ‘मैं अपने जीवन का एक रहस्य खोल दूं। जिस मार्ग पर चलना मैं अपना कर्तव्य कर्म मानता हूं, उस मार्ग का दृढ़ता पूर्वक अनुसरण करने में मुझे मुख्यतया उस दैवी विचार से शक्ति और प्रेरणा मिलती रही है जिसको यहाँ रोहतक से थोड़ी ही दूर कुरुक्षेत्र में 5000 साल पहले भगवान कृष्ण ने प्रकट किया था।’
शुद्धि_आंदोलन के प्रबल समर्थक:-
चौधरी छोटूराम ‘घर-वापसी’ के बहुत बड़े समर्थक थे। अपने मुखपत्र ‘जाट गजट’ अखबार में कई लेख इस मुद्दे पर लिखते रहते थे। मुसलमानों को पुनः वैदिक धर्म में लाते थे। जाट गजट 5 दिसंबर 1925 पेज नंबर 4 में चौधरी छोटूराम ने ‘एंब्रेस योर फाॅलन ब्रदर्स’ नाम से लेख लिखा था। जिसका अर्थ था भटके हुए भाइयों को वापिस राह पर लाना। इसमें हर जाति के धर्म परिवर्तित मुसलमान को पुनः सनातन वैदिक धर्मी बनाने के लिए कई जाट पंचायतों में रेजोल्यूशन पास करवाए। 12 नवंबर 1925 को पुष्कर की जाट महारैली में भरतपुर जाटनरेश विजेंद्र की अध्यक्षता में मुसलमानों की घर वापसी करवाने व उनको अपनाने का रिजोल्यूशन चौधरी छोटूराम ने पास करवाया जिसके बाद पूरे भारत में हर जाति के हिन्दू जो मुसलमान बन चुके थे उन्हें वापिस हिन्दू बनाने की आर्य समाजी मुहिम को फिर से बल मिला। चौधरी साहब से प्रेरित जाट महासभाओं ने भी शुद्धि आंदोलन तीव्र गति से चलाया। चौधरी साहब व कुछ अन्य आर्य लीडरों ने मिलकर एक शुद्धि कमेटी की भी स्थापना की, जिसके प्रधान चौधरी घासीराम आर्य बने वहीं ज्वाइंट सेक्रेट्री चौधरी छोटूराम बने।
जाट क्षत्रीय महासभाओं का उपयोग वे हर जाति के लोगो के लिए करते थे और अपने किसान हितेषी आंदोलनों व धर्म कार्यो में इनकी शक्ति का बहुत फायदा उठाते थे। इधर मुसलमानों ने भी तबलीग आंदोलन चलाया हुआ था, जिस पर छोटूराम के विचार थे कि हमें भी (वैदिक धर्मियों को) शुद्धि आंदोलन तेज रफ्तार से चलाना चाहिए ताकि इन तबलीग जैसे इस्लामिक मतान्तरण के खतरों से बचा जा सके। क्या कोई गैर धर्म-प्रेमी ऐसी बात कह सकता है?
दलितों की घर वापसीः-
सन 1932 में रोहतक के कुछ हिंदू दलित भाइयों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया। इस बात की सूचना लगते ही चौधरी छोटूराम आर्य लाहौर से रोहतक पहुंचे। उन दलितों की पुनः सनातन वैदिक धर्म में वापसी करवाई व दलितों को धर्म न छोड़ने के लिए प्रेरित किया। यह घर वापसी रोहतक रेलवे रोड़ के किसी मन्दिर में हुई थी। प्रसिद्ध इतिहासकार कैप्टन दलीपसिंह अहलावत उस शुद्धि कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने इसका पूरा ब्यौरा अपनी पुस्तक ‘जाट वीरों का इतिहास’ के दसवें अध्याय में पेज नंबर 929-30 पर दिया है। कौन है? जो इस सत्य को झुठला सके! कौन है, जो अब भी चैधरी छोटूराम आर्य के धर्म रक्षक होने पर विश्वास नहीं करेगा? ऐ मेरे भाइयो! कब तक सच को झुठलाओगे? सत्यमेव जयते।
धर्म रक्षकः-
एक आर्यसमाजी ही अपने धर्म का कट्टर और गैर सांप्रदायिक रह सकता है। दयानन्द से लेकर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, चैधरी चरणसिंह आर्य, चौधरी छोटूराम आर्य इसके साक्षात् उदाहरण हैं। ये सभी महापुरुष हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक व अपने वैदिक धर्म के पक्के थे। पाकिस्तान बनने की संभावनाएँ पंजाब में फैलने से उनको पंजाब के हिंदुओं की चिंता होने लगी थी। चौधरी साहब कहते थे कि अगर पाकिस्तान किसी तरह बन भी गया तो पंजाब के मुस्लिम बहुल इलाकों के हिंदू सिखों को बचाने व हक दिलाने का कर्त्तव्य उनका है। एक बार अंबाला डिवीजन को मेरठ डिवीजन में मिलाने के प्रस्ताव का उन्होंने शक्ति से विरोध किया था, क्योंकि इससे अंबाला डिवीजन (हरियाणा) जो कि हिंदू बहुल है, पंजाब से अलग हो जाता व बाकी पंजाब फिर मुस्लिम राज जैसा रह जाता, जहाँ पर अल्पसंख्यक हिंदुओं की बुरी हालात होती।
हिंदुइज्मः-
हिंदू हित के लिए उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था कि In any matter related to Hinduism, if anyone will attempt to Devour the Hindus, I would not allow him to do so before I was myself devoured first….
अर्थात् – हिंदुत्व से जुड़े किसी भी मुद्दे पर मुझे हिंदू धर्म की वफादारी के अलावा कुछ नहीं चाहिए। अगर कोई हिंदुत्व को खत्म करने की कोशिश करेगा तो मैं जब तक खुद नहीं मिट जाऊं तब तक हिंदुत्व खत्म नहीं होने दूंगा। भरी सभा में मुस्लिम लीडरों के बीच निडरतापूर्वक ऐसी बातें स्वामी स्वतंत्रतानंद जी का शिष्य ही कह सकता है। जब नेताजी सुभाष बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज आगे बढ़ रही थी, तब छोटूराम ने ही अपने गुरु स्वामी स्वतंत्रानंद जी व पण्डित जगदेव सिंह सिद्धांती आदि को हरियाणा में फौजियों को बगावत की तैयारी करने और बोस से मिल जाने के लिए भेजा था।
हरियाणवियों का बाबा दयानंदः-
सोनीपत में जमींदार लीग की बड़ी रैली चल रही थी। पंजाब के बड़े मुसलमान व सिख नेता वहाँ पधारे थे। एक सिख नेता ने अपने भाषण में किसानों की बात से हटकर हरियाणवियों को सिख बनने का न्योता दे डाला। जगदेव सिंह सिद्धांती व अन्य आर्य विद्वानों के कुछ कहने से पहले ही चौधरी छोटूराम आए व कहा कि किसान रैली में किसान हित की ही बात करो। रही गुरु की बात- तो हरियाणवियों का बाबा (गुरु) तो महृषि दयानंद सरस्वती ही है।आपको जो भी सन्त गुरु मानना है माने हम तो सनातनी ही रहेंगे।
चौधरी छोटूराम देश के विभाजन के खिलाफ थे उन्होंने पाकिस्तान बनने का पूरा विरोध किया था जिस पर सावरकर जी ने उनकी तारीफ भी की थी। सरदार पटेल जी ने उनकी मृत्यु के पश्चात कहा था कि अगर चौधरी छोटूराम जी होते तो मुझे पंजाब की किसी रियासत को भारत में मिलाने में जरा सी भी मेहनत न करनी पड़ती।
चौधरी छोटूराम जी ने सीखो द्वारा उठाई गयी अलग राज्य की मांग का भी पुरजोर विरोध किया के धर्म व जाति के आधार पर देश के टुकड़े करना सरासर गलत है। चौधरी छोटूराम जी ने जातिगत आरक्षण का भी पुरजोर वोरोध किया था। मोपला दंगों के आधार पर इस्लाम की नीति का भी विरोध किया। धर्म परिवर्तन करने पर अंबेडकर जी को भी अपने विचारों से फटकार लगाई थी। यह थी चौधरी छोटूराम की ऋषि-भक्ति।
मैंने चौधरी छोटूराम के धर्मपरायण होने की कुछ बातों का ही विवरण व तथ्य प्रस्तुत किए, ताकि आमजन को पता लगे कि चौधरी छोटूराम जी भी वैदिक धर्मी थे व अपने धर्म के शुभचिंतक थे। अपने को वे आर्यों का वंशज मानते थे। उम्मीद है कि आज का युवा वर्ग व नेतागण उनकी ही भाँति धर्म-रक्षक, गैर-सांप्रदायिक व किसान हितैषी बनने का प्रयास करेंगे।
प्रस्तुति— नरेश तोमर