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रामलला की लड़ाई लड़ने वाले किरदार, जिन्होंने समर्पित किया जीवन

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रामलला की लड़ाई लड़ने वाले किरदार, जिन्होंने समर्पित किया जीवन

अयोध्या मंदिर में रामलला को अपना स्थान मिल गया। रामलला को टैन्ट से निकाल कर भव्य मंदिर निर्माण तक पहुंचने तक, बहुत से किरदार ऐसे हैं जिन्होंने रामलला के लिए पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। अब तक कई मुख्य किरदार आपने देखे और सुने होंगे, इनमें से कुछ किरदार ऐसे हैं जो फैसले का दिन ही नहीं देख पाए और साथ ही कुछ ऐसे हैं जिनकी वह भूमिका ही बदल गई, जिस समय वह अयोध्या मुद्दे के साथ जुड़े थे। आज वह अलग ही किरदार में है। उस समय कारसेवकों के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली वह आडवाणी आज पार्टी के संरक्षण की भूमिका में हैं और लालकृष्ण आडवाणी के सारथी रहे नरेंद्र मोदी आज देश के प्रधानमन्त्री के रूप में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया और मस्जिद के लिए वैकल्पिक जगह भी मुहैया करा दी। इसमें न कोई जीता न कोई हारा। यह फैसला जब आया तब तक मंदिरों मस्जिद बनाने का सपना लेकर न्यायालय पहुंचे तथा आंदोलन चलाने वाले एवं समाधान में भूमिका निभाने वाले मुख्य किरदार। इनमे से ज़्यदातर चेहरे दुनिया से विदा हो लिए। जो उस समय किशोर रहे थे आज बुढ़ापे की ओर चले गए। कई के किरदार बदले तो कुछ की भूमिकाएं ही बदल गयी। तब मंदिर बनाने की सरकार से मांग करने वाले आज स्वयं सरकार है और जो मंदिर बंनाने में अड़चन डाल रहे थे वह आज विपक्ष में है। कुछ जो उस समय इस आंदोलन में नहीं थे। वह आज सत्ता संचालन के सूत्रधार है। अयोध्या मंदिर बंनाने की पैरवी में सबसे बड़ा नाम आता है अवैधनाथ व परमहंस का जिनकी एक आवाज से लोगों की भुजाएं फड़क उठी थी।
अयोध्या और मंदिर मस्जिद की बात पर निगाह मुख्य रूप से विश्व हिंदू परिषद शिवसेना से लेकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और सुन्नी वक्फ बोर्ड पर आ टिकती है। जिन्होंने श्री राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत देखी होगी कि किस तरह गोरखनाथ पीठ के महंत अवैधनाथ और अयोध्या के दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस की दहाड़ सभाओं में लोगों को हाथों को आसमान की तरफ उठाने के लिए मजबूर कर देती थी। इनमें से आज फैसला सुनने के लिए कोई भी चेहरा नहीं था। रामचंद्र परमहंस अयोध्या आंदोलन के अगुवा थे और श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष। उनका 31 जुलाई 2003 को निधन हो गया और श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष अवैधनाथ की 12 सितंबर 2014 में मृत्यु हो गई। एक चेहरा जरूर लोगों के जेहन में होगा जो मंदिर के विरोध में रहते हुए भी साथ रहे। अयोध्या विवाद में यह नाम जरुर देश के लोगों के दिमाग में है। वह बाबरी मस्जिद के मुख्य पैरोकार हाशमी अंसारी। जिनको लोग प्यार से हाशमी चाचा के नाम से बुलाते थे। इसी किरदार ने मस्जिद के पक्ष में लड़ाई लड़ने के बावजूद दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस के साथ दोस्ती रखी और यह दोस्ती देशभर में चर्चा का विषय रही। हाशमी तो परमहंस के तांगे पर एक ही साथ इसी विवाद की पैरोकारी के लिए जाते थे। हाशमी की भी 2019 में मौत हो गयी। उनकी जगह उनके पुत्र इकबाल अंसारी पैरोकारी कर रहे थे। मस्जिद के एक और पैरोकार फेकू आज इस दुनिया में नहीं है। हाजी फेकू मस्जिद पक्ष के मौजूदा पैरोकार हाजी महबूब के पिता थे.
एक चर्चित नाम शायद आप अंदाजा लगा सके अयोध्या मंदिर मुद्दे पर राजीव गांधी का नाम भी बहुत ज्यादा चर्चा में रहा। प्रधान मंत्री रहे कांग्रेस के गुलजारीलाल नंदा व प्रदेश की कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री दाऊ दयाल खन्ना की पहल पर ही राम जन्मभूमि आंदोलन की रूपरेखा बनी। यह दोनों आज नहीं हे। बावजूद इसके अयोध्या मंदिर आंदोलन के उभार के बाद कांग्रेस को यूपी में बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। फैजाबाद के वकील उमेश पांडे की अर्जी पर जिला अदालत फैजाबाद ने ताला खोलने का फैसला दिया। वह भी कांग्रेस के थे। जिस तरह ताला खुला व शिलान्यास हुआ। उसमें तत्कालीन केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भूमिका भी चर्चा में रही। मोरोपंत पिंगले आंदोलन के शिल्पकार और अयोध्या आंदोलन को कार सेवा के रूप में देश के जन-जन तक पहुंचाने वाले। मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले जो बाद में मोरोपंत पिंगले के नाम से जाने गए। राम मंदिर आंदोलन के शिल्पकार रहे। उन्होंने सोची-समझी और दूरदर्शी रणनीति के तहत प्रस्तावित मंदिर के लिए तीन लाख राम नाम की ईटों को देश के हर गांव में पूजा कराई। वहां से 8 तहसील जिला एवं राज मुख्यालय तक होते हुए अयोध्या लाई गई। इस रणनीति के चलते हिंदू समुदाय आंदोलन में भाग लेने के अलावा शिलाओं का पूजन, चरण पादुका पूजन , राम ज्योति यात्रा , भी आयोजित कराई। आंदोलन में जिससे और धार मिली। आंदोलन के रूप में पर्दे के पीछे से काम करते रहे. 85 साल की उम्र में मोरोपंत पिंगले जी का निधन हो गया। वह भी कोर्ट के निर्णय को नहीं देख पाये।
जनसंघ के नेता और बाद में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की भी भूमिका अयोध्या आंदोलन में सराहनीय रही। उदारवादी चेहरा होने के बावजूद अटल बिहारी बाजपेई ने इस मामले के समाधान का कई बार प्रयास किया। ढांचा गिरने के बाद जब राव सरकार ने संघ और विश्व हिंदू परिषद पर प्रतिबंध लगा दिया। तब अटल ने संसद में इसका प्रतिवाद किया। ढांचा गिरने से एक दिन पहले उन्होंने लखनऊ में जो भाषण दिया। लखनऊ के भाषण में अटल जी ने भाषण में कहा की उच्च कमान मझे दिल्ली बुला रहा हे। और मेरे सभी साथी कारसेवक जो अयोध्या जा रहे हे वह पूर्ण सफाई कर के आये। वह भाषण भी काफी चर्चा में रहा।
आज जब अयोध्या मंदिर मुद्दे पर फैसला आया तो वही उदारवादी चेहरा अटल बिहारी बाजपेई इस दुनिया में नहीं रहे।
एक नाम ऐसा भी है जो भुलाए नहीं भूलता वह नाम है। कांग्रेस सरकार में प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हा राव का 6 दिसंबर 1992 को ढांचा गिरा। तो नरसिम्हाराव देश के प्रधानमंत्री थे। माना जाता है नरसिम्हा राव की सहानुभूति हिंदुत्व आंदोलन के साथ और मंदिर निर्माण के पक्ष में थी। वह भी आज नहीं रहे नरसिम्हाराव ने एक ट्रस्ट बनाकर इस विवाद के समाधान का रास्ता भी सुझाया था। विवादित ढांचा गिरने के बाद उन्हीं के प्रधानमंत्री रहते अयोध्या भूमि अधिकृत की गई थी. अयोध्या मुद्दे पर सबसे चर्चित नाम और जिनके जीवन को अयोध्या मंदिर मुद्दे ने आज पूरी तरह पलट कर रख दिया और उनके जीवन में ही अयोध्या मंदिर मुद्दे पर फैसला आया।
वह लालकृष्ण आडवाणी जिसके जीवन काल में यह आंदोलन हुआ और उनके जीते जी आज न्यायालय ने फैसला दिया ऐसे लौह पुरुष जिनके द्वारा मंदिर आंदोलन को एक नई राह मिली। 1990 में जो एक कार सेवा सोमनाथ मंदिर से लेकर अयोध्या तक निकाली गई। उसके कारण ही पूरे देश भर में अयोध्या मंदिर मुद्दे पर देश भर में माहौल तैयार हुआ। तब आडवाणी के सारथी रहे नरेंद्र मोदी। उस समय आडवाणी को जेल भी जाना पड़ा। उनके इंतजार में देर रात तक सड़कों पर करसावको और लोगो की भीड़ जमा रहती थी। आज भारतीय जनता पार्टी के संरक्षण की भूमिका में है। तब आडवाणी के सारथी की भूमिका में रहे। नरेंदर मोदी आज फैसले के वक्त देश के प्रधानमंत्री हैं.
उस समय की तिकड़ी अटल बिहारी वाजपेई ,लालकृष्ण आडवाणी, और मुरली मनोहर जोशी इस आंदोलन में मुरली मनोहर जोशी की भी कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही। मंदिर आंदोलन के समय अटल आडवाणी के बाद भाजपा के सबसे कद्दावर नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी आज बूढ़े हो गए हैं। इस आंदोलन में डॉक्टर जोशी का किरदार कम महत्वपूर्ण नहीं रहा। जब ढांचा गिरा तो उस समय वह अयोध्या में उसी स्थल पर मौजूद थे जहां रामलला को टेंट के नीचे रखा गया था।
राम मंदिर मुद्दे पर सबसे बड़ा नाम अगर है। वह है अशोक सिंघल का मंदिर आंदोलन के आप उनको पौधा भी कह सकते हैं। मंदिर आंदोलन के डिजाइनर माने जाने वाले विश्व हिंदू परिषद के तात्कालिक महामंत्री अशोक सिंहल अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके भाई वीपी सिंघल भी इस आंदोलन में सक्रिय रहे। और वह भी आज जीवित नहीं है। प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे श्री चंद्र दीक्षित ने भी इस आंदोलन को नया तेवर देने की कम भूमिका नहीं निभाई। वह भी अब इस दुनिया में नहीं है।
ओंकार भावे : 29 अगस्त 1964 को जन्मे। हिंदू परिषद ने लगभग 20 वर्षों बाद 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अपनी पहली धर्म संसद में अयोध्या मथुरा और काशी के धर्म स्थलों को हिंदुओं को सौंपने का प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव को ओंकार भावे ने ही धर्म संसद में रखा था। भावे ने 1945 में संघ का प्रचारक बनने के साथ ही घर छोड़ दिया था। 2009 में उन्हें विश्व हिंदू परिषद का अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। आपातकाल के दौरान हुए आंदोलन में भी उन्होंने सबसे ज्यादा बढ़ चढ़कर भाग लिया था। 2009 को ओमकार भावे का निधन हो गया था। वह भी अयोध्या मुद्दे पर आए फैसले को नहीं देख पाए.
यह वह लोग हैं जिनके जीवन काल में फैसला आया और वह इस फैसले को देख पाए जो उस समय किशोर थे लेकिन आज जो वृद्धावस्था की ओर चले गए हैं। सबसे पहला नाम कल्याण सिंह आज उउम्र ने उन को कमजोर कर दिया है। लेकिन कल्याण सिंह की आवाज में आज भी वही जोशो है। कल्याण सिंह के मुख्य्मंत्री रहते बाबरी ढाँचा गिरा। जिस के आरोप में इन पर आज भी सीबीआई की विशेष अदालत में मुकदमा चल रहा है। उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एकमात्र ऐसे किरदार है जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में न्यायालय में दाखिल शपथ पत्र का पालन करने के कारण अमानना मामले में 1 दिन की सजा सुनाई थी। कल्याण सिंह ने आज कहा कि राम के लिए 1 दिन क्या जीवन भर जेल में रहने को तैयार हूं। एक सत्ता क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। कल्याण सिंह के तेवर तो वही है लेकिन उम्र के कारण शरीर में आवाज कमजोर हो गई है
युवा से प्रौढ़ावस्था में हुए कटिहार नाम तो पूरे देश के आज भी कही ना कही चर्चा में रहता है। राम मंदिर आंदोलन में सबसे युवा रहे और मंदिर आंदोलन में कारसेवा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया वह नाम है। विनय कटियार का राम मंदिर आंदोलन से युवाओं को जोड़ने के लिए संघ ने विश्व हिंदू परिषद के अंतर्गत बजरंग दल बबनाया। तो संघ के प्रचारक रहे विनय कटियार को उसका राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया। कानपुर में रहने वाले कटिहार के तेवरों ने इस आंदोलन को और आक्रमक बनाने का काम किया। अयोध्या आंदोलन के बाद कटिहार का अयोध्या से ऐसा मन लगा। कि वह अयोध्या से दूर नहीं रह पाए। अयोध्या में वह तीन बार के सांसद रहे वर्तमान में वह संगठन मैं कई महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
उमा भारती की भी बदल गई भूमिका आंदोलन के दौरान कटिहार की तरह ही गर्म तेवर वाले भाषण उमा भारती भी देती थी। साध्वी उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा के भाषण उस समय गांव गांव तक पहुंचे। 1991 के लोकसभा चुनाव में इनकी ऑडियो वीडियो सीडी गांव गांव में चलाई गई। उमा को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री पद मिला। वहीं भाजपा से निष्कासन भी झेलना पड़ा। बाद में फिर पार्टी में आई और पहली बार मोदी सरकार में मंत्री बनी। 2019 में उन्होंने लोक सभा चुनाव लड़ने से माना कर दिया
ऋतंभरा अब वात्सल्य ग्राम चला रही है। अनाथ बच्चों के लिए वात्सल्य ग्राम चलाने वाली साध्वी ऋतभरा मंदिर आंदोलन की चर्चित किरदारों में से एक रही। हिंदुओं की फारवर्ड नेता को लिबरल आयोग ने विध्वंस मामले का प्रमुख अभियुक्त बनाया। कहा जाता है कि कारसेवा एक बार तो लूटने लगे थे लेकिन ऋतंभरा के भाषण सुनकर कारसेवक फिर लौटे। उसके बाद पूरा ढांचा ढहा दिया। विध्वंस के बाद ऋतंभरा का राजनीतिक कद कमतर हो गया।
बाबा साहब देवराज के तब सरसंघचालक थे। और उनके अनुज भाई देवराज सह सरकार्यवाह, इसके साथ सहसरकार्यवाह प्रोफेसर राजेंद्र सिंह राजू भैया ,संघ प्रचारक भानु प्रताप शुक्ल, की भूमिका भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण रही। भाजपा नेता व यूपी के राज्यपाल रहे विष्णुकांत शास्त्री, भाजपा के ब्रह्मदत्त दुवेदी , महेश नारायण सिंह और कुछ ऐसे नाम है जो आज दुनिया में नहीं है पक्ष कार गोपाल सिंह विशारद, देवकीनंदन अग्रवाल, व शिलान्यास के विरोध में फावड़ा मेरे सिर पर पड़ेगा का ऐलान करने वाले कमलापति त्रिपाठी। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी श्री राम द्वार समिति बनाकर इस स्थान पर मंदिर बनाने की लड़ाई लड़ी।
एक नाम तो सबके जेहन में घूमता ही होगा जब कभी अयोध्या मुद्दे की बात आएगी तो मुलायम सिंह के बिना यह आंदोलन अधूरा रहेगा। आंदोलन में मुलायम सिंह यादव का जिक्र ना करें ऐसा नहीं हो सकता। क्योंकि बिना मुलायम के बात अधूरी रहेगी मंदिर आंदोलन के दौरान मुलायम के मुख्यमंत्री रहते भारी क्षति हुई। आंदोलन में कारसेवकों पर गोली चलाई गई। कारसेवक कोठरी बंधू सहित कई कारसवको की गोली लगने से मौत हो गयी थी। इसके बावजूद उन्होंने अपने दम पर अयोध्या मंदिर मुद्दे पर कई सियासी विकल्प दिया। पिछले दिनों मुलायम ने गोली चलाने का अफसोस जताकर फिर दोबारा चर्चा में आए। आज मुलायम भी इस समय मुख्यधारा से बाहर है.
भास्कर दास की भी पूरी नहीं आस। आज आंदोलन में सक्रिय रहे निर्मोही अखाड़े के महंत भास्कर दास इस मामले में निर्मोही अखाड़े की तरफ से राम जन्म भूमि स्थल पर अपने अखाड़े के एक महत्त्व रघुनाथ दास की तरफ से किए गए दावे में शामिल थे। उन्होंने न्यायालय द्वारा इस स्थल पर नियुक्त रिसीवर को हटाने की मांग करते हुए। अपने अखाड़े के कब्जे में देने की मांग की थी।
9:11: 2011 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगले दिन सुबह रविवार को सूरज की पहली किरण ने अयोध्या का सपना लेकर आई। सरयू नदी रोज की तरह अपने रोहो में बह रही थी। स्नान करने आए साधु-संतों को लेकर श्रद्धालु नए जोश और उम्मीद में थे। मुसलमान समुदाय पूरे मामले को अंतहीन विवाद बहस और तनाव से मुक्त के रूप में देखता नाजर आया। हर और लोगों में भगवान राम की मर्यादा नजर आयी। आज फिर सिर्फ अयोध्या ही नहीं बल्कि समूचा भारत शांति सौहार्द और तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ेगा।
पतित पावनी सरयू कि कल कल धारा साधु संतों के जय श्रीराम के नारे वह मस्जिद में अजान। राम नगरी हर रोज की तरह चल पड़ी साधु-संतों और श्रद्धालुओं ने सरयू नदी में डुबकी ली बाहर निकले तो सीता राम का जाप करते हुए मंदिर की आराधना के लिए हर रोज की तरह चल पड़े। ठीक यही नजारा के मस्जिद का अजान हुई। ऐतिहासिक फैसले के 1 दिन बाद पूरे देश के हर शख्स की आंखों में खुशी में आत्मविश्वास झलक रही थी।

नरेश तोमर की कलम से

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