जैविक खेती क्यों करें:- किसी ने कहा है ‘‘पहला सुख निरोगी काया‘‘ अपने शरीर को मजबूत रोगों से लड़ने लायक बनाने के लिए जैविक खेती करना हमारी मजबूरी बन गयी है, अक्सर देखने में आया है कि हम जो अजैविक खेती कर रहे हैं उसमें हानि इसलिए हो रही है क्योंकि अजैविक उत्पाद खाकर मनुष्य जीते जी मर रहा है, एक रिपोर्ट के अनुसार अगर हम नहीं चेते तो सन 2040 तक 38 प्रतिशत कैंसर रोगी भारत में होगें।
आज हम सादगी भूल गये हैं, दिखावा लोगों की मजबूरी सी बनती जा रही है, हमारे बच्चे आॅपरेशन से पैदा हो रहे हैं, गर्भवती महिलाओं को ताकत की एलोपैथिक दवा व अनेक तरह की दवा डाॅक्टर खिला रहे हैं, बच्चा पेट में आते ही डाॅक्टर के यहां पहुंच जाते हैं, महिलाओं का हर माह डाॅक्टर अल्ट्रासाउन्ड कराते हैं जो कि अत्यन्त हानिकारक है। ताराचन्द मोदी अस्पताल के डाॅक्टर डी0के0 कंसल ने मुझसे एक बार कहा था कि गर्भवती महिलाअेां को अंग्रेजी (एलोपेथी) की ताकत की दवा खिलाना भी हानिकारक है। डा0 विजय शर्मा (बाल रोग विशेषज्ञ) का कहना है कि बच्चों में स्वयं रोग ठीक करने की क्षमता मनुष्य के मुकाबले बहुत अधिक होती है। बच्चा पैदा होने के बाद बच्चे को अगर जरा सी छींक भी आती है तो तुरन्त डाॅक्टर के पास ले जाते हैं, डां0 का हाथ लगते ही ठीक न हुआ तो डाॅक्टर बैकार और फिर दूसरे डाॅक्टर से इलाज कराते हैं, इसलिए डाॅक्टर को लीक से हटकर इलाज करना पड़ता है। इसके दो कारण हैं, पहला आहार अच्छा न होना व परम्परा के अनुसार जीवन शैली न होना, महिलाऐं चक्की पीसने से बचती हैं, बैठकर घर के फर्श पर पौंचा नहीं लगाती, स्नान घर में मुलतानी मिट्टी, दन्त मंजन, बैसन, हल्दी, मलाई, खट्टी छाछ गायब हो गयी है, उसके स्थान पर कीमती साबुन, शेम्पू, पेस्ट तरह-तरह की मंहगी क्रीम और अनेकों तरह की जाने क्या-2 चीज इस्तेमाल कर रहे हैं जो मानव शरीर के लिये जरा भी उपयोगी नहीं है उल्टा हानिकारक होती हैं। जैविक खादान्न के साथ-2 हमें अपनी जीवन शैली भी जैविक करने की आवश्यकता है। अपने खर्च को भी सीमित कर जहां भी रहें अपने समाज व देश के हित में कार्य करें। अपने फिजूल के खर्चे घटायें और तनावमुक्त जीवन यापन करें, जहां भी जो कार्य करें ईमानदारी से करें तो आपका जीवन सुधर जायेगा।
किसान आज घाटे का सौदा बन कर रह गया है, उसके साथ मंहगे हाईब्रिड सीड, मंहगी तरह-तरह की कीटनाशक दवायें, जिनके चगुंल में किसान ऐसा फंस गया है कि चाहते हुए भी इस भंवर से निकल नहीं पा रहा है। कैंसर, हाईब्लड प्रेशर, चरम रोग, शुगर और तरह-2 की बीमारियां, हमारा आहार विषैला हो रहा है, इसी कारणं जैविक खेती हमारी मजबूरी बन गयी है, जैविक खेती कैसे करें उसके बारे में बताने जा रहा हूँ।
रसायनिक खाद व कीट नाशकों के बिना खेती जैविक खेती है। आज अपनी भूमि में जीवान्श कार्बन पोषक तत्वों की भारी कमी है, इस दशा में जैविक खेती करना सम्भव नहीं है। हमें जीवाणुंओ का घनत्व अपनी भूमि में बढ़ाना है। जैविक खेती के लिए भूमि समृद्ध बनाने की जरूरत है, समृद्ध जमीन में की जाने वाली खेती जैविक खेती है।
जैविक खेती कैसे करें:- जब भी किसान कृषि गोष्ठी में जाते हैं तो जैविक खेती पर जोर दिया जाता है कोई यह नहीं बताता कि कीट प्रबन्धन कैसे करें, उसी कृषक गोष्ठी में कीट वैज्ञानिक कीड़ों का इलाज जहरीले रसायनों बताने लगते हैं कोई भी चाहे जैविक खेती हो या जीरो बजट खेती उसमें भी कीट प्रबन्धन नहीं बताया जाता, क्या खेती भी जीरो बजट हो सकती है, मेरी समझ से बाहर है, आज खेती में खर्च ज्यादा हो रहा है इसके बदले में मेहनत नहीं मिलती, जैविक खेती करने में खर्च जरूर कम होगा परन्तु पैदावार भी कम होगी परन्तु फसल के उत्पाद में गुणवत्ता भरपूर होगी ऐसा मेरा अनुभव है।
जैविक खेती व किसानों का दर्द एक विचार
अनुज कुमार बिसला, जैविक खेती क्या है:- अपने देश में सन 1960 से पहले जैविक खेती होती थी। आज की जैविक खेती व पुरानी जैविक खेती में अन्तर बस इतना है कि आज उन्नतिशील बीज उपलब्ध हैं, उस जमाने में उन्नतिशील बीज नहीं थे और पानी का साधन नहीं था और आज पानी के साधन भरपूर मात्रा में है।
किसान का स्वर्णिम समय सन 1970 से 2000 तक था इन तीस सालों में किसान ने बहुत तरक्की की एक कहावत है ‘‘किसान खुशहाल देश खुशहाल‘‘ इस काल में देश में भी अत्यधिक तरक्की की थी। सन 1970 में ढाई कुन्तल गैंहू में एक तौला सोना आ जाता था उस समय वेतन बहुत कम थे किसान की इज्जत थी किसान गांव में रोजगार देता था, परन्तु सन 2000 के बाद धीरे धीरे किसान की हालत बद से बदतर होती जा रही है, किसान की वस्तु सोने की तुलना में बहुत कम है, सरकारी कर्मचारियों को सरकार अत्यधिक वेतन देती जा रही है क्योंकि सन 1970 के मुकाबले गैंहू का धान केवल आज 2019 में 22 गुना हुआ है किसान की अन्य वस्तुओं की कीमत भी कम होती जा रही है, सरकारी कर्मचारी व अधिकारियों का वेतन सन 1970 के मुकाबले 200 से 300 और 400 गुना तक हो गया है उसके बाद भी जरा सी कीमत किसान की वस्तु की बढ़ जाये तो मीडिया उद्यम उतार देती है, मीडिया वैसे किसान के दर्द को भी लिखती है परन्तु उसको हाईलाईट तक नहीं करती है, अगर किसान का कर्ज माफ होता है या किसान को सहूलियत मिलती है तो अखबारों एवं टीवी पर चलचित्रों में बहुत हाईलाईट की जाती है परन्तु अगर पूंजीपतियों का भारी कर्ज माफ किया जाता है तो मीडिया को उसकी भनक तक नहीं लगती, पहले कहावत थी ‘‘उत्तम खेती मध्यम बान निशिद्ध चाकरी भीक निदान‘‘ परन्तु अब ऐसा लगता है जैसे ‘‘उत्तम नौकरी मध्यम बान निशिद्ध खेती भीक निदान‘‘ अगर सरकार को देश की अर्थव्यवस्था सुधारनी है तो किसान को फसल का लाभकारी मूल्य दिलाना होगा, किसान पर अगर पैसा होता है तो कभी भी पैसो को अपने पास नहीं रखता सब रूपया बाजार में चला जाता है, एक जमाना था हमारे किसानों में जमीन वाले लड़के की शादी खुशी से होती थी, नौकरी वाले को अपनी लड़की मजबूरी में देता था, आज स्थिति विपरीत है आज के समय में अपनी बेटी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को देना चाहता है, 50 बीघे जमीन वाले लड़के की शादी नहीं हो पा रही है, इससे विदित होता है कि किसान घाटे में जी रहा है, मैं अपना दर्द कहने लगा जैविक विषय से भटक गया था।
मैं कह रहा था कि जैविक खेती आज के समय में हवा में हो रही है कोई कीड़ों से फसल को कैसे बिना कीटनाशकों के सुरक्षित करें, इस बारे में कोई बात नहीं करता तरह तरह की बातें जैविक खेती के नाम पर करते हैं तथा लोगों को जैविक खेती के नाम पर लूट रहे हैं।
मेरे पर ईश्वर की असीम कृपा है, इसी कारण मुझे ऐसे वैज्ञानिक मिलते जा रहे हैं जिसके करण मैंने बिना जहरीले कीटनाशकों के कीट प्रबन्धन सीख लिया है, अगर कीट वैज्ञानिकों से कीड़ों से बचने का उपाय बिना कीटनाशकों के पूंछ लिया जाता है तो वैज्ञानिक खुद भ्रमित हो जाते हैं, उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि बिना कीटनाशकों के कीड़ों का प्रबन्धन प्रकृति में ही मौजूद है, उसे अपनाकर जैविक खेती करना आसान हो जायेगा कुछ फसल ऐसी हैं जैसे गेंहू, जौं, सरसों, अलसी, मटर इन फसलों की खेती बिना कीटनाशकों के आसानी से हो जाती है लेकिन सब्जियां, चना, धान आदि की खेती करने में कीट प्रबन्धन जैसे अण्ड परजीवी, एन.पी.बी. वायरस तथा फोरोमेनट्रेप का व दस हजार पी.पी.एम. का नीम आॅयल जो घुलनशील भी होता है उसका इस्तेमाल करके अच्छे से कर सकते हैं, आज जो केन्द्र और राज्य में सरकार आयी है ये किसानों की सरकार है क्यांेकि बीजेपी को सभी किसानों ने बढ़-चढ़कर वोट दी ऐसा लगता है कि यह सरकार किसानों के लिये चिन्तित है, सरकार का मानना है कि जीरो बजट खेती से किसानों को लाभ होगा जीरो बजट खेती में भी कीट प्रबन्धन के बारे में कोई बातचीत नहीं होती, मेरा विचार है मैं इसका जिक्र इस लेख में पहले भी कर चुका हूं कि जीरो बजट खेती हो ही नहीं सकती, खेती में तो लागत लगती है और मुझे आशा है कि सरकार किसानों का भला करने के लिये कोई ठोस कदम जरूर उठायेगी। अभी तक किसानों के उत्थान के लिये कोई ठोस उपाय मुझे नजर नहीं आ रहा है, मुझे आशा है कि सरकार इसका हल ढूंढ लेगी, अभी तक जो भी योजना है उनमें किसान का भला होता नजर नहीं आ रहा है।
प्याज के किसानों कि लिये बड़ी दुखद बात यह है कि फसल आने पर किसान को प्याज के दाम नहीं मिल पाते, ऐसा लगता है कि सरकार इस समय में प्याज का निर्यात कर बढ़ा देती है जिसके कारण किसान को प्याज के लाभकारी दाम नहीं मिल पाते हैं। इसी प्रकार गन्ना किसानो की भी समस्या है, गन्ना किसानों को उनके गन्ने का समय पर भुगतान नहीं मिलता है, इस पर सरकार जरूर विचार करेगी, मुझे ऐसा विश्वास है।
किसान की एक ज्वलतं समस्या यह है कि जंगली पशु नील गाय, गीदड, सूअर, कहीं कहीं बन्दर भी फसल को हानि पहुंचाते हैं, इनके प्रबन्धन के लिये यहां शेर, चीता, भेडिया, तेदुआ व अन्य मांशाहारी जानवर होने चाहिये परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है, उपरौक्त जंगली पशुओं के कारण दलहनी फसल तो किसान बो नहीं सकता, इसके अलावा पटसन, मक्का, तथा सब्जी की फसलों में भी अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं, इन जंगली जानवरों को सरकार स्वयं प्राथमिकता के आधार पर समाप्त कराये ऐसा होने पर भी किसान को कुछ राहत मिलेगी या किसानों को इनको समाप्त करने का अधिकार दिया जाये।
हमारी इस नयी बीजेपी की सरकार में एक और समस्या पैदा हो गयी है कि किसानों के घर पर बंधी गाय बछडी की कीमत घटकर एक चैथाई रह गयी है, चैथाई दाम में भी गोवशं बिक नहीं रहे हैं, बछड़े को तो कोई किसी भाव लेने को तैयार नहीं है, वैसे गाय एवं बछड़ी का भी हर समय ग्राहक मौजूद नहीं रहता जैसे पहले आवाज देते ही गाय बछडा-बछड़ी बिक जाते थे इसी कारण किसान को भारी घाटा उठाना पड रहा है, इसी कारण आवारा पशुओं की समस्या भी किसानों के लिये समस्या बनी हुयी है, हमारे गांव बिगास, कनिया जिला हापुड़ में इसलिये ज्यादा है क्यांेकि जाने कहां कहां के लोग रात के समय में बाबूगढ़ पशुपालन व कृषि क्षेत्र में छोड़ जाते हैं इनकी तादाद इतनी ज्यादा हो गयी है कि फसल को सुरक्षित रख पाना बहुत मुश्किल हो गया है, इसके लिये प्रशासनिक अधिकारियों व विधायक से भी प्रार्थना की गयी परन्तु कोई हल नहीं निकला, गांव में एक गौ शाला जरूर बनी है उसमें 20 गौवशं की क्षमता है, वहां भी भूख से तडप-तडप कर 15 गाय मर गयी हैं, उनकी गिनती की पूर्ती करने के लिये दूसरी गाय जगंल से पकडकर बांध दी जाती हैं।
मैं बीजेपी का सदस्य हूँ, तथा सेवक भी हूं, मेरा ये कहना है कि हमारे पूर्वज कच्चा मांस खाते थे प्रकृति का नियम है कि जीव जीव का भोजन है इसी सिद्धान्त पर पूरी प्रकृति टिकी हुई है, इसी सिद्धान्त पर कीट प्रबन्धन भी होता है, मेरी अपनी इस सरकार से अुनरोध है कि इन आवारा पशुओं का वध करके भोजन हड्डी चमडा आदि का प्रयोग करके जनमानस को अत्यधिक लाभ होगा।
जब हम मेघालय व गोवा और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में गोवध पर पाबन्दी नहीं लगाते तो हमारे उत्तर प्रदेश में किसानों पर यह अत्याचार क्यों हो रहा है, हमारे उत्तर प्रदेश में जो गाय हैं ये शंकर नस्ल की गाय हैं इनका दूध ए-2 श्रेणीं का नहीं है, इनका गोबर और मूत्र भी देशी गाय जैसा नहीं है, इस पर 33 कोटी देवता भी निवास नहीं करते, पूरी दुनिया में 10 से 15 प्रतिशत लोग ही शाकाहारी हैं जो भारत में ही हैं।
जहां तक जीव हत्या का सवाल है बकरा, मुर्गा, सूअर, मछली तथा जो फसल को हानि पहुचाने वाले कीटों में भी वहीं आत्मा है जो हाईब्रिड गाय में है तो धर्म के आधार पर इनकी हत्या भी पाप है, परन्तु इनकी हत्या दूसरे बीजेपी शासित प्रदेशों में की जा रही है अतः मेरा अनुरोध है कि किसानों की उपरौक्त समस्या का स्थायी समाधान सरकार द्वारा किया जाये।
जैविक खेती के बारे में लिखते-लिखते किसानों की ज्वलंत समस्या के विचार मेरे अन्दर आ गये, जैविक खेती कीट प्रबन्धन के द्वारा ही सम्भव है, जिसके बारे में इस लेख में मैंने संक्षेप में बताने की कोशिश की है। कीट प्रबन्धन का विषय बहुत विस्तिरित है, इसे संक्षेप में बताया जाना सम्भव नहीं है। अन्त में मैं अपनी बात को विराम देते हुए पाठकों से विनती करता हूँ कि मैं एक बहुत कम पढ़ा लिखा किसान हूँ, हो सकता है कि भाषा शैली में या और किसी विचार में कोई खामी रह गयी हो तो कृपया उसे अन्यथा लेने की कृपा न करें, आपसे यही प्रार्थना है।
विचारक- अनुज कुमार बिसला