राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में बीजेपी की करारी हार हुई है. इन राज्यों में बीजेपी की हार के कई मायने निकाले जा सकते है. आप पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल कह सकते है. राजस्थान में बीजेपी का वोट प्रतिशत कांग्रेस के बहुत कम नहीं है लेकिन सीटें बीजेपी को कांग्रेस से कम मिली है. वहीं मध्यप्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले है. लेकिन यहां भी कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा सीटे मिली है. चुनाव परिणाम आने के बाद बीएसपी ने दोनों राज्यों में कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है. वहीं अगर नजर डाले तो बीएसपी का वोटबैंक भी इन तीनों ही राज्यों में कम हुआ है. छत्तीसगढ़ में तो मायवती ने अजित जोगी के सथ गठबंधन किया था. लेकिन बात फिर भी नहीं बन पाई.
2014 से बीजेपी का गिरता ग्राफ
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. मायावती ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उन्हे संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है. और उन्होंने ऐसे कहकर राज्यसभा से अपना इस्तीफा दे दिया. 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए. मायवती को लगा कि उनकी पार्टी एक बार फिर सत्ता में वापस आ जाएगाी और वो प्रदेश की मुख्यंत्री बन जाएगीं. लेकिन जब नतीजे आए तो सब चौक गए. बीजेपी को प्रदेश में बहुमत मिला और मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ. 2019 के आम चुनावों से पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा के चुनावों पर सबकी नजरें टीकी थी. मायावती ने भी अपनी पार्टी के लिए खूब प्रचार किया. लेकिन जब नतीजे आए तो उन्हें एक बार फिर उन्हें निराशा ही हाथ लगीं. बीएसपी के विधायक तो कम हुए ही उसका वोट बैंक भी कम हुआ.
2014 के बाद से रावण का बढ़ता कद
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद जहां एक तरफ मायावती का कद देश की राजनीति में घटता चला गया वहीं भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ का रावण का राजनेतिक कद देश में किसी भी नेता से ज्यादा बड़ा होता चला गया. दलितों के लिए रावण के नाम से मशहूर चंद्रशेखर राम बन गए. रावण दलित युवाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते है, एक तरफ यूपी पुलिस उन्हें ढूंढ रही थी वहीं दूसरी तरफ वो दिल्ली में रैली कर रहे थे. उनकी रैली के बारे में किसी को कानों कान खबर नहीं हुई. दिल्ली में उनकी रैली में जनसैलाब उमड़ पड़ा. 2017 में योगी सरकार आई तो रावण को जेल हुई. लेकिन इसी साल योगी सरकार ने उन्हें आजाद कर किया. सरकार के इस फैसले को चुनावों से जोड़कर देखा गया. लेकिन जह रावण आजद हुए तो उन्होंने कहा कि 2019 में मोदी सरकार को दोबारा से सत्ता में आने से रोकना है.
मायावती को समर्थन का ऐलान
रावण ने कोई नई पार्टी तो नहीं बनाई लेकिन जब भी उनसे पूछा गया तो उनेहोंने कहा कि वो मायावती का समर्थन करेंगे. लेकिन मायावती ने हर बार मना किया की उनकी पार्टी का रावण से कोई संबंध नहीं है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि मायावती रावण से इतनी कन्नी क्यों काट रहीं है. कोई भी पार्टी रावण को अपनी पार्टी में लाना चाहेगी. क्योंकि रावण दलितों के बीच आज सबसे लोकप्रिय है. अगर रावण वोट मांगने निकले तो दलितों का सारा वोट एक तरफ से उनके पास ही आएगा. साथ ही रावण अभी युवा है और ऐस में अगर वो बीएसपी के साथ आते है तो बीएसपी उनसे अच्छी तरफ से काम ले पाएगी. बीएसपी दलित युवों को एक झटके में अपने पाले में ले आएगी. लेकिन मायावती इससे दूर भाग रही है.
रावण से बीएसपी को राजनीतिक मिलता फायदा
रावण अगर पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में सीधे तौर पर मायावती के लिए वोट मांगने निकलते तो बीएसपी का वोट बैंक बढ़ना लाजगी था. बीएसपी को सबसे ज्यादा फायदा मध्यप्रदेश और राजस्थान में होता. इन दोनों ही राज्यों में दलितों का आरोप था कि बीजेपी सरकार में उनका उत्पीड़न हो रहा है. ऐसे में सवाल आखिर मायावती को रावण का साथ क्यों पसंद नहीं है.
परिवारवाद है असली वजह !
राजनीतिक जानकार इसके पीछे की वजह मायावती को गर बता रहे है. जानकारों की माने तो मायावती को यह डर सता रहा है कि अगर रावण बीएसपी में आ गया तो उनकी कुर्सी को खतरा है. बीएसपी में अभी मायवती की विरासत संभालने वाला कोई नहीं है. रावण आने के बाद एक विकल्प के तौर पर देखें जाएगें. ऐसे में मायावती के मुंह बोले भाई को इससे सीधा नुकसान होगा. आनंद का मायावती के बाद बीएसपी में सबसे ज्याद प्रभुत्व है. रावण के आने के बाद से वो खत्म हो जाएगा. और मायावती की सबसे बड़ी चिंता यही है. इसलिए वो उससे दूर भागती नजर आ रही है.