बस्ती (यूपी)
भगवान गरीबी दे तो बीमारी न दे। बीमारी वह भी कैंसर। दो बेटियों के इस पिता पर परिवार के पांच सदस्यों के भरण पोषण की जिम्मेदारी है। मगर कैंसर जैसी घातक बिमारी से जुझ रहे भोलानाथ ठठेर आज अपनी जिंदगी की जंग लड रहे हैं. समय रहते अगर मदद न मिली तो इलाज के अभाव में गरीब की तो जान ही चली जाएगी।
बस्ती के विक्रमजोत कस्बे मे रहने वाले इस परिवार से मिलिये. जिसने पूरे कमरे में अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी. लेकिन आज जीवन के अंतिम पडाव पर खडे भोलानाथ तिल तिल कर मरने को मजबूर है. गले के कैंसर से जुझ रहे भोलानाथ बेहद गरीबी मे जीवन यापन कर रहे. जब तक पैसा था उनका ईलाज हुआ और जब घर के सारे कीमती सामान बिक गये तो आज भोलानाथ बेड पर ईलाज के अभाव मे पडे रहते हैं. घर मे दो बेटियो की जिम्मेदारी के साथ साथ परिवार के लिये दो वक्त की रोटी का जुगाड करना भी अब भोलानाथ के लिये बेहद कठिन है.
कभी ईलाके मे गली मुहल्लो और गांव गांव मे जाकर छोटे मोटे बर्तन बेचने वाले भोलानाथ आज बेबस हो गये हैं. उम्र के आखिरी पडाव पर जब उन्हे अपनो को प्यार की जरुरत थी तो कैंसर ने उन्हे घेर लिया और समय भी इतना खराब कि वह ईलाज तक कराने मे सक्षम नही. भोलानाथ के दो साल पहले डाक्टरो ने कैंसर होना बताया. जिसके बाद वे लखनऊ मे ईलाज करवाये मगर कोई राहत नही मिली तो भोलानाथ मुंबई के एक प्राईवेट कैंसर अस्पताल मे ईलाज कराने गये, जहां वे ईलाज कराये रहे और जीवन की सारी पूंजी उनके ईलाज मे खत्म हो गई. आज यह परिवार दाने दाने को मोहताज है. भोलानाथ अब पुरी तरह से असक्षम हैं, एक बेटा है तो वह मजदूरी करके किसी तरह से परिवार का भरण पोषण कर रहा. दो बेटियो मे से एक विकलांग है जिसे आज तक सरकार से किसी योजना का लाभ नही मिला. इतना ही नही गरीबी का दंश झेल रहे इस ठठेर परिवार को किसी भी सरकारी योजना से लाभान्वित नही किया जा सका. जो कि बेहद दुर्भाग्य है. मजबूरी और लाचारी मे परिवार जी रहा, भोलानाथ अपनी अंतिम सांसे गिन रहे. भोलानाथ के लेकर पुरा परिवार दुखी है, उन्हे बस इंतेजार है तो किसी फरिस्ते का. जो उनके दुख को दूर कर सके, बहरहाल भोलानाथ ठठेर को डाक्टरो ने बताया है कि ईलाज मे देरी कभी भी उनकी जान को सकते मे डाल सकती है..
रिपोर्ट- सतीश श्रीवास्तव
बस्ती यूपी