जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में भारतीय घुड़सवारों ने दो सिल्वर मेडल दिलाकर देश का सिर ऊंचा किया है। इन पदकों से अलीगढ़ के घुड़सवारों में भी कुछ कर गुजरने का जोश भरा होगा लेकिन सुविधाओं के अभाव में वे मात खा जाते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में देश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी का इकलौता राइडिंग क्लब है लेकिन यहां से भी राष्ट्रीय स्तर के सवार नहीं निकल पा रहे। इसमें बड़ी समस्या कम घोड़े होना है जबकि ट्रेनिंग लेने वाले छात्रों की संख्या अधिक होती है। पिछले साल 110 छात्रों के दाखिले किए गए जबकि घोड़े मात्र 23 हैं। इनमें भी पांच बूढ़े हैं। एएमयू के राइडिंग क्लब की देश में अलग पहचान हैं। संस्थापक सर सैयद अहमद के समय में क्लब की स्थापना 1889 में हुई थी।
संस्थापक सर सैयद अहमद के समय में क्लब की स्थापना 1889 में हुई थी तब एमएओ कॉलेज के प्रधानाचार्य थेयोडोर मोरिसन कॉलेज में घूमने को घोड़े का इस्तेमाल करते थे। क्लब के सदस्य सेना व विभिन्न प्रदेशों की पुलिस के साथ घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में जाते हैं। एएमयू के दीक्षांत समारोह या सर सैयद डे के मुख्य अतिथि को बग्घी पर बिठाकर कार्यक्रम स्थल तक ले जाने की परंपरा हैं। इसमें राइडिंग क्लब के घोड़े व क्लब के घुड़सवार सुरक्षा घेरा बनाकर मुख्य अतिथि के साथ चलते हैं। एएमयू राइडिंग क्लब हमेशा से टेंट पेकिंग में पहचान बनाए हुए है। टेंट पेकिंग में इस समय बाइडगोल, शमसीर व पारिस नाम के घोड़े हैं। जंपिंग में जुनून, सपीरा और जर्गुन हैं।
वहीं एएमयू के जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि ट्रेनिंग के लिए 18 घोड़े हैं। पांच घोड़े बूढ़े हो गए हैं। उनकी नीलामी होनी है। इस सत्र में दाखिले घोड़ों की संख्या के अनुसार ही करेंगे। एनसीसी के अफसरों से बात चल रही है। राइडर क्लब के नदीम अंसारी का कहना है कि क्लब में अच्छे घोड़ों की जरूरत है। जो छात्र घुड़सवारी के शौकीन हैं, उन्हें मौका मिलना चाहिए। संख्या बढ़ाने से लाभ नहीं हैं। जकार्ता में मिले दो पदकों ने जोश भरने का काम किया है।
हिंद न्यूज टीवी के लिए अलीगढ़ से अजय कुमार