सुप्रीम कोर्ट ने आज गिरफ्तार तथाकथित नक्सलियों के लिए मन में प्रेम रखने वाले बुद्धिजीवीयों की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका में कहा कि लोकतंत्र में विरोध एक सेफ्टी वाल्व की तरह होता है अगर इस वाल्व को दबाया तो विस्फोट हो जाएगा। साथ ही कोर्ट ने इन समाजसेवियों को गिरफ्तारी से राहत देते हुए उन्हें घर में नजरबंद रखने का आदेश सुनाया। वहीं कोर्ट ने भारत सरकार को नोटिस देते हुए जवाब देने को कहा है। आइए आपको बताते है जिन्हे पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया है उनका इतिहास है क्या।
वरवर राव : वरवर राव 1957 से कविताएं लिख रहे हैं। राव जो वीरासम (क्रांतिकारी लेखक संगठन) के संस्थापक सदस्य है उन्हे अक्टूबर 1973 में आंतरिक सुरक्षा रखरखाव कानून (मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया था। साल 1986 के रामनगर साजिश कांड सहित कई अलग-अलग मामलों में 1975 और 1986 के बीच उन्हें एक से ज्यादा बार गिरफ्तार और फिर रिहा किया गया। करीब 17 साल बाद 2003 में राव को रामनगर साजिश कांड में बरी कर दिया गया। राव को एक बार फिर आंध्र प्रदेश लोक सुरक्षा कानून के तहत 19 अगस्त 2005 को गिरफ्तार किया गया। 31 मार्च 2006 को लोक सुरक्षा कानून के तहत चला मुकदमा निरस्त कर दिया गया और राव को अन्य सभी मामलों में जमानत मिल गई।
अरुण फेरेरा : अरुण फेरेरा मुंबई में रहते है और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता के तौर पर जाने जाते है। फेरेरा को 2007 में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) की प्रचार एवं संचार शाखा का नेता बताया गया। उन्हें 2014 में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। अपनी किताब ‘कलर्स ऑफ दि केज: ए प्रिजन मेमॉयर’ में फेरेरा ने जेल में बिताए करीब पांच साल का ब्योरा लिखा है।
सुधा भारद्वाज : सुधा भारद्वाज फरीदाबाद की रहने वाली हैं। वह दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। वह मानवाधिकार संगठन पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) में राष्ट्रीय सचिव हैं। इसके अलावा सुधा एक्टिविस्ट के तौर पर भूमि अधिग्रहण की नीतियों का भी विरोध करती रही हैं। आईआईटी से टॉपर होकर निकलने के बाद भी सुधा को करियर का आकर्षण बांधे नहीं रख सका और अपने वामपंथी रुझान के कारण वो 80 के दशक में छत्तीसगढ़ के यूनियन लीडर शंकर गुहा नियोगी के संपर्क में आयी और फिर उन्होंने छत्तीसगढ़ को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया। वह अभी पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की छत्तीसगढ़ इकाई की महासचिव हैं।
सुजैन अब्राहम : नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सुजैन ने एलगार परिषद के कार्यक्रम के सिलसिले में पुलिस की ओर से जून में की गई छापेमारियों के दौरान गिरफ्तार किए गए कई लोगों की अदालत में पैरवी की थी। सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गान्जल्विस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एन साईबाबा, सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत राही एवं अन्य को दिए गए सश्रम कारावास के खिलाफ काफी लिखा है और इसे ‘गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून का दुरूपयोग’ करार दिया है।
वर्नोन गान्जल्विस : मुंबई विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता और रूपारेल कॉलेज एंड एचआर कॉलेज के पूर्व लेक्चरर वर्नोन के बारे में सुरक्षा एजेंसियों का आरोप है कि वह नक्सलियों की महाराष्ट्र राज्य समिति के पूर्व सचिव और केंद्रीय कमेटी के पूर्व सदस्य हैं। वर्नोन के दोस्तों की ओर से चलाए जा रहे एक ब्लॉग में उन्हें ‘न्याय, समानता एवं आजादी का जोरदार पैरोकार’ बताया गया है। उन्हें करीब 20 मामलों में आरोपित किया गया था और साक्ष्य के अभाव में बाद में बरी कर दिया गया। उन्हें छह साल जेल में बिताने पड़े।
गौतम नवलखा : नवलखा दिल्ली में रहने वाले पत्रकार हैं और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े रहे हैं। वह प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ के संपादकीय सलाहकार हैं। उन्होंने सुधा भारद्वाज के साथ मिलकर गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 को निरस्त करने की मांग की थी। उनका कहना है कि गैरकानूनी संगठनों की गतिविधियों के नियमन के लिए पारित किए गए इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। पिछले दो दशकों से अक्सर कश्मीर का दौरा करते रहे नवलखा ने जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर काफी लिखा है।
आनंद तेलतुंबड़े : इंजीनियर, एमबीए और पूर्व सीईओ आंनद दलित अधिकारों के चिंतक के तौर पर ख्यात हैं। उन्होंने कई जन आंदोलनों पर किताबें लिखी हैं। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से साइबरनेटिक्स में पीएचडी की है। यह संयोग है कि उन्होंने अक्सर दलील दी है कि दलितों के लिए आरक्षण ने उन्हें लांछित किया है और भारत की राजव्यवस्था में जाति को पवित्रता प्रदान किया है।
फादर स्टन स्वामी : मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टन स्वामी ने विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की, जो आदिवासियों एवं दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है। स्वामी उन 20 लोगों में शामिल थे जिनके खिलाफ पिछले साल जुलाई में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। उन पर पत्थलगडी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे।