चुनाव के दौरान चुनावी उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा लोगों को रिश्वत देने, झूठा बयान देने, और गलत तरीके से चुनाव प्रभावित करने जैसे अपराधों के लिए कम से कम दो साल की सजा का प्रावधान करने की मांग वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। आपको बता दें की चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने चुनाव संबंधी अपराध को संज्ञेय बनाने के लिए वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका सुनवाई के बाद ही खारिज कर दी है। जानकारी के मुताबिक अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में आरोप लगाया था कि वर्ष 2000 के बाद से आम चुनाव और राज्यों के विधानसभा चुनावों के अलावा उपचुनावों के दौरान भी किसी राजनीतिक दल और उम्मीदवार के लिए समर्थन जुटाने के लिहाज से रिश्वत दी जाती है।
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि निर्वाचन आयोग ने भी वर्ष 2012 में गृह मंत्रालय से सिफारिश की थी कि मौजूदा कानून में संशोधन करके रिश्वत देने को संज्ञेय अपराध बनाकर इसके लिए दो साल तक की सजा का प्रावधान किया जाए, ताकि ऐसा अपराध करने के आरोपी को पुलिस बगैर किसी वारंट के ही गिरफ्तार कर सके।
आपको बता दें की याचिका के अनुसार, इस समय रिश्वखोरी गैर संज्ञेय अपराध है, जिसके लिए मामूली सजा का प्रावधान है। और ऐसा देखा गया है कि स्थानीय निकाय से लेकर लोकसभा के चुनाव तक हर स्तर पर रिश्वत देने की घटनाओं में वृद्धि हुई है और ऐसी स्थिति में कानून में बदलाव जरूरी हो गया है।