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जानिये, क्यों कानपुर में अपने दोस्त के गांव में छिपे थे अटल बिहारी बाजपेई जी?

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कानपुर। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेई की जीवटता तो सबकी जुबान पर रही है। जिंदगी की हर परिस्थिति का सामना करने का हौसला अटल जी में था। लेकिन, शायद यह कोई नहीं जानता है कि वह डरते भी थे, यह तो उनके करीबियों को भी नहीं पता होगा। अटल जी जिस बात से डरते थे वह थी उनकी शादी, जिसकी डर से वह अपने अभिन्न मित्र स्व. आचार्य गोरेलाल त्रिपाठी के पतारा स्थित रायपुर गांव में जाकर छुप गए थे।

वर्ष 1944 से 1948 के बीच अटलजी की शादी की चर्चा उनके घर पर चली। वह देश सेवा को जीवन का उद्देश्य बना चुके थे और शादी करना ही नहीं चाहते थे। इसीलिए वह भागकर त्रिपाठी जी के गांव रायपुर आ गए। तीन दिन तक वहां पर छिपे रहे। अटस जी डर की वजह से घर से नीचे तक नहीं उतरते थे।

यमुना तट पर आगरा में बसे छोटे से गांव बटेश्वर के मूल निवासी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी को असली धारा गंगा किनारे स्थित कानपुर में मिली। यहां दयानंद एंग्लो-वैदिक (डीएवी) कॉलेज में पढ़े वाजपेयी सियासत की उभरती शख्सियत तो अपनी काबिलियत से पहले ही बन गए थे, लेकिन राजनीतिक जीवन की पहली सबसे बड़ी कुर्सी उन्हें कानपुर ने ही दिलाई। यहीं पर वह पहली बार जनसंघ के अध्यक्ष बने। अटल जी और कानपुर का नाता बहुत गहरा था।

भाजपा की मातृ संस्था भारतीय जनसंघ की स्थापना और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पहली बार संगठन अध्यक्ष बनने की घटनाएं इसी शहर में हुई।

1951 में ऐतिहासिक फूलबाग मैदान के खुले अधिवेशन के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष और पंडित दीनदयाल उपाध्याय को महामंत्री चुना गया था।

1973 में बृजेंद्र स्वरूप पार्क में खुला अधिवेशन और पास स्थित आर्यनगर इंटर कॉलेज में कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसमें विवाद के चलते बलराज मधोक ने संगठन छोड़ा और अटल जी को अध्यक्ष के रूप में संगठन की कमान सौंपी गई।

इसके बाद 1977 में जब पहली बार केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी के रूप में गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो जनसंघ भी उसमें शामिल हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने। 1980 में मुंबई में भाजपा की स्थापना हुई। इस बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी को ही अध्यक्ष बनाया गया।

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