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आजादी की अनसुनी कहानी: लाहौर जला पंजाब जला पर फर्क नहीं पड़ा देश के सत्ताधीशों को

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लाहौर जल रहा था पंजाब जलने की काागर पर था लेकिन दिल्ली में  बैठे सत्ताधीशों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। बात आजादी से पहले   उस काली रात की है, जब लाहौर में भड़के भीषण दंगों ने अब रौद्र रूप धारण कर लिया है। कल किसी ने यह अफवाह उड़ा दी थी कि रेडक्लिफ के सीमा आयोग ने लाहौर को भारत में शामिल करने का निश्चय कर लिया है।

बस फिर क्या था..! मुस्लिम नेशनल गार्ड के लोग तो इसी अवसर की प्रतीक्षा में थे उनकी तरफ से तो हिंसा की पूरी तैयारी थी। इस अफवाह के कारण सामान्य मुसलमान भी आक्रोशित हो उठा कल रात से ही आगजनी की घटनाएं शुरू हो गई थीं लाहौर के कुछ इलाकों में संघ के स्वयंसेवकों ने अदभुत एवं अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए, कई हिन्दू-सिखों के प्राण बचाए। संघ कार्यालय हिन्दू मोहल्ले में होने के बावजूद ‘मुस्लिम नेशनल गार्ड’ इस पर हमला करेंगे ऐसी सूचना मिलने के कारण बहुत से स्वयंसेवक, संघ कार्यालय की रक्षा के लिए वहां रात भर मजबूती से डटे रहे।

आज सुबह दस बजे से ही मुस्लिम गुड़ों के आक्रमण और भी तीव्र होते चले गए, क्योंकि सिख अपने पहनावे के कारण जल्दी पहचान में आ जाते हैं, इसलिए सिखों पर ही सबसे ज्यादा हमले हुए। डिप्टीगंज नामक हिन्दू-सिख बहुल इलाके में सुबह ग्यारह बजे एक प्रौढ़ सिख व्यक्ति का मुस्लिम गुड़ों ने दिनदहाड़े क़त्ल कर दिया। उसकी अंतडियां बाहर निकाल लीं। वह सिख रास्ते के बीचो-बीच तडपता रहा और मात्र पांच मिनट में ही उसने दम तोड़ दिया।

लाहौर की सड़कों पर अत्यंत भयानक और पाशविक अत्याचार जारी थे। दोपहर तीन बजे तक अधिकृत रूप से मृतकों की संख्या पचास पार कर चुकी थी। इन मृतकों में अधिकांश हिन्दू और सिख ही थे। ऐसे थोड़े बहुत भाग्यशाली लोग थे जो अस्पताल पहुंच सके। उनके ज़ख्म इतने विचित्र, भयानक और गहरे थे कि डॉक्टर और नर्सें भी एक-एक घायल के साथ अक्षरशः मृत्यु से युद्ध कर रहे थे। दोपहर आते-आते लाहौर के दंगों की आग गुरुदासपुर और लायलपुर तक पहुंच चुकी थी।

और ठीक दोपहर चार बजे गवर्नर जेनकिंस ने लॉर्ड माउंटबेटन को टेलीग्राम भेजा कि ‘लाहौर और अमृतसर की पुलिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ‘मुस्लिम नेशनल गार्ड’ के कार्यकर्ता पुलिस की वर्दी में दंगे कर रहे हैं। परिस्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है।

इधर लाहौर जल रहा हैं… लाहौर के साथ ही पूरा पंजाब भी जलने की कगार पर हैं। लेकिन दिल्ली में बैठे सत्ताधीशों को इससे कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा।

 

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