भारत की आजादी के पीछे लाखों कुबर्नियां छुपी हैं। भारत को आजादी ऐसे ही नहीं मिली बल्कि कई युवाओं ने बिना कुछ सोचे-समझे फांसी को गले लगा लिया था। इसी क्रम में एक नाम है महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस का, जिन्होंने 18 साल की उम्र में भारतीय स्वाधीनता के लिए फांसी को गले लगाया।
11 अगस्त 1908 को बोस शहाद हुए थे। जब वो 18 साल के थे तो अगेंजों ने उन्हें फांसी दे दी। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां 3 दिसंबर 1889 को हुआ था। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए 9वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और कूद पड़े मुक्ति आंदोलन में। वहीं पढ़ाई छोड़ने के बाद वो रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए और वन्दे मातरम् पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी हिस्सा लिया। वहीं 6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बम ब्लास्ट हुआ, जिसमें खुदीराम बोस का नाम सामने आया और इसके लिए 18 साल की उम्र में उन्हें फांसी दे दी गई। वहीं महज 18 साल की उम्र में महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगा लिया। ऐसे में आज भी कोई भारतीय उनके इस बलिदान को नहीं भुला पाया है।