सावन का महिना चल कहा है। सभी जानते है, कि सावन में भगवान शिव की पूजा की जाती है। लेकिन आपको एक बताए भगवान शिव का जन्म नही हुआ है, वे स्वयंभू है। लेकिन पुराणों में उनके जन्म का विवरण मिलता है। क्या है, सच्चाई आगे पढिये।
आपको बता दें, कि विष्णु पुराण के अनुसार शिव का जन्म भगवान विष्णु के माथे के तेज से हुआ है। विष्णु पुराण में लिखा है, कि विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते है।
विष्णु पुराण में लिखी शिव के जन्म की कहानी एकमात्र बाल रूप के तौर वर्णन है। जिसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने बच्चे की लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बाल शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, कि उसका कोई नाम नही है इसलिए वह रो रहा है।
तब ब्रह्मा ने शिव को ‘रूद्र’ नाम दिया जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नही और रोते रहे। ब्रह्मा ने उन्हें फिर दूसरा नाम दिया शिव को नाम पसंद नही आया फिर वे और रो पड़े। इस तरह ब्रह्मा ने शिव को चुप कराने के लिए 8 नाम दिए (रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए।
शिव के इस तरह ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी पुराण की एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था। तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे नजर आ रहे थे।
तब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा-विष्णु जब सृष्टि के संबंध में बातें कर रहे थे। तभी विष्णु के माथे के तेज से शिव जी प्रकट हुए। ब्रह्मा ने शिव को पहचानने से इंकार कर दिया। तब शिव के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा को शिव की याद दिलाई।
ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा। शिव ने ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया। जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया। अत: ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक शिव बच्चे के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए।