एक ओर जहां मोदी सरकार करोड़ों लोगों को रोजगार देने की बात कह रही है, तो वहीं कपड़ा उद्दोग को रहात नही दिए जाने से कपड़ा उद्दोग बंद होने की कगार पर है। एक साल चली हड़ताल से डेढ़ लाख कर्मचारी बेरोजगार हो गए थे, वहीं पिछले 15 दिनों में 1 लाख से अधिक वर्करों ने सूरत छोड़ दिया है और रोजाना 10 हजार वर्कर शहर छोड़कर जा रहे हैं।
कपड़ा उद्दोग प्रारंभ होने की आस में यूपी, बिहार, उड़ीसा के कई मजदूर यहां अभी तक रूके हुए थे, परन्तु अब व्यापारियों के कपड़ा कारोबार करने से मना करने पर मजदूरों ने शहर छोड़ना प्रारंभ कर दिया है। कई जगहों पर मजदूरों को रोटी के पैकेट जाने के लिए दिए जा रहे हैं। कई मजदूर कर्ज में डूब गए है।
कुछ मजदूरों ने आत्माहत्या भी कर ली है। जिला टैक्सटाईल मार्केटिंग, ट्रांसपोर्ट, लेबर यूनियन के प्रमुख उमाशंकर मिश्रा ने बताया कि मजदूरों की पगार के 12 करोड़ रूपए बकाया हो गए हैं। वहीं 9 लाख मजदूर अपने परिवारों को भेजे जाने वाले पैसे नही भेज पा रहे हैं। रक्षाबंधन, दुर्गापुजा और सावन में होने वाले 27000 करोड़ के कारोबार का माल बनकर पड़ा है।
इससे कपड़ा उद्दोग पूरी तरह बंद होने की स्थिति में आ गया है। कई कारोबारी भी बर्बाद हो गए हैं। इधर जीएसटी को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी हालत में कपड़े पर से जीएसटी नही हटेगी। जिस कारण खुद के राज्य में ही सरकार को बर्बादी का आलम देखना पड़ रहा है।